top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

क्रोध को आपकी शांति और ख़ुशी ना चुराने दें…

Oct 21, 2022

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत गौतम बुद्ध से सम्बंधित एक किस्से से करते हैं। गौतम बुद्ध अक्सर सत्संग के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में जाया करते थे। एक बार उनका आगमन एक बहुत ही छोटे से गाँव में हुआ। गाँववासियों को बुद्ध का सत्संग इतना पसंद आया कि उन्होंने उनसे कुछ दिन और रुकने की विनती करी, जिसे गौतम बुद्ध ने स्वीकार लिया। अब गाँव में रोज़ उनका सत्संग होने लगा, जिससे जल्द ही उनके सत्संग की ख्याति आसपास के क्षेत्रों में फैल गई और दूर-दूर से लोग उनको सुनने के लिए आने लगे।


उसी गाँव में रहने वाले एक सज्जन को गौतम बुद्ध की बातें बिलकुल पसंद नहीं थी। उनका मानना था कि आज के युग में इन बातों का कोई औचित्य नहीं है। एक दिन वे सत्संग के बाद गौतम बुद्ध के पास पहुंचे और और अपना ग़ुस्सा जताने के उद्देश्य से उनके मुँह पर थूक दिया। गौतम बुद्ध ने अपना गमछा उठाया और उससे मुँह पोंछते हुए उस व्यक्ति से बोले, ‘कुछ और कहना चाहते हो?’ गौतम बुद्ध की प्रतिक्रिया देख वह व्यक्ति अवाक रह गया। उसे समझ ही नहीं आया कि अब वह क्या बोले क्यूँकि थूकने के एवज़ में वह ग़ुस्से से भरी प्रतिक्रिया की अपेक्षा कर रहा था। लेकिन गौतम बुद्ध ने तो एकदम शांत रहते हुए, उससे ही अगला प्रश्न पूछ लिया था। कुछ पलों तक तो वह मूढ़ जैसा ही खड़ा रहा। फिर हिम्मत जुटाकर बोला, ‘बुद्ध, मेरे थूकने पर आपको ग़ुस्सा नहीं आया?’ गौतम बुद्ध उसी तरह शांत रहते हुए हल्की मुस्कुराहट के साथ बोले, ‘देखो, जो तुम मुँह से बोल कर नहीं कह पा रहे थे, वह तुम्हारे कृत्य ने कह दिया था।’


उक्त क़िस्सा मुझे हाल ही में विद्यालय में घटी एक घटना की वजह से याद आया जिसमें एक शिक्षक ने अपने वरिष्ठ शिक्षक से अशिष्ट व्यवहार करा था। हालाँकि वरिष्ठ शिक्षक ने उक्त घटना पर बहुत ही संतुलित प्रतिक्रिया देते हुए, उस शिक्षक को बाद में चर्चा करने के लिए कहा। लेकिन जब यह बात संस्था प्रमुख को पता चली तो उन्होंने उस शिक्षक को वरिष्ठ शिक्षक से अभद्र व्यवहार के लिए माफ़ी माँगने के लिए कहा, जिसे शिक्षक ने नकारते हुए लम्बी छुट्टी ले ली। कुछ दिनों तक इंतज़ार करने के बाद जब उन्हें एहसास हुआ कि विद्यालय बिना माफ़ीनामा लिए जॉइन नहीं करने देगा तो उन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। हालाँकि कुछ ही दिनों में उस शिक्षक को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने विद्यालय जाकर वरिष्ठ शिक्षक से माफ़ी माँगी और संस्था प्रमुख से फिर से नौकरी पर रखने का निवेदन किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया।


जब इस विषय में मैंने वरिष्ठ शिक्षक से चर्चा करी तो उनका कहना था, ‘सर, उनके ग़ुस्से पर ग़ुस्से से प्रतिक्रिया देना तो अपने मूड का रिमोट उनके हाथ में देने के समान है। मेरी ख़ुशी और शांति इन छोटी-छोटी बातों के मुक़ाबले बहुत महँगी और महत्वपूर्ण है।’ बात तो उनकी एकदम सही है दोस्तों, जब आपके पास अपनी बात समझाने या कहने के लिए शब्द या भाव नहीं होते है, तभी आप तेज़ आवाज़ या ग़ुस्से का सहारा लेते हैं। ऐसा ही कुछ उस शिक्षक ने किया था।


दोस्तों, गौतम बुद्ध के किस्से और वरिष्ठ शिक्षक की प्रतिक्रिया के आधार पर देखा जाए तो ग़ुस्से का जवाब ग़ुस्से से और इसी तरह थप्पड़ का जवाब, थप्पड़ से देना एक चुनाव है। अगर आपके लिए आपकी शांति या ख़ुशी महत्वपूर्ण है तो आप ऐसी कई घटनाओं पर बिना कोई प्रतिक्रिया दे, मुस्कुरा सकते हैं और हाँ याद रखिएगा, थप्पड़ का जवाब थप्पड़ से ना देना या ग़ुस्से का जवाब ग़ुस्से से ना देने का अर्थ यह क़तई नहीं है कि ‘मैं कमजोर हूँ!’ या ‘मुझे ग़ुस्सा करना, चिल्लाना या थप्पड़ मारना नहीं आता है।’ बस इसका अर्थ इतना सा है कि आपकी भाषा में जवाब देने के स्थान पर मैं अपनी ख़ुशी और शांति को प्राथमिकता देना ज़्यादा ज़रूरी समझता हूँ। तो आईए दोस्तों, आज उपरोक्त दोनों सुंदर घटनाओं से प्रेरणा लेते हुए हम निर्णय लेते हैं कि हम अपने जीवन को बिना ग़ुस्से या क्रोध के अर्थात् इन जैसे नकारात्मक भाव के जीने का प्रयास करेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

11 views0 comments

Comments


bottom of page