Aug 28, 2022
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
बात कल ही की है, एक करीबी मित्र द्वारा फ़ोन पर हाल-चाल पूछने पर मैंने अपनी आदतानुसार कह दिया, ‘खुश हूँ!’ हमारी बात सामान्य बातचीत से आगे ही बढ़ी थी कि मुझे खाँसते हुए सुन वे बोले, ‘तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है क्या?’ मेरा ‘हाँ' में जवाब सुन वे एकदम गम्भीर हो गए और बोले, ‘यार तुम अभी दो मिनिट पहले बोले खुश हूँ और अब कह रहे हो 3 दिन से वायरल हुआ है। दोनों बातें एक दूसरे के विपरीत नहीं हैं? कोई व्यक्ति बीमारी में खुश कैसे रह सकता है?’ मित्र की बात सुन मैंने मुस्कुराते हुए जवाब देने के स्थान पर प्रश्न पूछते हुए कहा, ‘क्यों भाई, बीमारी में खुश क्यूँ नहीं रहा जा सकता?’ मित्र कोई जवाब नहीं दे पाए।
दोस्तों, मेरी नज़र में ख़ुशी को व्यक्ति, परिस्थिति या वस्तु से जोड़ कर देखना ही ग़लत है। ख़ुशी का इन सब के स्थान पर सिर्फ़ मनःस्थिति से लेना-देना है। अगर आप अपने अंतर्मन को यह बात समझा दें तो आप हर हाल में खुश रह सकते हैं। अपने अंतर्मन को प्रोग्राम करने के लिए आप निम्न सूत्र अपनाएँ-
पहला सूत्र - वास्तविक बनें
सामान्यतः हमेशा हवा में उड़ना नुक़सानदायक ही रहता है। मेरे कहने का अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है कि कई चीजें हमारे लिए असम्भव हैं। बल्कि मेरा तो यह मानना है कि आप जो सोच लें वह बन सकते हैं। लेकिन उसके लिए सबसे पहले आपको वास्तविक बनना होगा। अर्थात्, यह मानना होगा कि आप सभी लोगों को साध कर नहीं चल सकते, सबको खुश रखना असम्भव ही है। आप सभी काम एक साथ नहीं कर सकते, आप हर कार्य के ‘मास्टर’ नहीं हो सकते दूसरे शब्दों में कहूँ तो आप हर कार्य को, हमेशा, दूसरों से बेहतर नहीं कर सकते। सामान्यतः आपको दूसरे इंसानों की तरह ही देखा जाएगा अर्थात् आप भी दूसरे इंसानों की ही तरह हैं।
दूसरा सूत्र - खुद को पहचानें
दुनिया को समझने में और उनके बीच अपनी पहचान स्थापित करने में अक्सर हम खुद खो जाते हैं और इसीलिए खुश नहीं रह पाते हैं। खुश रहने के लिए सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य है खुद से बात करना है क्योंकि जब आप खुद से बात करते हैं तभी आप यह पता लगा पाते हैं कि असल में आप कौन हैं? अपनी सुप्त शक्तियों को खोजें, अपनी कमियों को पहचानें और जब आप खुद को पहचान लें तो उसके अनुसार लक्ष्य बनाएँ। यह लक्ष्य आपके वास्तविक लक्ष्य होंगे। अब आप इन वास्तविक लक्ष्य को पाने के लिए आवश्यक कमियों को दूर करें, अपनी शक्तियों को उपयोग में लाएँ।
तीसरा सूत्र - प्राथमिकताएँ बनाएँ
जब भी आप खुद को पहचान कर लक्ष्य बनाएँगे तो आप पाएँगे कि आपके लक्ष्यों की संख्या बहुत अधिक है क्यूंकि आपको खुद के लक्ष्यों के साथ अपनी ज़िम्मेदारियों, पारिवारिक या व्यवसायिक अपेक्षाओं को भी साधते हुए चलना होगा, अन्यथा आप असंतोष के शिकार हो जाएँगे, आपको लगने लगेगा कि आप काफ़ी दबाव और तनाव में कार्य कर रहे हैं। इससे बचने के लिए प्राथमिकताएँ तय करें और उसके अनुसार कार्य करें।
चौथा सूत्र - स्वीकारोक्ति का भाव रखें
आपका जीवन आपका है, इसे आपको अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार जीना है। अगर आप इसे दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने में बर्बाद करेंगे तो कभी भी वह नहीं बन पाएँगे जो आप बनना चाहते हैं। याद रखें, आप जैसा बनना चाहते हैं वैसा बनने की होड़ में कोई और है ही नहीं।
पाँचवाँ सूत्र - विश्वास करें
मेरी नज़र में पाँचवाँ सूत्र ना सिर्फ़ सबसे महत्वपूर्ण बल्कि सबसे कठिन भी है। हमारी सफलता और हमारे बीच सबसे बड़ा हर्डल हमारी सोच है। अक्सर लोग उपरोक्त चार सूत्रों को काम में लेकर खुद को अपनी कमियों या विशेषताओं के साथ पहचान लेते हैं। उसके अनुसार प्राथमिकताएँ तय कर लक्ष्य भी बना लेते हैं। अपनी सीमाओं के साथ जीना सीख लेते हैं। कुल मिला कर कहूँ तो खुद को पहचान कर सम्मान के साथ रहने लगते हैं, लेकिन इसके बाद भी खुश नहीं रह पाते हैं क्यूँकि वे खुद पर विश्वास नहीं कर पाते हैं।
हर हाल में खुश रहने के लिए आपको खुद के ऊपर विश्वास करने का साहस विकसित करना होगा। इसके लिए खुद को रोज़ याद दिलाएँ कि आप एक अद्भुत, अद्वितीय व्यक्ति हैं। इस दुनिया में आपका जन्म इतिहास बनाने के लिए हुआ है, उसमें खोने के लिए नहीं। हमें जीवन जीना है, काटना नहीं । इसके लिए हमें समझना होगा कि हमारी प्राथमिकताओं को पाना हमारा कर्तव्य है अधिकार नहीं। हमें इस जीवन को समस्याओं का समाधान करते हुए बर्बाद नहीं करना है अपितु इसे ईश्वर का अद्वितीय उपहार मान संजोना है और हाँ याद रखिएगा, आप इस दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं क्यूंकि यह दुनिया आपके लिए तभी तक है, जब तक आप हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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