Nov 30, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, कुछ बातें या चीजें अथवा आदतें ऐसी होती हैं, जिनके विषय में हमें पता होता है कि वे हमारे लिए बहुत नुक़सानदायक हैं, लेकिन उसके बाद भी हम उसे छोड़ते नहीं हैं। अगर आप ऐसी आदतों, बातों या चीजों के विषय में इन लोगों से चर्चा भी करो तो सामान्यतः आपको सुनने को यही मिलेगा कि मैं तो अपनी ओर से बहुत प्रयास कर रहा हूँ, पर क्या करूँ इसे छोड़ नहीं पा रहा हूँ। चलिए इसी बात को हम गौतम बुद्ध के एक क़िस्से से समझने का प्रयास करते हैं।
एक बार गौतम बुद्ध प्रवास के दौरान एक गाँव से गुजरते हुए लोगों को जीवन को बेहतर तरीक़े से जीने के विषय में बता रहे थे। उसी वक़्त एक व्यक्ति बहुत ही ग़ुस्से में वहाँ आया और असभ्य व्यवहार करता हुआ गौतम बुद्ध का अपमान करते हुए, अनाप-शनाप बातें कहने लगा। उस युवक की उल्टी-सीधी बातें सुन वहाँ मौजूद गाँव वाले बड़ा अपमानित और बुरा महसूस कर रहे थे। कुछ लोगों को तो उस युवक पर ग़ुस्सा भी आ रहा था, लेकिन गौतम बुद्ध उसकी उल्टी-सीधी बातें सुनने के बाद भी हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए शांत बैठे हुए थे। इस वजह से वह युवक और ज़्यादा भड़क गया और चिल्लाते हुए बोला, ‘आप एक नक़ली संत-महात्मा हैं। इसलिए आपको दूसरों को सिखाने का कोई अधिकार नहीं है। आप भी बाक़ी सभी लोगों की तरह मूर्ख है।’
इतना सुनने के बाद भी बुद्ध एकदम शांत थे और उनके चेहरे की मुस्कुराहट भी बरकरार थी। उन्हें एक युवक द्वारा बिना किसी भी कारण के अपमानित करना भी परेशान नहीं कर रहा था। जैसे ही वह युवक शांत हुआ गौतम बुद्ध उस युवक से प्रश्न करते हुए बोले, ‘मैं तुमसे एक छोटा सा प्रश्न पूछना चाहता हूँ। मान लो तुम अपने किसी परिचित के लिए उपहार ख़रीदते हो और सामने वाले को देने का प्रयास करते हो, लेकिन वह इंसान आपके उपहार को लेने से मना कर देता है। अब बताओ वह उपहार किसका है?’ अजीब सा सवाल सुन वह युवक झल्ला गया और तुनकते हुए बोला, ‘मेरा ही होगा क्योंकि उसे मैंने ही ख़रीदा था।’
सवाल का जवाब सुनते ही भगवान बुद्ध ज़ोर से हंसे और बोले, ‘तुम तो बड़े समझदार लगते हो, तभी इस प्रश्न का जवाब इतना जल्दी एकदम सही और सटीक दे रहे हो। पर कभी सोच कर देखा है कि ऐसा ही कुछ तुम्हारे क्रोध के साथ भी होता है। जब तुम किसी पर क्रोध करते हो या किसी का अपमान करते हो और अगर वह इंसान तुम्हारे द्वारा किए गए क्रोध और अपमान को नहीं स्वीकारता है तो वह क्रोध और अपमान लौट कर तुम्हारे पास ही आ जाता है। ऐसी स्थिति में केवल और केवल क्रोध करने वाला ही दुखी होता है और क्रोधित रहता है। एक प्रकार से ऐसा करना ख़ुद को चोट पहुँचाने समान है।’
बात तो दोस्तों गौतम बुद्ध की सौ टका सही थी, क्रोध सहित ऐसे और भी कई नकारात्मक भाव होते हैं, जिनका किसी भी मनुष्य के अंदर होना या उसे प्रयोग में लाना, किसी और से पहले सिर्फ़ और सिर्फ़ उसे प्रयोग में लाने वाले को ही नुक़सान पहुँचाता है, जैसा कि उपरोक्त क़िस्से में गौतम बुद्ध पर क्रोध करने वाले के साथ हुआ था। इससे बचने का याने अपने अंदर मौजूद नकारात्मक भावों से ख़ुद को चोट पहुँचाने से बचने का एक ही उपाय है, इनसे याने ग़ुस्से या क्रोध जैसे सभी नकारात्मक भावों से छुटकारा पाना और यह तभी संभव होगा जब आप सब से प्रेमपूर्ण व्यवहार करना शुरू कर दें। याद रखियेगा दोस्तों, जब आप दूसरों से नफ़रत करते हैं, तो आप ख़ुद दुखी हो जाते हैं। जब आप दूसरों पर क्रोध करते हैं, तब आप अपनी शांति स्वयं भंग करते हैं। लेकिन जब आप दूसरों से नफ़रत और क्रोध के स्थान पर प्यार करना शुरू कर देते हैं, तब आप ना सिर्फ़ ख़ुद बल्कि संपर्क में आने वाले हर शख़्स को खुश करते हैं।
यही बात शायद बुद्ध को क्रोध, अपशब्दों से अपमानित करने वाले शख़्स को समझ आ गई थी इसीलिए बुद्ध के समझाने पर उसे अपने किए पर शर्मिंदगी होने लगी और वह गौतम बुद्ध के चरणों में गिरकर उनसे माफ़ी माँगने लगा। ठीक उसी शख़्स की तरह हम सभी को भी दोस्तों इस बात को स्वीकार लेना चाहिये कि क्रोध जैसे अन्य नकारात्मक भावों को हमें ख़ुद की ख़ुशी, सुख और शांति के लिए त्याग देना चाहिए और यह सिर्फ़ इस विषय में बात करने से नहीं अपितु प्रयास करने से ही संभव होगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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