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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

ख़ुशी महसूस करवाने वाली 6 धारणाएँ जो असल में हमारी ख़ुशियाँ चुराती हैं - भाग 3

Jan 20, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में विज्ञान विभाग के निदेशक एमिलियाना साइमन-थॉमस के अनुसार लोकप्रिय मीडिया और मार्केटिंग के भ्रामक तरीक़ों के कारण हम आजकल उन तरीक़ों को ख़ुशी पाने का साधन मान रहे हैं जो असलियत में हमारी सारी ख़ुशी चुरा रहे हैं। पिछले 2 दिनों में आंतरिक ख़ुशी चुराने वाली ऐसी ही 6 धारणाओं में से हमने 4 धारणाओं को पहचानने का प्रयास किया था। आईए, अंतिम 2 धारणाओं को समझने के पहले संक्षेप में उन्हें दोहरा लेते हैं-


1) नकारात्मक भावों को दबाना या नज़रंदाज़ करना

येल विश्वविद्यालय में संज्ञानात्मक वैज्ञानिक और मनोविज्ञान के प्रोफेसर लॉरी सैंटोस द्वार की गई रिसर्च के परिणाम बताते हैं कि खुश रहते हुए सार्थक जीवन जीने के लिए भय, क्रोध, आक्रोश जैसे अन्य नकारात्मक भावों को दबा कर हर पल अच्छा महसूस करने के प्रयास इंसान को भावनात्मक रूप से ज़्यादा अस्थिर बनाते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक़ हताशा, घृणा जैसी भावनाओं को दबाना मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर आक्रामक बनाता है। ऐसे इंसान मज़बूत रिश्ते नहीं रख पाते हैं। यह स्थिति असामयिक मृत्यु के जोखिम को भी बढ़ाती है। इसलिए नकारात्मक भावों को दबाने या नज़रंदाज़ करने के स्थान पर उन्हें डील करना सीखें।


2) शहरी जीवन को बेहतर मानना

दूर से देखने पर शहर की चकाचौंध हर इंसान को अपनी ओर आकर्षित करती है, लेकिन इससे आंतरिक शांति की अपेक्षा रखना बेमानी है। कनाडा स्थित वाटरलू विश्वविद्यालय के न्यूरोसाइंटिस्ट कॉलिन एलार्ड द्वारा किया गया एक अध्ययन बताता है कि हमारे अंतर्मन को प्रकृति द्वारा 150 लोगों के सामाजिक ढाँचे के बीच रहने के हिसाब से बनाया गया है। जब हम इस सामाजिक ढाँचे के बाहर भीड़ के बीच रहते हैं, तब हम असुरक्षित, अनिश्चितता से भरा महसूस करते हैं। डर, असुरक्षा और अनिश्चितता का यह माहौल हमारे अंदर कोर्टिसोल जैसे तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन के स्तर को बढ़ाता है। अगर आप पहले से शहरी क्षेत्र में रह रहे हैं तो अनावश्यक तनाव बढ़ाने वाले कारणों को पहचानें और अपने आस-पास के माहौल में उन्हें दूर करने के लिए योजना बनाएँ।


3) अधिक समय तक फ़्री रहना

अधिक समय तक फ़्री रहना गुणवत्ता पूर्ण समय का उपयोग कर जीवन जीने की निशानी नहीं है। वर्ष 2021 में जर्नल ऑफ पर्सनेलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, प्रतिदिन अधिकतम 2 घंटों तक का फ़्री समय हमें क्वालिटी टाइम बिताने का मौक़ा देता है। लेकिन अगर यह बढ़कर 5 घंटे प्रतिदिन तक पहुँच जाए तो यह नुक़सानदायक हो जाता है। व्हार्टन स्कूल में विपणन के सहायक प्रोफेसर एवं लेखक मारिसा शरीफ कहते हैं, ‘यदि आपके पास बहुत अधिक विवेकाधीन समय है, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि आप अधिक खुश होंगे। बल्कि कुछ मामलों में तो यह ये दर्शाता है कि आपके पास उद्देश्य और अर्थ की कमी है।’ अगर आप अधिक समय तक फ़्री रह रहें हैं तो सजग और सचेत रहते हुए सोचें कि ख़ाली समय का बेहतर तरीक़े से उपयोग कैसे किया जा सकता है जिससे आप खुद को अधिक उत्पादक और अपने जीवन को उद्देश्यपूर्ण तरीके से जी सकें। उदाहरण के लिए किसी छूटी हुए हॉबी को फिर से पकड़ना, सेवा कार्य करना, अपने ज्ञान को जरूरतमंदों के साथ बाँटना आदि।


4) नाम, पद, पहचान या पैसे का पीछा करना

बचपन से सफलता को नाम, पद, पहचान और पैसे से जोड़कर दिखाना, ग़लत धारणा को जन्म देता है। जबकि हैपीनेस विशेषज्ञों के अनुसार ढेर सारा पैसा, उच्च वेतन वाली नौकरी, बड़ा पद, पहचान आदि से मिली ख़ुशी तात्कालिक होती है और विपरीत तुलनात्मक स्थिति बनने पर अक्सर दुखी करती है। इसके स्थान पर जो हमारे पास है उसकी सराहना करना, हर स्थिति-परिस्थिति के लिए आभारी रहना आपको खुश रहना सिखाता है।


चलिए साथियों, अब हम अंतिम 2 सूत्र सीखते हैं-


5) संसाधनों में ख़ुशी तलाशना

पैसे, संसाधन और ख़ुशी के बीच एक बड़ा जटिल रिश्ता होता है। लग्ज़री संसाधनों को ख़रीद कर कुछ समय के लिए, एक निश्चित बिंदु तक खुश हुआ जा सकता है, हमेशा के लिए नहीं। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर और हैप्पी मनी पुस्तक के सह-लेखक माइकल नॉर्टन के अनुसार अपने पैसे को डिजाइनर कपड़े, चमकदार नई कारें, नवीनतम गैजेट या अन्य लग्ज़री सामान पर खर्च करना हमें खुश नहीं करता है। बल्कि जैसे-जैसे हम भौतिकवादी होते जाते हैं हमारी ख़ुशी घटती जाती है। इसके अर्थात् भौतिक चीजों के स्थान पर अगर पैसे को अनुभवों को पाने में खर्च किया जाए तो अधिक आनंद और ख़ुशी प्राप्त की जा सकती है। उदाहरण के लिए किसी अपने के साथ डिनर पर जाना, कोई मनपसंद कार्य करना, दूसरों की मदद करना आदि।


6) अनुकूल माहौल की अपेक्षा करना

हर पल हमें परिवार, कार्यालय या समाज में अनुकूल माहौल मिलेगा, ऐसी अपेक्षा रखना अक्सर निराशा की ओर ले जाता है। जीवन में अनिश्चितताओं का होना उसके गतिमान होने की निशानी है। अस्थिरता या कुछ खो या छूट जाने के डर से चिंतित रहना आपके वर्तमान को प्रभावित करता है। इसके स्थान पर अपने मन को शांत रखना, अपने फ़ोकस को अपने कार्य पर बनाए रखना और विपरीत मत के बाद भी लोगों से जुड़े रहना, उनकी आँखों में आँखें डाल कर बात करना आपको शांति और ख़ुशी की ओर ले जाता है। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट के संस्थापक संपादकों में से एक जॉन हेलिवेल द्वारा लोगों के एक समूह पर एक प्रयोग किया गया। इसके तहत उन्होंने कुछ लोगों से प्रश्न किया था कि अगर उनकी जेब से 200$ रखा पर्स गिर जाएगा तो वे कैसा महसूस करेंगे? जवाब में जिन लोगों को विश्वास था कि उन्हें किसी ना किसी तरह से वह पर्स वापस मिल जाएगा, दूसरे समूह, जिन्हें पर्स वापस मिलने की सम्भावना नहीं थी, के मुक़ाबले अधिक खुश थे। इसकी मुख्य वजह पहले समूह का यह सोचना था कि लोग उनकी परवाह करते हैं। इसलिए दोस्तों अनुकूल माहौल की अपेक्षा करने के मुक़ाबले अनुकूल माहौल देने का प्रयास करें क्योंकि इससे आप लोगों को एहसास करवा पाएँगे कि आप उनकी परवाह करते हैं और बदले में आप उन्हें आपकी परवाह करता हुआ पाएँगे।


आशा करता हूँ दोस्तों, उपरोक्त 6 धारणाओं को छोड़कर साथ ही बताए गए सुझावों पर अमल कर आप अपने जीवन को ज़्यादा बेहतर और खुशहाल बना पाएँगे।


निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर



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