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घर को ‘कोपभवन’ ना बनने दें…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • Jun 29, 2024
  • 3 min read

June 29, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आपने निश्चित तौर पर लोगों को कहते सुना होगा कि ‘दीवारों के भी कान होते है…’ या फिर आपने एक प्रसिद्ध पेंट कंपनी के विज्ञापन में भी निश्चित तौर पर देखा और सुना होगा कि ‘दीवारें बोल उठेंगी…’। अगर आप इसके शाब्दिक अर्थ पर ना जाएँ, तो यह बात आपको सौ प्रतिशत सही नज़र आएगी। चलिए, इशारों या गूढ़ अर्थ लिए शब्दों में बात करने के स्थान पर हम इसे सीधे-सीधे समझने का प्रयास करते हैं।


दोस्तों, कई बार हमें नए स्थानों पर जाते ही एक अजीब सी घुटन और नकारात्मकता महसूस होती है और हमारा मन हमें उस स्थान को जल्द से जल्द छोड़ने का कहने लगता है। ऐसे घरों या स्थानों पर हमें एक अजीब सा खोखलापन महसूस होता है। इसके ठीक विपरीत कुछ स्थान हमें सुकून और सकारात्मकता का एहसास करवाते हैं। वहाँ जाने पर हमें एक अलग ही ऊर्जा का एहसास होता है और हमारा मन हमें वहाँ जाने के लिए बार-बार प्रोत्साहित करता है। ऐसे घर हमें खिलखिलाते और प्रफुल्लित नज़र आते हैं और वहाँ हमें घंटों बिताने के बाद भी वक़्त का एहसास ही नहीं होता है।


कभी सोच कर देखा है साथियों, ऐसा क्यों होता है? एक रिसर्च बताती है कि जिन घरों में रोज़ कलह होती है; जहाँ लोग ज़्यादा लड़ते-झगड़ते हैं और जहाँ निंदा और शिकायत आदि ज़्यादा की जाती है, वहाँ हमें नकारात्मकता ज़्यादा देखने को मिलती है। इन घरों में आपसी सामंजस्य नहीं होता है और मेरी नज़र में इसकी वजह आपसी प्रेम की कमी होना है। ये वही घर या स्थान होते हैं जहाँ पहुँचने पर हमें कुछ ही पलों में अजीब सी बेचैनी और घुटन महसूस होने लगती है और हमारा मन हमें ऐसे स्थानों को जल्द से जल्द छोड़ने के लिए कहता है।


इसका अर्थ हुआ जिन घरों या स्थानों में निंदा, शिकायत, ग़ुस्सा, आपसी वैमनस्यता आदि जैसे नकारात्मक भाव अधिक है, वहाँ नकारात्मक ऊर्जा है और जहाँ प्रेम, अपनापन आदि जैसे सकारात्मक भाव हैं, वहाँ सकारात्मक ऊर्जा है। यही नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा हमें किसी स्थान को जल्द से जल्द छोड़ने या उसी वातावरण में रुके रहने का संदेश देती है। इसीलिए दोस्तों, मैंने पूर्व में कहा था कि दीवारों के भी कान होते हैं और वो भी सब सुनती और सब सोखती है। जी हाँ साथियों, यह ना सिर्फ़ सुनती और सोखती है, बल्कि उन सभी नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जाओं को युगों तक समेट कर रखती हैं।


मज़े की बात तो यह है कि इस बात को हमारे पूर्वज बख़ूबी जानते थे और इसीलिए उस वक़्त घरों में ‘कोपभवन’ होते थे, अर्थात् हर घर में एक विशेष हिस्सा होता था जहाँ घर की कलह, वाद-विवाद, लड़ाई-झगड़े आदि सभी सुलझाए जाते थे। दूसरे शब्दों में कहूँ तो हमारे पूर्वज ऊर्जा के महत्व को बख़ूबी जानते थे और इसीलिए सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को अलग-अलग रखने का प्रयास करते थे। इस व्यवस्था के माध्यम से पूरे घर को नकारात्मक होने से बचा लिया जाता था।


दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य अपने घर को सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बनाना है, तो सबसे पहले उसे ‘कोपभवन’ बनने से रोकिए। याने उसे ग्रह कलह, निंदा, विवाद आदि से बचाइए; इन्हें टालिये और घर पर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए उसे सुंदर और सुनहरी यादों वाली तस्वीरों, फूल-पौधों आदि से सजाइये। घर के माहौल को हंसी-ठिठोली, मस्ती-मजाक, बच्चों की शरारत, बुजुर्गों की संतुष्टि, आपसी सम्मान के भाव और खिलखिलाहट से भर दीजिए। इससे आपके घर की दीवारें अच्छा सुन पायेंगी और सकारात्मक ऊर्जा के रूप में अच्छा कह पाएगी। याद रखियेगा, घर का वातावरण स्वस्थ्य और प्रफुल्लित होगा, तो उसमें रहने वाले लोग भी स्वस्थ और प्रफुल्लित रहेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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