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ख़ुशी और शांति के लिए टटोलें ख़ुद की गठरी…

Writer: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

July 31, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात उस वक़्त की है जब आम इंसान पैदल ही यात्रा किया करते थे और इसी लिए उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में बहुत अधिक समय लगा करता था। इसलिए लोग समूह में लंबी यात्रा किया करते थे और कभी किसी को अकेले जाना भी होता था तो वह किसी अन्य समूह के साथ जुड़ जाता था। ऐसा ही कुछ राजू के साथ एक व्यवसायिक यात्रा के दौरान हुआ था, जब एक अजनबी ने उससे उसके साथ यात्रा करने की अनुमति माँगी, जिसे राजू ने तुरंत स्वीकार कर लिया।


मंज़िल एक होने के कारण दोनों ने सात दिनों तक एक साथ यात्रा करी, लेकिन जब दोनों के अलग होने का समय आया तो अजनबी राजू से बोला, ‘भाई साहब! एक सप्ताह तक हम दोनों साथ रहे, क्या आप मुझे पहचान पाए कि मैं कौन हूँ?’ राजू बोला, ‘माफ़ कीजियेगा, मैं आपको नहीं पहचान पाया।’ इस पर वह शख़्स बोला, ‘महोदय, मैं इस इलाक़े का एक नामी ठग हूँ, परन्तु आप तो महाठग हैं। आप तो मेरे भी गुरु निकले।’ अजनबी की बात पर आश्चर्य प्रकट करते हुए, जब राजू ने इसकी वजह पूछी तो वह बोला, ‘आपका सामान चुराने के उद्देश्य से मैं पिछले सात दिनों से लगातार आपके सामान की तलाशी ले रहा हूँ, लेकिन मुझे कभी कुछ नहीं मिला। यह तो संभव नहीं लगता है कि आप बिना कुछ लिये ही इतनी लंबी यात्रा पर निकले हों।’ प्रश्न सुनते ही राजू मुस्कुराया और बोला, ‘सही कह रहे हैं आप, मैं इस यात्रा के लिए कुछ रजत मुद्रायें और एक बहुमूल्य हीरा लेकर निकला हूँ।’ इतना सुनते ही वह अजनबी हैरानी के साथ बोला, ‘अगर ऐसा है तो इतना प्रयत्न करने के बाद भी मुझे वह मिले क्यों नहीं?’ राजू हंसते हुए बोला, ‘क्योंकि बाहर जाते वक्त मैं उन्हें चुपके से तुम्हारे बेग में रख देता था और तुम इतने दिनों तक सिर्फ़ मेरी झोली टटोलते रहे।’ इतना कहकर राजू कुछ पलों के लिए एकदम शांत हो गया, फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘तुम मेरी झोली तलाशने में इतने व्यस्त रहे कि तुम एक बार भी अपनी झोली को नहीं देख पाये। इसलिए तुम्हें कुछ नहीं मिला।’


कुछ समझ पाये दोस्तों? असल में इस कहानी का ‘अजनबी’ वाला पात्र असल में हमारा प्रतिबिंब है। यही गलती हम जीवन रूपी इस यात्रा में कर रहे हैं। याने जिंदगी की इस यात्रा में हमारी निगाह वहाँ पर नहीं हैं, जहाँ होना चाहिए। दूसरे शब्दों में कहूँ तो दूसरे की थाली में घी अधिक देखने की आदत के चक्कर में हम अपनी थाली देखना ही भूल गए हैं। इसलिए आज का इंसान, अपने सुख से सुखी नहीं बल्कि दूसरे के सुख से दुखी है क्योंकि उसकी निगाह सदैव दूसरे की गठरी पर होती है।


जी हाँ दोस्तों, ईश्वर नित नई ख़ुशियाँ हमारी झोली में डालता है; प्रतिदिन हमें खुश रहने के लिए छियासी हज़ार चार सौ सेकंड देता है परंतु हम ईश्वर के दिये इस समय को दूसरों की गठरी में झांकने में बर्बाद कर देते है। हमारे पास अपनी गठरी पर निगाह डालने की फ़ुरसत ही नहीं है और यही आज के युग की सबसे बड़ी मूलभूत समस्या है। सोच कर देखियेगा, अगर इंसान दूसरों की ताक-झांक करना बंद कर दे तो उसकी ज़्यादातर समस्याओं का समाधान उसी पल हो जाएगा या नहीं?


दोस्तों, इस जीवन में खुश रहने का एक ही गूढ़ मूल मंत्र है, ‘जीवन को ख़ुद की गठरी को टटोलने याने ख़ुद के अंदर झांकने में लगाएँ और जीवन पथ पर आगे बढ़ें।’ जल्द ही आप पाएँगे कि ढेरों सफलताएँ पहले से आपकी प्रतीक्षा कर रही है। जी हाँ दोस्तों ईश्वर प्रदत्त जीवन रूपी इस समय को, स्वयं को शुद्ध करने में लगाना और अपनी ग़लत आदतों और भावनाओं को पहचानकर उन्हें सद्चरित्र और संस्कृति के अनुरूप सुधारना ही हमें ख़ुशी, शांति और सफलता की ओर ले जाता है। अपनी प्रवृतियों को परिष्कृत करके ही हम पूर्णता को प्राप्त कर पाते हैं।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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