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खुश रहने के लिए जो आवश्यक है, वो आपके पास है…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jun 21, 2024
  • 3 min read

June 21, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अक्सर आपने देखा होगा कि सुख-चैन, शांति की चाह में अक्सर हम बहुत से लक्ष्य बनाते हैं और उन्हें पाने के लिए जी तोड़ प्रयास करते हैं। लेकिन अथक और अथाह प्रयास के बाद भी अक्सर सुख, चैन और शांति के स्थान पर और ज़्यादा उलझ जाते हैं। दोस्तों चाहने और पाने का यह अंतर अक्सर सही समझ के ना होने की वजह से आता है। आईए इसी बात को हम एक कहानी से समझने का प्रयास करते हैं।


बात कई साल पुरानी है, एक व्यक्ति जीवन की सच्चाई तलाश करने की चाह में सत्य की खोज में निकल पड़ा और एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता रहा। एक दिन राह में उसे एक सज्जन मिले जिन्होंने उसे बताया कि इस गाँव के बाहर एक गुफा है। अगर तुम वहाँ पर चले जाओगे तो तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का जवाब मिल जाएगा। चाह को पूरा करने के चक्कर में वह व्यक्ति उसी पल उस गुफा में गया, जहाँ उसकी मुलाकात एक ऋषि से हुई। ऋषि ने उसे एक गाँव के बारे में बताया और कहा, ‘उस गाँव के चौराहे पर चले जाना, वहाँ पर तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का जवाब मिल जाएगा।’


वह व्यक्ति उसी पल बहुत ही उत्साह और आशा के साथ उस गाँव की ओर चल पड़ा। कई हफ्तों की तलाश के बाद जब वह उस गाँव के चौराहे पर पहुँचा, तो उसे वहाँ तीन दुकानें दिखी। उसने उन तीनों दुकानों के करीब जाकर देखा, तो पाया कि पहली दुकान पर लकड़ी के टुकड़े बिक रहे थे; दूसरी पर धातु के टुकड़े और तीसरी दुकान पर धातु के बने पतले तार बिक रहे थे। वह इन्हें देख कुछ समझ नहीं पाया। वह काफ़ी देर तक इन तीन दुकानों से अपने प्रश्न का उत्तर तलाशने की कोशिश करता रहा। लेकिन हर तरह से सोचने और देखने के बाद भी जब उसे कुछ समझ नहीं आया, तो वह निराश और हताश होकर ऋषि के पास लौट आया और उनसे बोला, ‘गुरुजी, उस गाँव में मुझे तीन दुकानों के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आया। कृपया मुझे मेरे प्रश्न का समाधान बतायें।’ ऋषि बोले, ‘वत्स! इसमें ही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर छुपा है, जो समय आने पर तुम्हें समझ आ जाएगा।’ वह व्यक्ति स्पष्टीकरण चाह रहा था, जो उसे ऋषि से मिला नहीं। उसने सोचा कि ऋषि के पास रुककर वह ख़ुद को ही मूर्ख बना रहा है, इसलिए यहाँ से निकल जाना ही बेहतर है। विचार आते ही वह आदमी निराश होकर वहाँ से चल दिया। लेकिन उसने सत्य की खोज जारी रखी।


एक दिन रात को जब वह सैर पर निकला, तो उसे कहीं दूर से बजता मधुर संगीत सुनाई दिया, जिसने उसका ध्यान अपनी ओर खींचा। संगीत की आवाज़ इतनी अद्भुत थी कि वह इंसान उससे प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाया। संगीत की धुन से आकर्षित हो वह उसकी दिशा में आगे चल पड़ा। वहाँ उसने देखा कि एक संगीतज्ञ की उँगलियाँ सितार के तार पर नाच रही है। वह मंत्रमुग्ध हो उसमें खो गया। अचानक ही एक विचार से उसकी तंद्रा टूटी और उसे ऐसा लगा जैसे उसने अपने प्रश्न का उत्तर पा लिया है। वह हर्षित हो उल्लास के साथ रो पड़ा।


हक़ीक़त में उसे आज ऋषि द्वारा बताई गई तीन दुकानों की हक़ीक़त समझ आ गई थी। उसने देखा कि मधुर संगीत देने वाला सितार, तार, धातु और लकड़ी के टुकड़ों से बना था। जैसे ही उसने इन तीनों चीजों को देखा उसे गाँव के चौराहे वाली तीन दुकानें याद आ गई। उस समय तो वह उनका महत्व नहीं समझ पाया था, परंतु अब उसे सब समझ आ गया था। उसका हृदय पिघलने लगा और वह पूरी तरह प्रेम से इतना भर गया, कि उसके आँसू ही नहीं रुक रहे थे। उस दिन उसे जीवन का वास्तविक अर्थ समझ में आ गया था। उसे पता लग गया था कि हमारे भीतर सब कुछ पहले से ही मौजूद है, बस ज़रूरत है उसे सही तरीके से समायोजित करने की। हम जीवन के अर्थ को खोजने में अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं और उसे टुकड़ों-टुकड़ों में जी रहे हैं। यही उलझन हमें उसके सही अर्थ को समझने नहीं दे रही है। जी हाँ दोस्तों जब हमारा मन, शरीर और हृदय एक साथ वर्तमान में रहते हैं अर्थात् इन सब के साथ हम अपना जीवन जीते हैं, तब हमारा जीवन वास्तव में मधुर संगीत बन जाता है और हम अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझ पाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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