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ग़ैरों के पास, अपनों से दूर…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

Dec 18, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, यह बात बिल्कुल सही है कि तेज़ी से बदलती दुनिया एक ‘ग्लोबल विलेज’ होती जा रही है। इंटरनेट, वर्चुअल रियलिटी, आग्युमेंटेड रियलिटी, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स, होलोपोर्टेशन आदि जैसी तकनीकी एक नई आभासी दुनिया को जन्म दे रही है जिसमें दूरियाँ मायने ही नहीं रखती है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो दो द्वीपों में बैठे लोग भी आपस में इस तरह जुड़ सकते हैं मानो वे आमने-सामने बैठ कर बातें कर रहे हैं।


लेकिन यह स्थिति मेरी नज़र में मंदिर के पास लेकिन भगवान से दूर जैसी है। अर्थात् हमने बाहरी दुनिया से तो तेज संपर्क स्थापित कर दूरियाँ कम करने का प्रयास कर लिया है, लेकिन हम अपनों से दूर होते जा रहे हैं। आज के युग में अपनी उपस्थिति बनाए रखने और अपने भौतिक लक्ष्यों को जल्दी से जल्दी पाने के प्रयास में हम एकाकी जीवन की ओर बढ़ते जा रहे हैं। पहले जहाँ संयुक्त परिवार का स्थान एकाकी परिवार ने लिया था। वहीं अब एकाकी परिवार भी टूट कर ‘लाँग डिस्टेंस रिलेशनशिप’ की एक नई परिभाषा गढ़ रहे हैं। अर्थात् पति-पत्नी दोनों ही अलग-अलग शहरों में रहकर रिश्तों को निभाते हुए अपने भविष्य को बनाना चाह रहे हैं।


एकाकी जीवन जीते हुए भविष्य को गढ़ने और सुरक्षित बनाने की यह चाह मेरी नज़र में लोगों को अवसादग्रस्त बना रही है। अगर इस अवसाद को समय रहते डील ना किया जाए तो यह पहले इंसान के अंदर एकाकीपन, खिन्नता, कुंठा आदि जैसे नकारात्मक भावों को बढ़ाकर, उसकी मुस्कुराहट छीन लेता है। यही नकारात्मक भाव या जीवन के प्रति नकारात्मक सोच बीतते समय के साथ व्यक्ति के अंदर जीवन जीने का हौसला कम कर देती है।


जी हाँ दोस्तों, नकारात्मक भावों और कुंठाओं से भरा जीवन और साथ ही आस-पास सुख-दुख बाँटने वाले लोगों की कमी, कहीं ना कहीं सामान्य मनुष्य के अंदर जीवन के प्रति नकारात्मकता भर देती है। इसके साथ ही अगर आप थोड़ा ध्यान से सोचेंगे और अपने आस-पास देखेंगे तो पायेंगे कि हमारे आस-पास कमी निकालने वाले तो बहुत है, लेकिन प्रशंसा करने वाले बहुत कम। उपरोक्त दोनों स्थितियाँ, सामान्य मनुष्य के जीवन को और ज्यादा मुश्किल और परेशानी भरा बना देती है।


इसके विपरीत अगर दोस्तों किसी तरह हम अपने परिवार में आपसी सहयोग का भाव बढ़ा लें, याने एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी बनना शुरू कर दें, तो हम उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। जी हाँ दोस्तों, जिस परिवार में लोग एक दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी होना जानते हैं, वह परिवार कुंठा मुक्त, अवसाद मुक्त एवं खुशहाल होता है।


दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य अवसाद मुक्त जीवन जीना है अर्थात् आप अनावश्यक तनाव-दबाव आदि से मुक्त, खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं, तो अपने परिवार के लोगों और मित्रों के साथ समय व्यतीत करना शुरू कीजिए; एक दूसरे के साथ मिलकर मुस्कुराइए, अपना सुख-दुःख बाँटिए, अन्यथा आप जीवन में तमाम भौतिक सुख-सुविधाएँ और ढेर सारे पैसे तो कमा लेंगे याने आपके जीवन में पैसा और भौतिक सुविधाएँ तो बहुत होगी मगर प्रसन्नता कहीं दूर चली जाएगी। एक बार विचार कर देखियेगा ज़रूर…


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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