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खुश रहें और लोगों की मदद करें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Mar 24
  • 3 min read

Mar 24, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा कि आजकल लोग मतलबी और स्वार्थी होते जा रहे हैं और लोगों में मानवीयता या इंसानियत की भावना ख़त्म होती जा रही है। लेकिन मैं इस धारणा से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ। मेरा तो मानना है कि जरूरतमंद की मदद करना मानवीय स्वभाव है। आप स्वयं सोच कर देखिए दोस्तों, अगर आपको कोई बच्चा सड़क पर रोता हुआ दिख रहा हो, तो आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या होगी? शायद आप उसे चुप कराने की कोशिश करेंगे। इसी तरह अगर आपको कोई बुजुर्ग भारी सामान उठाने की कोशिश करता हुआ दिखता है, तो क्या आप उसकी मदद करना चाहेंगे? मेरा मानना है कि इस बार भी आपका जवाब ‘हाँ’ ही होगा!


अगर मैं सही अंदाजा लगा रहा हूँ तो मैं आपको बधाई देना चाहूँगा क्योंकि आपमें मानवीयता या इंसानियत है और यही तो मेरे अनुसार मानवीय स्वभाव है। अर्थात् दूसरों की मदद करने की भावना हम सभी मनुष्यों में होना स्वाभाविक है और यही याने सहानुभूति और करुणा की भावना होना हमारी सबसे बड़ी ताक़त है। जी हाँ दोस्तों, मनुष्य में जन्म से ही सहानुभूति होती है। जब हम किसी को तकलीफ में देखते हैं, तो हमें भी पीड़ा महसूस होती है। सहानुभूति की यही भावना हमें आगे बढ़कर जरूरतमंद की मदद करने के लिए प्रेरित करती है। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति सड़क पर घायल अवस्था में गिरा हुआ दिखता है, तो आपको उसके आस-पास बहुत सारे लोग मदद करने की इच्छा लिए खड़े नजर आते हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि इंसान सामाजिक प्राणी है। इसलिए ही हमारी ज़िंदगी आपसी सहयोग पर ही टिकी हुई है।


संभव है, इस वक्त आपमें से कुछ लोगों के मन में विचार आ रहा हो कि मदद करने की इच्छा लिए लोग भीड़ लगाए तो नजर आते हैं, लेकिन मदद का हाथ नहीं बढ़ा पाते हैं। तो मैं आपको बताना चाहूँगा कि मदद करने का स्वभाव होना और मदद करना दो अलग-अलग बात है। हमारे समाज में कुछ लोग मदद करना चाहते हैं, लेकिन डर या असमर्थता के कारण पीछे हट जाते हैं। अगर समाज में बचपन से ही मदद करने की सीख दी जाए, तो मदद करने का भाव डर के मुक़ाबले और मजबूत बन जाता है क्योंकि अब यह हमारे स्वभाव का हिस्सा होता है।


यही बात हमें हमारा धर्म और हमारी संस्कृति भी सिखाती है। जैसे गीता जी में कहा गया है, ‘परहित सरिस धर्म नहीं भाई।’ यानी दूसरों की भलाई से बढ़कर कोई धर्म नहीं। अगर यही बात हर व्यक्ति समझ जाये और मददगार बन जाए तो ज़रा सोच कर देखियेगा, हमारा समाज कितना सुंदर और सहयोगपूर्ण बन सकता है! जी हाँ दोस्तों, मदद करना आपसी सहयोग और संवेदनशीलता को बढ़ाता है। यही बात हमें कर्म का सिद्धांत भी सिखाता है कि अगर आप किसी की मदद करेंगे, तो जीवन में आपको भी जरूरत पड़ने पर सहायता मिलेगी।


चलिए अंत में मदद करने के स्वभाव को स्वार्थ की नजर से भी देख लिया जाये तो भी यह हमारे लिए लाभप्रद है। जी हाँ दोस्तों, मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ। जब आप किसी की मदद करते हैं, तो आपके दिमाग में ‘डोपामाइन’ नामक हार्मोन रिलीज़ होता है, जो आपको खुशी का एहसास दिलाता है। इसका अर्थ हुआ मदद करना हमें ख़ुश रहने में मदद करता है और हाँ इसका एक लाभ और है, दूसरों की मदद करने से हमें मानसिक संतोष भी मिलता है।


अंत में दोस्तों, मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहूँगा कि मदद करना सिर्फ एक अच्छा गुण नहीं, बल्कि इंसानियत की पहचान है। इसलिए ही कहा गया है, ‘मदद करने वाले हाथ, प्रार्थना करने वाले होठों से अधिक पवित्र होते हैं।’ तो आइए दोस्तों, इस सुंदर दुनिया को और बेहतर बनाते हैं और इसी क्षण किसी की मदद करते हैं, किसी की मुस्कान की वजह बनते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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