Dec 08, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, बचपन में परिवार के बड़े-बुजुर्गों को कई बार कहते सुना था कि ‘ख़ुद मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता!’ तब अक्सर इस लोकोक्ति को मैंने नकारात्मक भावों जैसे ताना मारने, नीचा दिखाने आदि के लिए ज़्यादा उपर्युक्त समझा था। लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ते हुए जीवन ने मुझे परिपक्व बनाया, मुझे एहसास हुआ कि यह मंत्र, जी हाँ दोस्तों, ‘ख़ुद मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता!’ को मैं मंत्र की छड़ी कहूँगा, जो हमारे जीवन को सार्थक बनाने की शक्ति रखता है। आप भी सोच रहे होंगे कि ‘मैं भी कैसी अजीब सी बातें कर रहा हूँ!’ तो चलिए कोई भी धारणा बनाने से पहले थोड़ा गंभीरता के साथ इस विषय पर चर्चा कर लेते हैं।
‘ख़ुद मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता!’ याने ख़ुद कार्य किए बिना सफलता नहीं मिलती। अर्थात् जब तक हम कोई कार्य ख़ुद नहीं करते हैं, तब तक हमें अपने कार्य में सफलता नहीं मिलती है। यह बात जितना हमारे भौतिक और बाहरी लक्ष्यों के लिए सही है, उतनी ही सही हमारे आध्यात्मिक और आंतरिक लक्ष्यों के लिए भी सटीक है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जीवन में आत्मिक शांति, सुख और ख़ुशी को भी सिर्फ़ और सिर्फ़ इसी सूत्र से पाया जा सकता है। अर्थात् जब तक हम अपनी जीवन शैली में ख़ुद बदलाव लाकर इन लक्ष्यों को पाने के लिए कार्य नहीं करेंगे, तब तक हमें कोई भी भौतिक सफलता या पूजा-पाठ अथवा हमारा भाग्य या क़िस्मत भी हमें आत्मिक शांति, सुख और ख़ुशी नहीं दिला सकता है।
इसलिए मैं हमेशा कहता हूँ, ‘खुश रहना क़िस्मत या भाग्य की नहीं बल्कि चुनाव की बात है।’ हम अपनी सोच, अपने निर्णय और अपने कर्मों के द्वारा जीवन को सुखी या दुखी बनाते हैं। ज़िंदगी तो उतार-चढ़ाव, फ़ायदे-नुक़सान से भरी ही रहने वाली है। इन उतार-चढ़ाव या फ़ायदे-नुक़सान के दौर में आप किस तरह की सोच रखते हैं, कैसे निर्णय लेते हैं और किस तरह के कर्म करते हुए अपने जीवन को आगे बढ़ाते हैं; अपने समय का उपयोग किस तरह करते हैं, यह जीवन के प्रति आपके नज़रिए को तय करता है। अर्थात् उतार-चढ़ाव, फ़ायदा-नुक़सान आपको शांत या अशांत; सुखी या दुखी नहीं बनाता है यह तो जीवन के प्रति आपके नज़रिए से निर्धारित होता है।
जी हाँ साथियों, जीवन में तो हमारे सामने अनगिनत चुनौतियाँ और परिस्थितियाँ आएँगी, जो हमें जीवन के विभिन्न रंग दिखायेंगी; हमारा परिचय जीवन के विभिन्न पहलुओं से करायेंगी। यह निश्चित तौर पर हमारे ऊपर निर्भर करेगा कि हम इन रंग या पहलुओं को किस तरह देखते हैं; इनका क्या अर्थ निकालते हैं और इनसे लाभ लेते हैं या इसे नुक़सान के रूप में देखते हैं। यह निश्चित तौर पर हमारा व्यक्तिगत चुनाव या पसंद होती है। इस आधार पर रोज़मर्रा में घटने वाली घटनाओं को सकारात्मक नज़रिये से देखना सीख लिया जाए तो खुशहाल जीवन जीना बड़ा आसान हो जाता है।
इसलिए साथियों मेरा मानना है, ‘ख़ुशी कोई हासिल करने की चीज नहीं है। इसे तो हम अपनी स्थायी जीवनशैली बना सकते हैं।’ इस बात को मैं अपने जीवन अनुभव से आपको समझाने का प्रयास करता हूँ। अपनी ज़िंदगी में मैंने बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं, कई बार असफलता का स्वाद चखा है। जीवन के यह हालात या विभिन्न स्तर पर मिली असफलता के नकारात्मक अनुभव मुझे भी परेशान, हताश और निराशा करते थे। लेकिन मैंने परेशानी, निराशा और हताशा चुनने के स्थान पर असफलता से मिले अनुभव को चुना, जिसने अंततः मेरा परिचय सफलता से करवाया।
दोस्तों, नकारात्मक से नकारात्मक अनुभवों को सकारात्मक तरीक़े से देखने का नज़रिया आपको हताशा, निराशा और परेशानी के स्थान पर ख़ुशी चुनने में मदद करता है और जब आप ख़ुशी, शांति और सुख को चुनते हैं तो अंतिम परिणाम स्वतः ही आपके पक्ष में आ जाता है। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था ख़ुशी परिणाम नहीं चुनाव है। इसलिए दोस्तों आज नहीं, अभी से ही ख़ुशी, सुख और संतुष्टि के लिए दूसरों की स्वीकृति या बाहरी परिणामों की प्रतीक्षा करना बंद करते है और ख़ुद को हर उस चीज को स्वीकारने के लिए तैयार रखते हैं जो हमारे जीवन में संतोष, संतुष्टि और प्रसन्नता लाती है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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