top of page
Writer's pictureNirmal Bhatnagar

गुरु बिन ज्ञान कहाँ…

Mar 6, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान एक सज्जन मेरे पास आए और बोले, ‘सर, आज के आपके संवाद में आपने अपने गुरु और शिक्षकों के बारे में 5 से 6 बार बोला। मुझे लगता है ऐसे मंचों पर यह कहना उचित नहीं है। इससे आपकी क्षमताओं और योग्यताओं पर प्रश्न उठता है। हो सकता है, आपको सुनने वाले लोगों को ऐसा लगे कि आपने तो जीवन में कुछ किया ही नहीं है आप सिर्फ़ अपने गुरुओं की कही बातों को हमारे बीच दोहरा रहे हैं।’


प्रश्न सुन मैं मुस्कुराया और बोला, ‘मित्र, मैंने तो वही बोला है जो मैंने किया है। आज मैं जहाँ भी हूँ अपने गुरु के आशीर्वाद और उनकी सिखाई बातों की वजह से ही हूँ।’ चलो अपनी बात मैं तुम्हें एक प्यारी सी कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ। बात कई साल पुरानी है, गाँव के मंदिर में एक बहुत ज्ञानी पंडित रहा करते थे। पंडित जी के पास एक बहुत ही प्यारा सा तोता था जो राम-राम और साथ ही कई मंत्र बोलने में माहिर था। पंडित जी का राम कथा कहने का लहजा इतना अच्छा था कि लोग दूर-दूर से उन्हें सुनने के लिए आते थे। राम कथा के अंत में पंडित जी ‘राम जपे तो बंधन टूटे!’ कहा करते थे।


वैसे तो सब-कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन फिर भी कथा के अंत में पंडित जी बड़े दुखी और क्रोधित हो ज़ाया करते थे क्योंकि ‘राम जपे तो बंधन टूटे!’ कहते ही उनका तोता जोर से कहा करता था, ‘यूँ झूठ मत बोल रे पंडित!’ असल में पंडित जी को यह डर सताता था कि कहीं तोते की कही बातों की वजह से लोग उनके या उनके द्वारा दिए गए प्रवचनों के बारे में ग़लत ना सोचने लगें।

एक दिन पंडित जी इस समस्या का हल पूछने के लिए अपने गुरु के पास गए और उन्हें पूरा क़िस्सा कह सुनाया। गुरु जो पक्षियों की भाषा के ज्ञानी थे, तुरंत तोते के पास गए और उससे ऐसा कहने का कारण पूछने लगे। तोते ने गुरु को प्रणाम करते हुए कहा, ‘गुरुजी पहले में भी मानता था कि ‘राम जपे तो बंधन टूटे!’ इसीलिए रोज़ राम-राम जपते हुए पंडित जी की कथा सुनने पहुँच ज़ाया करता था। एक दिन जब पंडित जी गाँव के सेठ के यहाँ कथा कह रहे थे तब उस सेठ ने कथा की समाप्ति पर धोखे से मुझे पकड़ लिया और पिंजरे में डाल दिया। इसके पश्चात सेठ ने मुझे राजा को उपहार स्वरूप दे दिया। राजा ने मुझे चाँदी के एक बड़े पिंजरे में रख दिया और रोज़ मेरी बातें चाव से सुनने लगे। एक दिन पंडित जी कथा कहने के लिए राजमहल आए तो पंडित जी की बातों से खुश हो राजा ने मुझे बड़े पिंजरे सहित पंडित जी को दान में दे दिया। राम-राम जपते-जपते मेरे बंधन तो बढ़ते ही जा रहे है। अब तो लगने लगा है कि मैं कभी आज़ाद ही नहीं हो पाऊँगा। अब आप ही बताइए मैं कैसे कहूँ, ‘राम जपे तो बंधन टूटे!’’


तोते की बात सुन गुरु मुस्कुराए और बोले, ‘वत्स!, वैसे तो तुमने बंधन का अर्थ ही गलत लगा लिया है। लेकिन फिर भी मैं तुम्हें इससे आज़ाद होने की राह बताता हूँ।’ इतना कहकर गुरुजी ने तोते के कान में धीरे से कुछ कहा और वहाँ से चले गए। अगले दिन पंडित जी की कथा के पश्चात तोते ने जब ‘यूँ झूठ मत बोल रे पंडित!’ नहीं कहा तो अनायास ही पंडित जी का ध्यान तोते के पिंजरे की ओर गया। पंडित जी ने देखा कि पिंजरे में तोता एकदम निढाल पड़ा है। पंडित जी को लगा शायद तोता मर गया है। उन्होंने जैसे ही उसे बाहर निकालने के लिए पिंजरा खोला, तोता तुरंत आसमान में उड़ गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा, ‘‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे!’


उक्त कहानी पूरी होते ही मैंने उन सज्जन से कहा, ‘मित्र, सुनी हुई बातों को कंठस्थ कर सुना देना शिक्षित और समझदार होने की निशानी नहीं होता है। शिक्षित और समझदार तो आप तब बन पाते हैं जब आप शिक्षा के प्रयोग से अपना और समाज का भला कर पाते हैं। यह व्यवहारिक ज्ञान आपको गुरु के बिना प्राप्त होना मेरी नज़र में तो असम्भव ही है। मेरे जीवन में तो ऐसा ही हुआ था इसलिए मैं अपने लेख, अपने शो और अपनी ट्रेनिंग में गुरु के बारे में बताता हूँ। वैसे भी जो जिसने दिया है या किया है उसका श्रेय उसे ही मिलना चाहिए।’ किसी ने सही कहा है, ‘शास्त्रों को कितना भी और कितनी बार भी पढ़ लो लेकिन ज्ञान तो सच्चे गुरु के बिना नहीं मिलता है। वैसे इस विषय में आपकी क्या राय है दोस्तों…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

8 views0 comments

Comments


bottom of page