June 14, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, शिक्षकों के लिए किये गए एक ट्रेनिंग सेशन के पश्चात एक शिक्षिका आकर मुझसे मिली और बोली, ‘सर, वैसे तो मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि बिना ज्ञान जीवन में सफल होना सम्भव नहीं है। लेकिन आज के परिपेक्ष में कई बार लगता है कि सफलता के लिए ज्ञान से ज़्यादा ज़रूरी बॉस को मक्खन लगाना, आना हो गया है।’ उनकी बात सुन मैं मुस्कुराया और बोला, ‘आपको ऐसा क्यूँ लगता है?’ तो वे पूर्ण गम्भीरता के साथ बोली, ‘सर, मैं अपने सभी साथी शिक्षकों के मुक़ाबले ज़्यादा पढ़ी-लिखी हूँ। इतना ही नहीं, मुझे स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों ही परीक्षा में गोल्ड मेडल भी मिला है। उसके बाद भी मुझसे कम पढ़े-लिखे लोग आज मुझसे बेहतर स्थिति में हैं।’ प्रश्न के दौरान उनकी पीड़ा उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। इसलिए पहले तो मैंने उन्हें शांत करा और फिर एक कहानी सुनाई जो इस प्रकार थी-
शहर के मध्य एक लकड़ी का व्यापारी था, जिसके यहाँ कई लकड़हारे काम किया करते थे। इन्हीं लकड़हारों में एक रामू काका भी थे जो सबसे बुजुर्ग होने के बाद भी रोज़ सबसे ज़्यादा पेड़ काट कर लाया करते थे। इसी वजह से मालिक रामू काका को बुजुर्ग होने के बाद भी सबसे ज़्यादा सैलरी और साथ ही दोपहर में भोजन और आराम करने के लिए 30 मिनिट की छुट्टी दिया करता था और साथ ही अन्य लकड़हारों के सामने रामू काका की काफ़ी तारिफ़ भी किया करता था।
एक बार उस लकड़ी के व्यापारी ने एक नए लकड़हारे को नौकरी पर रखा। यह नया लकड़हारा भी बहुत मेहनती था और प्रतिदिन रामू काका के समान ही अन्य लकड़हारों के मुक़ाबले अधिक लकड़ी काट कर लाया करता था। एक दिन जब उसे रामू काका को मिलने वाली अतिरिक्त सुविधाओं के विषय में पता चला तो वह अपने मालिक के पास गया और बोला, ‘मालिक आप हमेशा सिर्फ़ रामू काका की तारिफ़ किया करते हैं। जबकि वे अन्य लकड़हारों के मुक़ाबले धीमी गति से काम करते हैं और साथ ही दोपहर में 30 मिनिट विश्राम भी करते हैं। यह सही नहीं है।’
पहले तो मालिक ने नए ऊर्जावान मेहनती लकड़हारे को समझाने का प्रयास करा, लेकिन जब वह नहीं माना तो व्यापारी बोला ऐसा करते हैं कल रामू काका और तुम्हारे बीच एक प्रतियोगिता करा लेते हैं। अगर तुम रामू काका से ज़्यादा पेड़ काट कर लाए तो रामू काका को दी जाने वाली सारी अतिरिक्त सुविधाएँ तुम्हें दे दी जाएँगी।
अगले दिन तय समय पर मालिक ने दोनों के बीच प्रतियोगिता शुरू करा दी। एक ओर जहाँ युवा लकड़हारा बहुत तेज गति से पेड़ काट रहा था वही दूसरी ओर बुजुर्ग रामू काका रोज़ की ही भाँति अपनी गति से काम कर रहे थे। एक ओर जहाँ आधा दिन बीतने तक रामू काका 6-7 पेड़ काट पाए थे वहीं युवा लकड़हारा 8-9 पेड़ काट चुका था। इसके बाद भी रामू काका ने दोपहर होते ही भोजन का अवकाश लिया और आधे घंटे के लिए आराम करने चले गए। इस दौरान वह युवा पूरे जोश से पेड़ काटने में व्यस्त रहा।
इस स्थिति को देख वहाँ मौजूद सभी लोगों को लगने लगा था कि आज रामू काका हार जाएँगे और युवा विजेता बन, सारी अतिरिक्त सुविधाओं का हक़दार बन जाएगा। ख़ैर, आराम का समय पूरा होने के बाद रामू काका वापस आए और रोज़ की ही भाँति अपने काम में लग गए। तय समय पर मालिक ने प्रतियोगिता खत्म करी और गिनती कर बताया कि युवा लकड़हारे ने कुल बारह पेड़ काटे हैं और रामू काका ने चौदह। सभी मौजूद लोग परिणाम जानकर हैरान थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इतने आराम से काम करने के बाद भी रामू काका ने बेहतर परिणाम कैसे दिया? तभी युवा लकड़हारा रामू काका के पास गया और बोला, ‘काका, मैं अपनी हार स्वीकारता हूँ। लेकिन कृपया यह बताइए कि कम शारीरिक क्षमता होने के बाद भी धीमी गति और ब्रेक लेने के बावजूद भी आपने बेहतर परिणाम कैसे दिया?’ युवा लकड़हारे की बात सुन रामू काका मुस्कुराए और बोले, ‘भोजन अवकाश के दौरान जब तुम लकड़ी काटने में व्यस्त थे, तब मैंने थोड़ी देर आराम कर, अपनी ऊर्जा को वापस संग्रहित करा और साथ ही अपनी कुल्हाड़ी पर धार भी मारी। इसी वजह से मैं ज़्यादा बेहतर परिणाम दे पाया।’
कहानी पूर्ण होने के बाद मैंने उन शिक्षिका से कहा, ‘मैडम, शिक्षा के दौरान जीते हुए गोल्ड मेडल वर्तमान परिस्थितियों में आपको आगे नहीं रख सकते हैं। उसके लिए तो आपको अपने स्वयं में धार लगाना पड़ेगी याने आज की बदली हुई परिस्थितियों के अनुसार आपको नया ज्ञान अर्जित करना पड़ेगा। अक्सर जिन्हें हम ‘मक्खन मार’ कर आगे बढ़ने वाला समझते हैं, उनमें भी कोई ना कोई योग्यता अतिरिक्त होती है जिसकी वजह से वे जीवन में आगे बढ़ पाते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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