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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

ख़ुद का सुधार ही इस संसार की सबसे बड़ी सेवा है…

Jun 13, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, जीवन के प्रति आपका नज़रिया ही आपके जीवन को आरामदायक या कष्टदायक बनाता है। जी हाँ, सामान्यतः स्थितियाँ समान ही होती है। जिसका नज़रिया सकारात्मक होता है, वह उन स्थितियों को चुनौती के रूप में स्वीकारता है और अपने जीवन को बेहतर बनाता है। लेकिन अगर नज़रिया नकारात्मक हो तो वह उन्हीं स्थितियों में तमाम समस्या और आसपास मौजूद लोगों में कमियाँ खोज लेता है और ख़ुद के जीवन को कष्टदायक बना लेता है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


गाँव में रहने वाले अमीर सेठ ने जीवन के अंतिम समय में अपनी सारी संपत्ति दो बराबर भागों में बाँट कर अपने दोनों बेटों के नाम कर दी। पिता के जाने के बाद दोनों बेटों ने बँटवारे के अनुसार अपने व्यवसाय और संपत्ति की ज़िम्मेदारी ली और जीवन को अपने-अपने नज़रिए के अनुसार आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। बड़ा बेटा, जो थोड़ा आलसी प्रवृति का था, ने शुरुआती दिनों में तो पिता द्वारा दी गई संपत्ति को उड़ाना शुरू कर दिया। लेकिन जल्द ही बीवी के तानों से परेशान होकर, उसने अनमने मन से काम करना शुरू कर दिया। इसका परिणाम उसे लगातार हो रहे नुक़सान के रूप में भुगतना पड़ रहा था। इसके विपरीत, छोटा भाई बड़ा मेहनती और मितव्ययी था। उसने अपना सारा ध्यान पिता से मिले व्यापार और अपने परिवार पर केंद्रित किया। जिसकी वजह से वो सुख, शांति और ख़ुशी के साथ-साथ व्यापार में भी दिन दूनी, रात चौगुनी तरक़्क़ी करने लगा।


छोटे भाई की तरक़्क़ी ने बड़े भाई के मन में जलन और ईर्ष्या पैदा कर दी। अब उसे संदेह होने लगा था कि पिता ने शायद चोरी छिपे छोटे भाई को अतिरिक्त धन दिया है। इसलिए उसने अपने भाई की बुराई गाँव वालों के सामने करना शुरू कर दिया। एक दिन गाँव में एक महात्मा का आगमन हुआ। महात्मा ने अपने सत्संग के दौरान सभी गाँववासियों को अच्छे जीवन के सूत्र बताए। जिससे प्रभावित हो बड़ा भाई सत्संग के पश्चात महात्मा के पास गया और उनसे आग्रह करते हुए बोला, ‘महात्मा जी, मेरी मदद कीजिए, मेरी स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। मैं जो भी कार्य करता हूँ, उसमें मुझे असफलता ही मिलती है। अतः कृपा करके मुझ सफलता का सूत्र बताइए।’


सफलता का कोई एक सूत्र तो होता नहीं है , जिसे महात्मा जी उसे बता कर फ्री हो जाते। वे सोच में पड़ गये कि उसे क्या बताएँ और क्या नहीं। अंत में महात्मा जी ने उसे उनके साथ यात्रा पर चलने के लिए कहा, जिससे वे उसके साथ कुछ अतिरिक्त समय बिता पायें और उसे अच्छे से पहचान पायें। यात्रा के दौरान महात्मा जी ने उससे बातचीत के दौरान कई प्रश्न पूछे जैसे, तुम कहाँ से हो?; घर में कौन-कौन है?; कितने भाई हो?; आदि। इस दौरान वह भी महात्मा जी के प्रश्नों के उत्तर बड़ी शांति के साथ दे रहा था। महात्मा जी ने जब उससे उसके पिता और छोटे भाई के विषय में पूछा तो अपनी आदतानुसार उसने उनकी बुराइयाँ करना शुरू कर दिया। फिर महात्मा जी ने गाँव के सरपंच, चौकीदार आदि सहित कई लोगों के बारे में पूछा। उसने सभी की कमियाँ गिनाते हुए, उनकी बुराई करी।


उसकी बातों से महात्मा जी को सारी समस्या समझ आ गई। वे मुस्कुराते हुए बोले, ‘वत्स, चलो अब मैं तुम्हें ब्रह्मा जी द्वारा बताया गया सफलता का मंत्र सिखाता हूँ। बड़े ध्यान के साथ इसे सुनना और इससे सीखना। कई साल पहले एक इंसान ने ब्रह्मा जी की बहुत तपस्या करी, जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन देते हुए, वर माँगने के लिये कहा। तब उस व्यक्ति ने ब्रह्मा जी से सुख, शांति और सफलता का वरदान माँग लिया। तब ब्रह्मा जी ने उसे ‘तथास्तु’ कहते हुए एक छोटा और एक बड़ा थैला देते हुए कहा, ‘वत्स, यह बुराइयों और कमियों के थैले हैं। इसमें से बड़े थैले को तुम अपनी पीठ पर और छोटे थैले को अपने आगे लटका लो। बड़ा थैला संसार की बुराइयों का और छोटा थैला तुम्हारी बुराइयों का है। तुम बड़े थैले की सिर्फ़ उन बुराइयों को देखना जिन्हें तुम दूर कर सको। बाक़ी बुराइयों पर ध्यान देने से अकारण क्षोभ और प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी। छोटे थैले में तुम्हारी अपनी बुराइयों हैं, इसलिए इसे हमेशा अपनी नज़रों के सामने रखना। जिससे तुम इन्हें दूर करने के लिए सतत् प्रयासरत रह सको। यदि तुमने इन दो थैलों का सतर्कतापूर्वक ध्यान रखा तो तुम्हारे जीवन में शाश्वत सुख शांति और सफलता बनी रहेगी।’ इतना कहकर ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान गये।


कहानी पूर्ण कर महात्मा जी एक पल को चुप हुए, फिर धीमे स्वर में बोले, ‘बेटा! मेरा तुमसे आग्रह है कि तुम भी ब्रह्मा जी का सूत्र अपनाओ और सुख, शांति के साथ अपने जीवन में सफल बनो।’ बड़े भाई को महात्मा जी की बात समझ आ गई थी। उसने उसी के अनुसार अपना जीवन जीना शुरू किया और कुछ ही दिनों में सुख, शांति और सफलता के साथ अपना जीवन व्यतीत करने लगा।


दोस्तों, शायद इसीलिए कहा गया है, ‘जिधर ध्यान लगाया, उधर तरक़्क़ी।’ अगर आप दूसरों के दोषों पर ध्यान लगायेंगे तो आप में दोष बढ़ जाएँगे और अगर आप ख़ुद को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो आप बेहतर बन जाएँगे। इसलिए हमें हमेशा दूसरों के दोषों से ध्यान हटाकर ख़ुद के जीवन को सुधारने में ध्यान लगाना चाहिए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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