July 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी कहानी से करते हैं जो निश्चित तौर पर हमारे जीवन को नया आयाम दे सकती है। बात कई साल पुरानी है, गुरुकुल में शिक्षा लेने आए एक बच्चे ने जंगल से एक तोता पकड़ा और उसे आश्रम ले आया और उसे एक पिंजरे में रख लिया। गुरु को जब इस विषय में पता चला तो उन्होंने शिष्य को बुलाया और उसे समझाया कि हमें दूसरे पक्षी की आज नहीं छीनना चाहिए क्योंकि किसी की दया पर निर्भर रहते हुए जीवन जीना इस संसार का सबसे बड़ा अभिशाप है। लेकिन शिष्य कम उम्र के कारण गुरु की बात की गहराई नहीं समझ सका और बाल मन के कारण उसने तोते को पिंजरे में ही बंद रहने दिया।
गुरु ने सोचा कम उम्र के कारण शिष्य को समझाना तो थोड़ा मुश्किल हो रहा है इसलिए क्यों ना मैं यह बात तोते को ही समझा दूँ। विचार आते ही गुरु ने तोते को स्वतंत्र होने का पाठ सिखाना शुरू कर दिया। अब वे रोज़ सुबह सबसे पहले तोते के पास जाते और उसे सिखाते कि ‘पिंजरा छोड़ो उड़ जाओ… पिंजरा छोड़ो उड़ जाओ…’, कुछ ही दिनों में तोते ने इस पाठ को अच्छे से रट लिया। अब तो तोता गुरु की मौजूदगी के बिना भी इस पाठ को दोहराता था।
कई दिन ऐसे ही बीत गए, एक दिन सफ़ाई के दौरान शिष्य से पिंजरा खुला छूट गया, जिसके कारण तोता उससे बाहर निकल गया और आराम से मुँडेर पर घूमते हुए ऊँचे स्वर में दोहराने लगा, ‘पिंजरा छोड़ो, उड़ जाओ… पिंजरा छोड़ो, उड़ जाओ…’ तभी अचानक ही गुरु का उस ओर आना हुआ। वे तोते को देख कुछ समझ पाते उससे पहले ही तोता गुरु को अपनी ओर आता देख एकदम से पिंजरे में घुस गया और जोर जोर से अपना पाठ दोहराने लगा। संत तोते को देख आश्चर्यचकित होने के साथ-साथ दुखी थे। वे सोच रहे थे कि तोते ने पाठ के शब्दों को रट तो लिया, लेकिन वह उसमें छिपे गूढ़ अर्थ को समझ नहीं पाया; उसे अपने जीवन में उतार नहीं पाया।
अगर आप गंभीरता पूर्वक उपरोक्त कहानी पर विचार करते हुए अपने जीवन को देखेंगे तो पायेंगे कि हम सब भी यही गलती अपने जीवन में दोहरा रहे हैं। हम सब जीवन को बेहतर बनाने वाली ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें करते, सुनते और सीखते तो हैं, लेकिन कभी उसके मर्म को समझ नहीं पाते। इसीलिए सब कुछ अच्छा होने के बाद भी उसे अपने जीवन में उतार नहीं पाते हैं और परेशानी और दुख भरा जीवन जीते रहते हैं।
जी हाँ दोस्तों, रोज़ जीवन को बेहतर बनाने के विषय में सोचना, सोच के आधार पर सपना बुनना और उसे पूरा करने के लिए आवश्यक हुनर को सीख लेना भी सफल नहीं बनाता है। इसीलिए हम रोज़ जीवन में आगे बढ़ने या सफल होने के मंसूबों को गढ़ने के बाद भी उस पर टिक नहीं पाते है और फिर झुँझलाहट के साथ जीवन जीते हैं। अर्थात् बहुत सूचना और फिर उस पर टिक ना पाना हमारे अंदर झुँझलाहट पैदा करता है और हम इसी झुँझलाहट में ख़ुद पर लापरवाह, आलसी और नाकाबिल होने का ठप्पा लगा कर, समझौता भरा जीवन जीना शुरू करते हैं। दोस्तों, अगर आप वाक़ई लक्ष्यों को पाना चाहते हैं तो सिर्फ़ सोचे नहीं बल्कि ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए कार्य करें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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