May 29, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, दुख, ख़ुशी, घृणा, आश्चर्य, करुणा, भय, आस्वाद, उदासी की ही तरह क्रोध भी एक भावना है। जी हाँ, भारतीय ग्रंथों में जो 9 मूल भावनायें बताई गई हैं, उनमें से एक भावना क्रोध भी है। इसलिए किसी भी इंसान का इस भाव से पूरी तरह बच पाना संभव नहीं है। इसीलिए जब भी कोई मुझसे पूछता है कि ‘क्रोध को ख़त्म कैसे करें?’ तो मैं कहता हूँ, ‘संभव नहीं है। इसे तो आपको डील करना सीखना पड़ेगा।’
जी हाँ साथियों, अगर आप ग़ुस्से के नकारात्मक प्रभाव से बचना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले अप्रत्याशित स्थितियों या सामने वाले की असामान्य अपेक्षाओं या प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया देने के स्थान पर उसे रचनात्मक तरीक़े से डील करना सीखना होगा। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है, गाँव के बाहरी इलाक़े में एक संत रहा करते थे। संत अपने ज्ञान, सरल एवं शांत व्यवहार और चेहरे पर सदैव रहने वाली मुस्कुराहट के कारण आस-पास के इलाक़े में बड़े प्रसिद्ध थे। कई बार उनके शांत स्वभाव या व्यवहार का फ़ायदा पास में रहने वाले बच्चे उठा लिया करते थे। वे आते-जाते; खेलते-कूदते किसी ना किसी तरह से संत को परेशान या तंग करने का प्रयास किया करते थे; उनकी खिल्ली उड़ाया करते थे। लेकिन संत ने कभी उन बच्चों की हरकत पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वे तो बस उन बच्चों की बात का बुरा मानने के स्थान पर, मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए।
उनका अच्छा व्यवहार, उनकी पहचान था। इसीलिए गाँव के लोग उनके पास सलाह माँगने; अपनी समस्या का समाधान पूछने आया करते थे और उचित मार्गदर्शन पा, खुश और संतुष्ट होकर वहाँ से लौट जाया करते थे। इसी कारण बच्चे-बूढ़ों के वो चहेते भी थे। इसके ठीक विपरीत साध्वी का स्वभाव था। अपनी झगड़ालू प्रवृति और चिड़चिड़े स्वभाव के कारण वह आए दिन ग़ुस्सा हो ज़ाया करती थी और कभी-कभी तो अपने आस-पास मौजूद लोगों से झगड़ भी लिया करती थी।
एक दिन संत को एक गन्ना लेकर घर जाता देख बच्चों को शैतानी सूझी और उन्होंने संत के शांत स्वभाव को परखने का निर्णय लिया। वे दौड़ते हुए साध्वी के पास पहुँचे और उसे भड़काते हुए बोले, ‘माँ! आज संत बाबा को दान में बहुत सारे गन्ने मिले हैं। जिन्हें वे रास्ते में मिलने वाले लोगों को मुफ़्त में बाँटते हुए आ रहे हैं। पता नहीं आपके पास आते-आते उनके पास एक भी गन्ना बचेगा या नहीं। इतना कहकर सभी बच्चे आस-पास पेड़ों की ओट में चुप गये।
कुछ ही पलों बाद संत हाथ में एक गन्ना लिए घर पहुँचे। जिसे देख साध्वी एकदम भड़क गई और आगबबूला होते हुए ग़ुस्से में संत के हाथ से गन्ना छीनते हुए बोली, ‘मात्र एक गन्ना लेकर आए हो? जाओ इसे भी अपने चहेते लोगों में बाँट आओ।’ इतना कह कर साध्वी ने गन्ने को फेंकते हुए, दीवाल पर दे मारा, जिससे गन्ने के दो टुकड़े हो गए। यह नज़ारा देख बच्चे ख़ुशी से उछलने लगे, उन्हें लगा वे संत और साध्वी का झगड़ा कराने की अपनी योजना में सफल हो गए हैं। लेकिन उनकी आशा के ठीक विपरीत, संत मुस्कुराते हुए एकदम शांत भाव के साथ बोले, ‘तुम्हारा भी कोई जवाब नही है। देखो गन्ने को कितना अच्छे तरीक़े से दो भागों में बाँटा है। चलो मैं स्नान कर के आता हूँ, फिर हम दोनों साथ बैठकर गन्ना खाएंगे।’ संत की इस अप्रत्याशित रचनात्मक प्रतिक्रिया और उनके स्वभाव ने साध्वी का ग़ुस्सा एकदम शांत कर दिया। जिसे देख वहाँ मौजूद बच्चे अपने शरारती स्वभाव पर लज्जित हो, भाग जाते हैं।
दोस्तों, अगर आप शांति के साथ संत के व्यवहार को देखेंगे तो पायेंगे कि उन्होंने क्रोध का जवाब क्रोध से नहीं अपितु रचनात्मक और अप्रत्याशित क्रिया से दिया था। जिसने साध्वी को एकदम से शांत कर दिया था। इसलिए दोस्तों, मैंने पूर्व में कहा था, ‘अप्रत्याशित स्थितियों या सामने वाले की असामान्य अपेक्षाओं या प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया देने के स्थान पर उसे रचनात्मक तरीक़े से डील करना सीखना ही आपको अनावश्यक क्रोध से बचा सकता है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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