Sep 8, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, इस दुनिया में एक इंसान है, जो आपको, जो आप चाहें सब कुछ दिला सकता है। अगर आप महान बनना चाहते हैं, तो यह आपको महान बना सकता है। अगर आप ईश्वर को जानना या उनसे मिलना चाहते हैं, तो यह आपको ऐसा करने का मौक़ा भी दे सकता है। कुल मिलाकर कहा जाये तो अगर आप इस व्यक्ति को खोज लें तो यह व्यक्ति आपको अपने सपने का जीवन जीने का मौक़ा दे सकता है। जी हाँ दोस्तों, वाक़ई इस दुनिया में एक इंसान ऐसा है, जो आपके जीवन को हर स्थिति-परिस्थिति में सही दिशा देते हुए सुकून का जीवन जीने में मदद कर सकता है। चलिए आज की कहानी से हम उस इंसान को पहचानने का प्रयास करते हैं-
बात कई साल पुरानी है, एक पहुँचे हुए संत पूरी दुनिया की यात्रा पूर्ण कर जब भारत वापस आये तो एक छोटी सी रियासत के राजा के यहाँ कुछ दिन विश्राम करने के लिए रुके। एक दिन राजा ने सत्संग के दौरान संत से एक प्रश्न पूछते हुए कहा, ‘स्वामी जी, मैं पिछले कई वर्षों से एक प्रश्न का उत्तर तलाश रहा हूँ, पर आज तक मुझे इसमें सफलता नहीं मिल पाई है। क्या मैं आप से इस प्रश्न को पूछ सकता हूँ?’ संत बिना एक पल गँवाये बोले, ‘निःसंदेह! आज तुम ख़ाली हाथ नहीं जाओगे। पूछो, क्या जानना चाहते हो।’
राजा ने कहा, ‘मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूँ। कृपया इस विषय में आप मुझे बहलाने या समझाने का प्रयास मत करना क्योंकि मैं ईश्वर से सीधा मिलना चाहता हूँ।’ इतना सुनते ही संत पूरी बेफ़िक्री के साथ बोले, ‘अभी मिलना चाहते हो या बाद में?’ अनपेक्षित जवाब सुनते ही राजा बोले, ‘स्वामी जी, शायद आप समझे नहीं। मैं परमपिता परमात्मा की बात कर रहा हूँ, किसी ईश्वर नामक व्यक्ति की नहीं।’ संत मुस्कुराते हुए बोले, ‘महाराज, समझने में चूक होने की गुंजाइश ही नहीं है। मैं तो चौबीस घंटे लोगों को परमात्मा से मिलाने; उनका साक्षात्कार कराने का ही काम करता हूँ। मेरी बात का सीधा-सीधा जवाब दो, अभी मिलना है या बाद में? मेरी मानो तो अभी मिल लो क्योंकि तुम कई वर्षों से उनसे मिलने का प्रयास कर रहे हो। आज ईश्वर से मिलने का मौक़ा मिला है तो उसे गँवाओ मत।’
संत की बात से राजा को थोड़ी हिम्मत मिली। उसने अपने सारी ऊर्जा को समेटते हुए बड़ी उत्सुकता के साथ बोला, ‘स्वामी जी, मैं ईश्वर से अभी ही मिलना चाहता हूँ। कृपया मुझे मिलवाने की व्यवस्था कीजिए।’ राजा की बात सुनते ही संत बोले, ‘राजन, तुमने बहुत अच्छा निर्णय लिया है। कृपया इस कागज पर अपने बारे में लिख कर दे दो, जिससे मैं ईश्वर को आपके बारे में बता कर, उन्हें आप से मिलने के लिये राज़ी कर सकूँ।’
राजा को संत का विचार बड़ा पसंद आया। उन्होंने तत्काल उस काग़ज़ पर अपना नाम, अपने महल और राज्य का नाम, अपना जीवन परिचय, अपनी उपाधियां आदि लिखकर दे दी। राजा से प्राप्त कागज को पहले संत ने पढ़ा और फिर बोले, ‘राजन, यह सब बातें तो मुझे झूठी याने असत्य मान पड़ती है।’ संत की बात सुन राजा हतप्रभ थे। बड़ी मुश्किल से वे हिम्मत जुटाते हुए बोले, ‘स्वामी जी, आपको मेरे परिचय पर संदेह क्यों हो रहा है?’
संत बोले, ‘राजन, अगर मैं तुम्हारा नाम बदल दूँ, तो क्या तुम बदल जाओगे? तुम्हारी चेतना, तुम्हारी सत्ता, तुम्हारा व्यक्तित्व बदल जाएगा?’ राजा बोला, ‘नहीं! नाम के बदलने से मैं क्यों बदलूंगा? नाम, नाम है और मैं, मैं हूँ!’ संत ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘एक बात तो तय हो गई कि नाम तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि तुम उसके बदलने से बदलते नहीं। अब बताओ, आज तुम राजा हो, कल गांव के भिखारी हो जाओगे, तो क्या बदल जाओगे?’ राजा बोला, ‘नहीं स्वामी जी, अगर मेरा राज्य चला जाएगा; मैं भिखारी भी हो जाऊंगा, लेकिन तब भी मैं क्यों बदलूँगा? मैं तो जो हूँ, हूँ। राजा होकर जो हूँ, भिखारी होकर भी वही रहूँगा! अगर महल, राज्य और धन-संपत्ति नहीं भी होगी, तो भी मैं तो वही रहूंगा, जो मैं हूँ!’ इसपर संन्यासी मुस्कुराते हुए बोले, ‘फिर तो तय हो गया कि राज्य तुम्हारा परिचय नहीं है, क्योंकि राज्य छिन जाए तो भी तुम बदलते नहीं।’ राजा ने ‘हाँ’ में सर हिला दिया। इसपर संत बोले, ‘चलो अब अपनी उम्र बताओ।’ राजा बोले, ‘चालीस वर्ष!’ राजा का उत्तर सुनते ही संत बोले, ‘अच्छा, तो पचास वर्ष के होकर क्या तुम कुछ और हो जाओगे या जब तुम बीस वर्ष के थे या जब तुम बच्चे थे, तो क्या, तब तुम कोई और थे?’ राजा बोले, ‘नहीं! उम्र बदलती है, शरीर बदलता है, लेकिन मैं कभी नहीं बदला! मैं तो जो बचपन में था, जो मेरे भीतर था, वह आज भी है!’ इस बार संत खिलखिलाते हुए बोले, ‘अब तो शरीर और उम्र दोनों तुम्हारा परिचय नहीं हैं। अब जल्दी से अपना असली परिचय लिखकर दो कि असलियत में तुम कौन हो? जिससे मैं सही जानकारी ईश्वर तक पहुँचा सकूँ नहीं तो मैं भी अनावश्यक ही ईश्वर के समक्ष झूठा सिद्ध हो जाऊँगा।’
संत की बातों ने राजा को उलझन में डाल दिया था। माथों पर सलवटें लिए वे बोले, ‘मैं तो जानता ही नहीं हूँ कि मैं हूँ कौन? अब मैं आपको अपना सही परिचय कैसे दूँ? अभी तो मैं इन्हीं बातों को अपना परिचय मानता था।’ इसे सुन संत गंभीर भाव के साथ बोले, ‘राजन, पहले जाकर ख़ुद को खोजो, फिर ईश्वर को खोजना। यक़ीन मानना, जिस दिन तुम यह जान लोगे कि तुम कौन हो, उस दिन तुम्हें भगवान को खोजने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी क्योंकि जिसने खुद को जान लिया उसने परमात्मा को पा लिया!
दोस्तों, अब तो आप समझ ही गए होंगे कि लेख की शुरुआत में मैंने किस व्यक्ति के विषय में चर्चा करी थी। अर्थात् इस दुनिया में सिर्फ़ आप ख़ुद ही हैं, जो ख़ुद की मदद करके ख़ुदा को पाने के सपने तक को पूरा कर सकते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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