top of page
Search

ख़ुद की ख़ुशी के कातिल ना बनें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Aug 9, 2023
  • 3 min read

August 9, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक क़िस्से से करते हैं। कुछ वर्ष पूर्व कॉरपोरेट ट्रेनिंग के दौरान, ट्रेनर ने सभी प्रतिभागियों को एक-एक ग़ुब्बारा देते हुए कहा, ‘चलिये, अब हम एक खेल खेलते हैं। मैंने आप सभी को एक-एक ग़ुब्बारा दिया है। जिस भी व्यक्ति के पास अंत तक ग़ुब्बारा रहेगा वह आज का विजेता होगा और उसे रू पाँच हज़ार का नगद इनाम दिया जाएगा।’ ट्रेनर के इतना कहते ही सभी प्रतिभागी एक-दूसरे के ग़ुब्बारे को फोड़ने लगे।


खेल का समय ख़त्म होते समय तक वहाँ एक भी शख़्स नहीं था जिसका ग़ुब्बारा सलामत हो। मात्र ३ से ४ मिनिट में ही सभी प्रतिभागियों ने एक-दूसरे के ग़ुब्बारों को फोड़ दिया था। अंत में ट्रेनर एक बार फिर मंच पर आये और सभी प्रतिभागियों से प्रश्न करते हुए बोले, ‘आपने एक दूसरे के ग़ुब्बारों को क्यों फोड़ा?’ सभी प्रतिभागी एक स्वर में बोले, ‘विजेता बनने के लिये।’ इतना सुनते ही ट्रेनर मुस्कुराये और बोले, ‘अगर आप एक दूसरे के ग़ुब्बारे को नहीं फोड़ते तो आप सभी विजेता होते।’ ट्रेनर का जवाब सुनते ही सभी प्रतिभागी अब एक-दूसरे का मुँह देख रहे थे।


वैसे दोस्तों, यह कहानी सिर्फ़ ट्रेनिंग हाल में मौजूद प्रतिभागियों की ही नहीं है अपितु इस दुनिया में ज़्यादातर लोगों की है। सच मानियेगा साथियों, आज इंसान जितना अपने दुख से दुखी नहीं है उससे ज़्यादा दूसरों के सुख से दुखी है। असल में साथियों यह स्थिति याने दूसरों को देखकर जीना, ख़ुद का दिल दुखाकर जीने जैसा है। इसे हमारे शास्त्रों में ‘मत्सर भाव’ याने ख़ुद का खून चूसकर जीने वाला, कहा गया है।


दूसरे शब्दों में कहा जाये तो दूसरों को खुश देखकर जलना उस माचिस की तीली या उस मशाल की तरह जलना है जो ख़ुद जलकर दूसरों को जलाती है। याने दूसरों को ख़ाक में मिलाने के लिये पहले उसे राख बनना पड़ता है। इसलिये दोस्तों, दूसरों की ख़ुशी देख ख़ुद दुखी होने के स्थान पर खुश होना सीखें। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ तब संभव होगा जब आप अपने अंदर ‘जो प्राप्त है, वो पर्याप्त है’, का भाव विकसित कर पायेंगे।


इसका अर्थ यह क़तई नहीं है दोस्तों कि हमें जीवन में आगे नहीं बढ़ना है या अब कर्म नहीं करना है। जीवन में हमें कर्म कर निश्चित तौर पर आगे तो हमेशा बढ़ना ही है, अन्यथा हम रुके हुए पानी की तरह सड़ जाएँगे। इसीलिये ज़िंदगी को चलायमान माना गया है। ‘जो प्राप्त है, वह पर्याप्त है’ के भाव का यहाँ अर्थ सिर्फ़ इतना है कि जो हमारे पास है हमें उसके लिये ईश्वर का धन्यवाद करना है और जो हमें किसी भी कारणवश नहीं मिल पाया है उसके लिये किसी को दोष देने के स्थान पर अपनी पात्रता याने योग्यता को बढ़ाना है। इसके साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखना है कि कर्म करते वक़्त मनचाहा परिणाम ना मिलने पर न तो परेशान होना है और ना ही दूसरों की सफलता या स्थिति को देखकर दुखी होना है। हमें तो बस बिना परिणाम की चिंता किए अपनी योग्यता को रोज़ बढ़ाते जाना है तभी हम अपने जीवन को बेहतर बना पायेंगे। इसीलिये दोस्तों, जीवन को स्वतः सुखमय बनाने का अचूक सूत्र, जो नहीं मिला है उसका दोष किसी और पर देने के स्थान पर ख़ुद की योग्यता और पात्रता को बढ़ाना, बताया गया।


तो आइये दोस्तों, आज से हम दूसरों की ख़ुशी से खुश होने के साथ-साथ अपनी पात्रता बढ़ाना शुरू करते हैं। यह स्थिति बिलकुल वैसी ही होगी जैसी इस लेख की शुरुआत में हमने ग़ुब्बारे वाले क़िस्से से सीखी थी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com

 
 
 

Comentarios


bottom of page