Apr 20, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी घटना से करते हैं, जो जीवन के प्रति हमारे नज़रिए को सकारात्मक बना सकती है। अमेरिका के बॉस्टन शहर में एक बेहद ही ग़रीब दंपत्ति रहता था, जिनकी छह संतान थी। इन छह संतानों में बर्ट और जॉन जैकब्स सबसे छोटे थे। कॉलेज से स्नातक की शिक्षा के पश्चात दोनों भाइयों के सामने अपने भविष्य निर्माण को लेकर एक नई चुनौती थी। जिससे निपटना उनके लिए आसान नहीं था क्योंकि तब उनके पास माँ की अच्छी सलाह के अलावा ना तो पैसे थे और ना ही अनुभव। तमाम विपरीत स्थितियों के बाद भी दोनों ने अपने सकारात्मक नज़रिये की मदद से टी-शर्ट बेचने का व्यवसाय प्रारंभ किया। इसके लिए उन्होंने एक पुरानी वेन ली, जिसमें घूम-घूम कर वे बॉस्टन की गलियों में टी-शर्ट बेचने लगे।
अगले पाँच वर्षों तक दोनों ने इसी तरह अपना व्यवसाय बढ़ाने की हर संभव कोशिश करी। वे दिन में अपनी वेन लेकर विभिन्न कॉलेजों में जाकर टी-शर्ट बेचते, तो शाम को व्यस्त बाज़ार में। टी-शर्ट बेचने के इन प्रयासों में उनकी ज़्यादातर रातें उसी वेन में गुजरा करती थी।
इन यात्राओं ने उन्हें मुनाफ़े से ज़्यादा विभिन्न प्रकार के ढेर सारे अनुभव और समझदार व ज्ञानी लोगों से मिलने का मौक़ा दिया। जिससे वे समाज को बेहतर तरीक़े से पहचान कर सही सोच विकसित कर पाये। जैसे एक ऐसी ही चर्चा से उन्हें समझ आया कि किस तरह मीडिया नकारात्मक सूचनाओं से हमारे जीवन और संस्कृति को प्रभावित कर, हमारे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। जब उन्होंने गहराई से इस विषय को देखा तो उन्हें एहसास हुआ कि मीडिया हमेशा दुनिया में क्या ग़लत हुआ, यह बताता है। वो अच्छाई के विषय में या दुनिया में क्या सही हो रहा है पर कोई चर्चा नहीं करता। इसने दोनों भाइयों को एक नया व्यवसायिक विचार दिया। उन दोनों ने निर्णय लिया कि अब उनकी बेची जाने वाली टी-शर्ट पर केवल सकारात्मक विचार होंगे।
इस तरह दोस्तों बर्ट और जॉन जैकब्स ने सकारात्मक विचार वाली टी-शर्ट के ब्रांड 'लाइफ इज गुड' का गठन किया। जिसपर मुस्कुराते चेहरे के साथ 'लाइफ इज गुड' याने जीवन अच्छा है लिखा रहता था। आशावाद के इस सरल संदेश को लोगों ने तत्काल अपनाना शुरू कर दिया और जल्द ही दोनों भाइयों की अपेक्षा से कई गुना ज़्यादा तेज़ी से उनका व्यापार और जीवन चल पड़ा।
दोस्तों, यहाँ यह बताना बहुत ज़रूरी है कि जीवन को सकारात्मक तरीक़े याने आशावाद का यह नज़रिया उन्होंने अपनी माँ से सीखा था। दरअसल जब यह दोनों भाई प्राथमिक विद्यालय में पढ़ रहे थे तब इनके माता-पिता एक दुर्घटना के शिकार हो गये थे। जिसमें पिता ने अपना दाहिना हाथ खोया और माँ की कुछ हड्डियाँ टूट गई थी। इसके बाद इनके पिताजी तनाव और हताशा के शिकार हो गये और अब वे बात-बात पर घर वालों पर चिल्लाने लगे।
बर्ट और जॉन जैकब्स का जीवन निश्चित तौर पर परिपूर्ण नहीं था। उसपर उनके पिता के कठोर स्वभाव का असर निश्चित तौर पर दिखता था। लेकिन उनकी माँ, 'जोन', अभी भी मानती थीं कि ‘जिंदगी अच्छी है!’ इसलिए वे हर रात, परिवार सहित खाने की मेज पर अपने छह बच्चों से उस दिन उनके साथ जो कुछ अच्छा हुआ बताने को कहती। माँ के ये शब्द सरल ज़रूर थे, लेकिन वे क्षण-भर में कमरे की ऊर्जा ही बदल देते थे। अब सारे बच्चे अपने दिन के सबसे अच्छे, सबसे मजेदार या सबसे विचित्र समय पर विचार कर रहे होते थे।
इस दैनिक अभ्यास ने उन्हें पीड़ित और उदास मानसिकता को विकसित करने से रोका। वे दिनभर में क्या बुरा हुआ, पर चर्चा करने या परिस्थितियों पर टिप्पणी कर शिकायत करने के स्थान पर किसी सहपाठी की बेहूदा स्टाइल या स्कूल के किसी मजेदार प्रोजेक्ट पर बात कर हँस रहे होते। उनकी माँ अक्सर रसोई में काम करते वक़्त गाना गाती या बच्चों को उत्साहपूर्वक कहानी सुनाया करती थी। बुरे वक़्त में भी वे बच्चों के सामने किताबों की कहानियों पर अभिनय कर, अच्छी सीख देने का प्रयास करती थी। इन सब बातों ने सभी भाई बहनों को एक महत्वपूर्ण सबक़ सिखाया, ‘खुश रहना आपकी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं है।’ इसके साथ ही उनकी माँ ने उन्हें यह भी बताया कि ‘आशावाद, एक साहस भरा विकल्प है, जिसे आप हर दिन अपना सकते हैं, खासकर विपरीत परिस्थितियों में।’
एक बार बर्ट और जॉन जैकब्स ने बताया था कि जीवन पर उनके अटूट सकारात्मक दृष्टिकोण ने ‘लाइफ इज़ गुड’ को प्रेरित किया, जो अब 100 मिलियन डॉलर कंपनी है और आज उनका मिशन आशावाद की शक्ति का प्रसार करना है। दोस्तों, जॉन और बर्ट ने आज भी अपनी माँ की परंपरा को जारी रखा हुआ है। आज वे अपने कर्मचारियों से पूछते हैं, ‘चलो कुछ अच्छा बताओ!’ और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इसके परिणाम आश्चर्यजनक रहे हैं।
असल में दोस्तों, साधारण सा लगने वाला यह प्रश्न आपको उन विचारों की ओर ले जाता है, जो आपको जीवन में आगे बढ़ाते हैं। आपको परेशानियों, चुनौतियों, विपरीत स्थितियों पर रुके रहने के बजाय सफलता के निर्माण की ओर आगे बढ़ाते हैं। तो आईए दोस्तों, आज नहीं अभी से ही हम इस विचार को आज़माते हैं और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं। याद रखियेगा दोस्तों, हम दिन-प्रतिदिन के विचारों से ही अपनी नियति का निर्माण करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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