गर्व के भाव से संजोये अपनी गौरवशाली परम्पराओं को…
- Trupti Bhatnagar
- Aug 19, 2024
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रक्षाबंधन एवं संस्कृत दिवस विशेष…
August 19, 2024

सर्वप्रथम तो आप सभी को रक्षाबंधन और विश्व संस्कृत दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। जैसा कि हम जानते हैं कि रक्षा बंधन और संस्कृत दिवस दोनों ही भारतीय संस्कृति और विरासत के महत्वपूर्ण अंग हैं, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं और हमें अपनी परंपराओं का सम्मान करने की प्रेरणा देते हैं। लेकिन कई बार संस्कृति और उसकी विरासत की सही और सटीक जानकारी ना होने के कारण युवा पीढ़ी इन्हें ढकोसला करार देकर इससे दूर हो जाती है।
उदाहरण के लिए पूर्व में अक्सर त्योहारों पर पूजास्थल के आस-पास संस्कृत के श्लोक या मंत्र सुनाई देते थे और हमारे परिवार के बड़े-बुजुर्ग अक्सर अपने दिन की शुरुआत संस्कृत के मन्त्रों और श्लोकों से किया करते थे। इतना ही नहीं आज की पीढ़ी ने भी अपने विद्यालय में दिन की शुरुआत प्रार्थना के समय संस्कृत के श्लोकों के साथ ही की होगी। लेकिन इसके बाद भी आज संस्कृत के ये मंत्र, ये श्लोक कभी-कभार ही सुनाई देते हैं।
अगर आप ख़ुद को और आने वाली पीढ़ियों को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़े रखना चाहते हैं, तो उनसे इसके विषय में तथ्यात्मक चर्चा कीजिए, जिससे उनके मन में अपने धर्म, अपनी संस्कृति के लिए गर्व का भाव पैदा हो सके। जैसे अगर आप उनमें राखी और संस्कृत के लिए गर्व का भाव पैदा करना चाहते हैं, तो उन्हें बताइए कि संस्कृत दुनिया की अकेली ऐसी भाषा है जिसे बोलने में जीभ की सभी मांसपेशियो का इस्तेमाल होता है। इसी लिये संस्कृत का प्रयोग स्पीच थेरेपी के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है, जिससे शरीर सकारात्मकता के साथ सक्रिय हो जाता है। इस पर आधारित अमेरिकन हिंदु युनिवर्सिटी की एक शोध के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाता है।
आपको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि संस्कृत से दिमाग तेज होता है और इंसान की स्मरण शक्ति बढ़ जाती है। इसलिए लंदन और आयरलैंड के कई स्कूलों में संस्कृत को आवश्यक विषय बना दिया है। वर्तमान में 17 से ज्यादा देशों में तकनीकी शिक्षा में संस्कृत पढ़ाई जाती है। हमारे देश में कई संस्कृत भाषी गाँव हैं, जहाँ के लोग आम बोलचाल में भी संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं। इन सभी गाँवों की एक और ख़ासियत है, यहाँ लगभग हर घर में एक इंजीनियर या मेडिकल की पढ़ाई करने वाला युवा मौजूद है। ऐसा ही एक संस्कृत भाषी गांव बैंगलुरू से तक़रीबन 300 किमी दूर है, जिसका नाम मत्तूर है।
एक ओर जहाँ दुनिया संस्कृत की महिमा को समझकर संस्कृत सीखना चाह रही है; उसे स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटीज के पाठ्यक्रम में जोड़ रही है, वहीं हम अपनी ही धरोहर को संजोने के लिए प्रयासरत नहीं है। ऐसा ही कुछ आजकल हमारे त्यौहारों के साथ भी हो रहा है। जैसे हमारे यहाँ कई परिवारों द्वारा रक्षाबंधन के त्यौहार को भी सिर्फ़ एक इवेंट के रूप में देखा जा रहा है। इससे बचने के लिए हमें युवाओं को बताना होगा कि सभी भारतीय त्यौहारों का अपना एक इतिहास है और उन सब के पीछे कई तथ्य छुपे हैं। जैसे, हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन का भी अपना एक विशेष महत्व है। इस दिन इंद्र की पत्नी सची ने इंद्र की कलाई पर रक्षा के लिए एक धागा बांधा था। इसी तरह देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर भगवान विष्णु को घर वापस भेजने का अनुरोध किया था। द्रौपदी ने कृष्ण को राखी बाँधी थी और कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को युद्ध के लिए रवाना होने से पहले राखी बाँधी थी। रक्षा बंधन का उल्लेख 326 ईसा पूर्व के सिकंदर महान से जुड़ी किंवदंतियों में भी मिलता है।
इतना ही नहीं इस दिन याने श्रावणी पूर्णिमा अर्थात् रक्षाबन्धन को प्राचीन भारत में हर वर्ष नवीन शिक्षण सत्र की शुरुआत होती थी। इसी दिन छात्र शास्त्रों के अध्ययन और वेद पाठ का प्रारंभ किया करते थे। आज भी श्रावणी पूर्णिमा के दिन भारत में गुरुकुलों में वेदाध्ययन कराने से पहले यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। इस संस्कार को उपनयन अथवा उपाकर्म संस्कार भी कहते हैं। प्राचीन भारत में उपनयन संस्कार में ब्राह्मण रक्षासूत्र भी बांधते थे। इसीलिए रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के रिश्तों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता, उत्तरदायित्व और प्रेम का भी प्रतीक है। वैदिक साहित्य में इसे श्रावणी और ऋषि पर्व भी कहा जाता था और इसीलिए विश्वभर में प्रतिवर्ष श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
मेरी नज़र में तो अपने गौरवशाली सांस्कृतिक इतिहास और संस्कारों को संजोने का उपरोक्त ही एकमात्र तरीक़ा है। विचार कर अपने मत से अवगत कराइयेगा…
तृप्ति भटनागर
एनर्जी हीलर एवं कोच
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