Dec 22, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, आप ने किस परिवार में जन्म लिया; आपके पास कितनी पुश्तैनी दौलत है; आपके पुरखे कितने रसूख़ वाले थे, उनकी समाज में कितनी इज्जत थी; या उपरोक्त सब का होना आपको सफल, इज़्ज़तदार नहीं बनाता है। उसके लिए तो आपको समय के साथ अपने ज्ञान, कर्म और सही दृष्टिकोण के द्वारा अपना स्थान बनाना पड़ता है। अगर आप मेरी बात से सहमत ना हों तो जरा इस २१ वर्षीय युवा की कहानी पर गौर फ़रमाइयेगा जिसका जन्म कर्नाटक में मैसूर के पास कोडाईकुडी नामक सुदूर गाँव में हुआ था।
इस युवा के किसान पिता की मासिक आय लगभग दो हज़ार रुपये प्रति माह थी। इसलिए उनके लिए अपने बेटे को किसी बड़े शहर में रखकर पढ़ा पाना संभव नहीं था। इसलिए इस युवा की पढ़ाई गाँव के विद्यालय से ही शुरू हुई। इस बच्चे को बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में काम करने में मज़ा आता था। इसलिए वे अपना ज़्यादातर समय प्रोद्योगिकी संबंधी चीजों को सीखने-समझने में लगाया करते थे। जब वे कक्षा बारहवीं में पढ़ रहे थे उस वक़्त इंटरनेट के कारण उनकी रुचि हवाई यात्रा, बोइंग विमान, अंतरिक्ष आदि से हुई। बीतते समय के साथ यह रुचि दीवानगी की हद तक बढ़ गई। जिसके कारण इस युवा ने अपनी टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में दुनिया भर के सैकड़ों वैज्ञानिकों को ईमेल द्वारा यह कहकर संपर्क करना शुरू कर दिया कि वे इस क्षेत्र में अपने हाथ आज़माना चाहते हैं। हालाँकि वे ख़ुद भी यह नहीं जानते थे कि उन्हें इस क्षेत्र में करना क्या है?
बारहवीं कक्षा के बाद प्रताप ने इंजीनियरिंग करने का निर्णय लिया। लेकिन परिवार की वित्तीय स्थिति के कारण उन्हें बी. एससी. भौतिक शास्त्र में प्रवेश लेना पड़ा। लेकिन वे इस डिग्री को भी पूरा नहीं कर पाए क्योंकि हॉस्टल फ़ीस ना दे पाने के कारण उन्हें बाहर निकाल दिया गया था। इसके पश्चात उन्होंने रात्रि को सोने के लिए मैसूर बस स्टैंड को अपना घर बनाया और कपड़े वगैरह धोने के लिए सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करने लगे। इतनी विकट परिस्थिति में भी प्रताप ने पढ़ना बंद नहीं करा और अपने दम पर सी++, कोर जावा, पायथन आदि कंप्यूटर भाषाओं को सीखा। इतना ही नहीं इस युवा ने अपने दम पर ही ई वेस्ट से ड्रोन बनाना सीखा और लगभग ८० असफल प्रयासों के बाद सफलता पाई।
कुछ समय पश्चात उन्हें पता चला कि आईआईटी दिल्ली में एक ड्रोन प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। वे अनारक्षित डिब्बे में सफ़र कर वहाँ पहुँच गये और यहाँ उन्हें अपने जीवन की पहली बड़ी सफलता मिली अर्थात् उन्होंने इस प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त करा। यहाँ से इस युवा को जापान में होने वाली एक प्रतियोगिता के विषय में पता चला और उन्होंने भाग लेने आहर्ता पूर्ण करने के लिए चेन्नई के एक कॉलेज के प्रोफेसर के अंडर शोध पूर्ण कर पेपर पब्लिश करने के लिए दिया जिसे बाद में यह कहते हुए नकार दिया गया कि आप शोध पेपर लिखने के लिये एलिजिबल नहीं है।
ख़ैर जिसने ठान रखा हो उसे कौन रोक सकता है। किसी तरह उन्होंने ख़ुद को जापान में होने वाली प्रतियोगिता के लिए नामित करा और वहाँ जाने के लिए साथ हज़ार रुपए की जुगाड़ में लग गए। जब इस विषय में मैसूर के एक भले आदमी को पता चला तो उसने आने-जाने के टिकट की व्यवस्था करवा दी। बाक़ी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इस युवा की माँ ने अपना मंगलसूत्र बेच दिया। टोक्यो पहुँचते तक इस युवा के पास मात्र चौदह सौ रुपये बचे थे। इसलिए इस युवा ने जापान में बुलेट ट्रेन के स्थान पर इच्छित गाँव जाने के लिए साधारण ट्रेन से यात्रा करी और अंत में प्रतियोगिता स्थल तक पहुँचने के लिये सारा सामान लेकर आठ किलोमीटर पैदल चले और अंततः उस प्रतियोगिता और प्रदर्शनी में भाग ले सके जिसमें १२७ देशों के प्रतियोगियों ने भाग लिया था।
प्रतियोगिता में अच्छा प्रदर्शन करने के पश्चात जब शीर्ष दस प्रतिभागियों का नाम घोषित किया जा रहे थे, तब तीसरे नंबर तक अपना नाम ना पा यह युवा हताश हो गया। लेकिन तभी अचानक एक घोषणा ने उनका ध्यान भंग करा, जो इस प्रकार थी, ‘अब हम भारत के स्वर्ण पदक विजेता श्री प्रताप का स्वागत करते हैं। प्रताप की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। वे अपनी आँखों से अमेरिका के झंडे को नीचे की ओर और भारत के तिरंगे को ऊपर चढ़ता देख रहे थे। इस प्रतियोगिता के विजेता के रूप में प्रताप को दस हजार डॉलर का पुरस्कार दिया गया और साथ ही जगह-जगह जश्न मनाया गया।
अब ड्रोन विशेषज्ञ और विजेता के रूप में प्रताप को उस क्षेत्र में सभी लोग पहचानने लगे थे और इसी वजह से उन्होंने महीने में २८ दिन विदेश यात्रा करना प्रारंभ कर दिया था। इतना ही नहीं उन्हें फ़्रांस की एक सरकारी संस्था द्वारा भी साथ में काम करने के लिए आमंत्रित किया गया। इतना ही नहीं उन्हें एक कंपनी द्वारा १६ लाख रुपये प्रतिमाह के वेतन और ढाई करोड़ की चमचमाती कार के साथ पांच बेडरूम के घर का ऑफर भी दिया गया। लेकिन इस युवा ने इन सभी लुभावने ऑफर को ठुकराते हुए हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आग्रह को स्वीकार जिसमें उन्हें डीआरडीओ में काम करने के लिए कहा गया था।
दोस्तों, अब तो आप भी मान गये होंगे कि क़िस्मत या पूर्वजों से मिली दौलत-शोहरत नहीं अपितु लक्ष्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता और तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद सही नज़रिया रखते हुए उठाये गये कदम आपको सफल बनाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
コメント