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ग़लतियों से सीखें और बने महान…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Apr 7, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसे क़िस्से से करते हैं जो जीवन के प्रति हमारे नज़रिए को हमेशा के लिए बदल सकता है। बात कुछ वर्ष पूर्व की है, एक पत्रकार इंटरव्यू लेने के उद्देश्य से एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक के पास पहुँचे और उनसे उनकी सफलता का राज़ पूछते हुए बोले, ‘महोदय, वैसे तो हम सभी आपकी योग्यता, आपकी कार्यशैली, आपकी उपलब्धियों आदि के विषय में सब कुछ जानते हैं। लेकिन फिर भी हम सब आपसे जानना चाहते हैं कि आपके जीवन में बदलाव की शुरुआत कैसे हुई थी?’


प्रश्न सुन वैज्ञानिक मुस्कुराए और बोले, ‘बचपन में माँ ने मुझे जीवन के प्रति सही नज़रिया रखना सिखाया था। उसी नज़रिए ने मुझे जीवन में सफल या यूँ कहूँ जैसा भी; जहाँ भी आज मैं हूँ, वैसा बनाया।’ वैज्ञानिक की बात पूरी होते ही पत्रकार ने अगला प्रश्न करते हुए कहा, ‘क्या आप हमें इस विषय में विस्तार से बता सकते हैं।’ एक पल सोचने के पश्चात वैज्ञानिक बोले, ‘मुझे लगता है इसकी शुरुआत ४-५ वर्ष की उम्र में मिले एक अनुभव से हुई। एक बार मैं फ्रिज में से दूध की बोतल निकालने का प्रयास कर रहा था, तभी वह बोतल मेरे हाथ से फिसल कर नीचे गिर गई और उसका सारा दूध फ़र्श पर फैल गया। बोतल गिरने की आवाज़ सुनते ही मेरी माँ रसोई में आई और मेरे द्वारा फैलाई गई गंदगी देख कर मुझ पर चिल्लाने, मुझे समझाने या भाषण देने के स्थान पर मुस्कुराते हुए बोली, ‘रॉबी, मैंने दूध का ऐसा घना तालाब शायद ही कभी देखा हो। अब हमें इस साफ़ करना होगा। लेकिन क्या तुम साफ़ करने के पहले इसमें कुछ देर खेलना चाहोगे? क्योंकि जो नुक़सान होना था, वह तो अब हो चुका है।’ मैं मन ही मन डाँट खाने के लिए तैयार था लेकिन आशा के विपरीत माँ की बात सुन खुश हो गया और मैंने उस दूध के साथ खेलना शुरू कर दिया।


खेलते-खेलते कब ५-१० मिनिट हो गये मुझे पता ही नहीं चला। थोड़ी देर में मेरी माँ वापस आई और बोली, ‘क्या तुम जानते हो जब भी इस तरह गंदगी फैलती है तो अंततः उसे हमें ही साफ़ करना होता है और वापस से सभी चीजों को व्यवस्थित तरीक़े से जमा कर रखना होता है और अब हमें ऐसा ही करना होगा। हम इसके लिए तौलिये, स्पंज या फिर पोछे का इस्तेमाल कर सकते हैं। तुम इसमें से किसका इस्तेमाल कर इसे साफ़ करने में मदद करोगे?’ मैंने एक स्पंज चुना और और अपनी माँ की सहायता से गिरे हुए दूध को साफ़ करने लगा।’


एक पल की शांति के बाद वैज्ञानिक ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘कुछ मिनिटों बाद मेरी माँ मुझसे बोली, ‘चलो अब हम एक नया प्रयोग करते हैं और सीखते हैं कि दोनों हाथों के प्रयोग से हम किस तरह प्रभावी ढंग से बोतल को उठा सकते हैं।’ इसके बाद मुझे माँ घर के पिछले हिस्से में बने बगीचे में ले गई और दूध के बोतल के आकार की बोतल में पानी भरकर देते हुए बोली, ‘चलो अब हम देखते हैं कि क्या तुम इसे बिना गिराए एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का कोई तरीक़ा खोज सकते हो?’ इस तरह मैंने कई प्रयासों के बाद सीखा कि अगर मैं बोतल को दोनों हाथों से, ऊपर से पकड़ लूँ तो मैं इसे बिना गिराए ले जा सकता हूँ।’


साक्षात्कार के दौरान पूछे गए प्रश्न के जवाब के अंत में वैज्ञानिक बोले, ‘यह वह समय था जब मुझे पता लगा कि मुझे गलतियाँ करने से डरने की ज़रूरत नहीं है। इसके बजाय, मैंने सीखा कि गलतियाँ, कुछ नया सीखने का अवसर मात्र होती हैं और यही वैज्ञानिक प्रयोग हैं। भले ही मेरा कोई वैज्ञानिक प्रयोग असफल हो जाये, मैं आमतौर पर उससे कुछ ना कुछ मूल्यवान सीखता ही हूँ।’

बात तो दोस्तों, उस वैज्ञानिक की एकदम सही और जीवन को बदलने वाली थी। अगर हम जीवन में घटने वाली घटनाओं को स्वीकार करने की कला सीख जाएँ, तो हम ग़लतियों से सीखना शुरू कर देंगे। अर्थात् हमें विपरीत परिस्थितियों के दौरान व्यथित और विचलित होने के स्थान पर लगातार एडजस्ट करना याने समायोजन करना सीखना होगा। इसके लिए हमेशा याद रखियेगा, हम में से कोई भी परिपूर्ण नहीं है। हम सब में कुछ ना कुछ कमियाँ हैं और इसीलिए हम एक दूसरे की कमियाँ निकाल कर टकराते रहते हैं। लेकिन दोस्तों, अगर आप वाक़ई अपने जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते हैं तो आपको इस टकराव को टालना होगा और दूसरों की ग़लतियों पर ध्यान देने के स्थान पर ख़ुद की ग़लतियों को पहचान कर उन्हें दूर करना होगा। याद रखियेगा सफलता का एक ही मंत्र है, ‘ग़लतियाँ करो, एक नहीं हज़ार करो पर उनसे सीखो और कोशिश करो कि उन्हें कभी दोहराओ नहीं।’ क्योंकि जीवन में पूर्णता दूसरों की ग़लतियाँ निकालने से नहीं अपितु ख़ुद को पूर्ण बनाने से मिलेगी।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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