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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

घमंड और साधना…

Nov 1, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत संत कबीर के एक किस्से से करते हैं। एक दिन रात्रि के समय पास के गाँव के जमींदार के जवान बेटे की अचानक से मृत्यु हो गई। पूरा परिवार सदमे था और रो-धो रहा था, तभी किसी ने उन्हें बताया कि पास ही के गाँव के बाहरी इलाक़े में एक संत रहते हैं, उनके पास इसे लेकर चलो, शायद वे सब ठीक कर देंगे। कोई और उपाय तो था नहीं, इसलिए इसे अंतिम प्रयास मान वे युवा को लेकर कबीर जी के घर पहुँचे। वहाँ पहुंचने पर कबीर जी के बेटे कमाल ने उन्हें बताया कि कबीर जी तो रोज की ही तरह नदी में स्नान कर, मंदिर में जल चढ़ाने गए हैं और उसके बाद वे वहीं भजन करने बैठ जाते हैं। वे संध्या से पहले लौट कर नहीं आयेंगे।


सभी लोगों को दुख में डूबा देख, कमाल ने उनसे उनके आने की वजह पूछी तो उन्होंने जवान लड़के की मृत्यु के विषय में बता दिया। समस्या सुन कमाल सोचने लगे कि कोई बीमारी होती तो मैं ठीक भी कर देता। लेकिन यह तो मर गया है, अब क्या करूँ? तभी उनके मन में विचार आया कि प्रयास कर देखने में क्या हर्ज है। विचार आते ही कमाल ने गंगा जल का कमंडल उठाया और लाश की तीन बार परिक्रमा करते हुए उसके छींटे लाश पर मार कर तीन बार राम नाम का उच्चारण किया। ऐसा करते ही वह लड़का उठकर खड़ा हो गया और साथ आए लोगों की ख़ुशी की सीमा न रही।


कुछ ही पलों में पूरी बात कबीर जी को पता चल गई और वे धीमे कदमों से घर की ओर चल दिए। पूरे रास्ते कबीर जी को लोग नाचते-कूदते-उछलते नजर आए। वे सारा माजरा तो समझ नहीं पाये इसलिए उन्होंने कुटिया पर पहुंचते ही कमाल से इस विषय में पहुँचा। कमाल ने पूरी घटना का विवरण देने के बजाये कुछ और ही जवाब देते हुए कहा, ‘गुरुजी, आप कई दिनों से तीर्थ यात्रा पर जाने का कह रहे थे ना, अब आप यात्रा कर आओ। यहाँ मैं सब सम्भाल लूँगा।’ जवाब सुनते ही संत कबीर बोले, ‘सम्भाल लूँगा? मतलब?’ कमाल जी बोले, ‘बस यही, मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना। ये सब तो अब मैं कर ही लूंगा। अब आप जब तक के लिए चाहो, यात्रा पर जाओ।’


कबीर जी तत्काल समझ गए कि चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है, लेकिन साथ ही साथ उसे इसका घमंड भी हो गया है और साधक को अगर सिद्धि का घमंड हो जाये तो साधना समाप्त हो जाती है। इसलिए तीर्थ यात्रा से पहले, चेले का इलाज करना पड़ेगा। विचार आते ही कबीर जी बोले, ‘ठीक है, पूर्णमासी को भजन संध्या करके मैं तीर्थ यात्रा पर चला जाऊँगा। तब तक तुम आस-पास के दो-चार संतों को मेरी चिट्ठी देकर, भजन में आने का निमंत्रण दे आओ।’


कमाल चिट्ठी लेकर पास ही में रहने वाले संत के पास गए और उन्हें कबीर जी की चिट्ठी देकर भजन में आने का निमंत्रण देने लगे। संत ने उसी क्षण चिट्ठी को खोला, जिसमें लिखा हुआ था, ‘कमाल भयो कपूत, कबीर को कुल गयो डूब।’ चिट्ठी पढ़ते ही संत सारा माजरा समझ गए। उन्होंने कमाल का मन टटोलते हुए, भजन के आयोजन के विषय में पूछा। कमाल अहम के साथ बोले, ‘कुछ नहीं। गुरु जी लंबे समय से तीर्थ जाने की इच्छा व्यक्त कर रहे थे। अब मैं सब कर ही लेता हूँ, इसलिए मैंने उनसे कहा है अब वे तीर्थ यात्रा कर आएँ। वे जाने से पहले भजन का आयोजन करना चाहते हैं।’ संत ने कमाल को एक रात रुकने के लिए कहा और शाम को कुछ लोगों को चमत्कार दिखाने का कहा। इसके बाद संत ने पूरे गाँव में ख़बर करवा दी।


शाम को संत के आश्रम में दो-तीन सौ लोगों की लाइन लग गई। सब लोग ना-ना प्रकार की बीमारी से ग्रसित थे। संत ने कमाल से कहा चलो इन सबकी परेशानी दूर करो।' कमाल तो इतनी भीड़ को देखकर ही चौंक गए थे। वे बोले इतने लोगों को एकसाथ ठीक करना मेरे बस का नहीं है। संत बोले कोई बात नहीं, अब ये आ गए हैं तो इन्हें निराश लौटाना ठीक नहीं। इतना कहकर संत ने लोटे में से जल लिया और राम का नाम लेते हुए एक बार बाईं और दूसरी बार दाईं और खड़े लोगों पर डाल दिया। सारे लोग दो बार में ही ठीक होकर वहाँ से चले गए। इसके बाद संत ने भजन के लिए आना स्वीकारा और पास के गाँव में रहने वाले सूरदास को भी निमंत्रित करने का कहा।


कमाल तत्क्षण सूरदास जी के पास गए और उन्हें पत्र देते हुए निमंत्रित करने लगे। तभी अचानक ही सूरदास जी बोले, ‘बेटा, तत्काल दौड़ता हुआ जा और टेकरी के पीछे बहने वाली नदी में कोई डूब रहा है, उसे बचा ला।’ कमाल ने ऐसा ही किया और उस युवा को बचा लाया और उसे कंधे पर लाद कर सूरदास जी के आश्रम की ओर चल दिया। लौटते वक्त कमाल को ध्यान आया कि सूरदास जी तो अंधे हैं, फिर उन्हें कैसे पता चला कि कोई इतनी दूर नदी में डूब रहा है? यही सोचते-सोचते कमाल सूरदास जी के पास पहुँच गया और उसने कंधे पर लादे व्यक्ति को सूरदास जी के पास उतार दिया। तब तक वह व्यक्ति मर चुका था।


सूरदास जी ने उस लड़के पर पानी डालते हुए अभी रा… ही बोला था कि वह वापस ज़िंदा हो गया। कमाल हैरान था उसने तत्काल कबीर जी की भेजी चिट्ठी पढ़ी तब उसे सारा माजरा समझ आया। वापस आकर कमाल कबीर जी से बोला, ‘गुरुजी, संसार मे एक से एक सिद्ध हैं। उनके आगे मैं कुछ नहीं हूँ। गुरु जी आप तो यहीं रहिए और मुझे भ्रमण कर और सीखने-समझने की इजाज़त दीजिए।


दोस्तों, कमाल की ही तरह अक्सर हम में से कई लोगों भी अपने हुनर, कार्य, दौलत, शोहरत या अन्य बातों के अहंकार में आ जाते है और ख़ुद को तीसमारख़ाँ समझने लगते हैं। मेरी नजर में यह स्थिति कुल मिलाकर आपकी असली ग्रोथ को ही रोकती है। दूसरी बात जो हमें हमेशा याद रखना चाहिए हम अपने गुरु से कभी बड़े नहीं हो सकते। गुरु हमेशा गुरु ही रहेंगे और हम कितने भी बड़े क्यों ना हो जाएँ, वे हमारे मार्गदर्शक बनकर हमें पतन से बचाएँगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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