Jan 25, 2025,
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, ‘सुख’ एक ऐसी चीज है, जिसे हर कोई पाना चाहता है और इसीलिए हर दिन अपना सर्वश्रेष्ठ देकर कुछ भौतिक संसाधनों को जुटाकर इसे पाना चाहता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जो सुख हमें भौतिक वस्तुओं में दिखता है, वह क्या वाक़ई में उतना ही बड़ा है? या यह सिर्फ एक भ्रम है? आइए, इसे मैं आपको अपने जीवन के कुछ अनुभवों से समझाने का प्रयास करता हूँ।
दोस्तों, वर्ष 1984-88 के बीच हीरो होंडा सीडी 100, यामाहा आरएक्स 100, इंड सुजुकी AX100 और कावासाकी बजाज KB 100 जैसी 100/125 सीसी की बेहतरीन बाइक बाजार में आई थी। उस वक्त हर युवा इन बाइक्स को पाना चाहता था। ऐसी ही कुछ इच्छा मेरी भी थी। वर्ष 1988 में जब मैं कक्षा ग्यारहवीं में आया तब मुझे मेरे ताऊजी की वजह से ऐसी ही एक बाइक का मालिक बनने का मौक़ा मिला।
बाइक लिए अभी 1 वर्ष भी नहीं हुआ था, लेकिन सड़क पर चलती कारों को देख मुझे लगने लगा था कि असली सुख तो कारों में ही है। उस वक्त मुझे अपनी सोच की वजह से यह यकीन हो चला था कि अगर मैं किसी तरह एक कार खरीद लूँ, तो मेरा जीवन आनंदमय हो जाएगा। इसी सोच के साथ उसी वर्ष शुरू किए गए कंप्यूटर के व्यवसाय में मैंने बहुत मेहनत की और अगले एक-दो वर्षों में मैंने पैसे जमा कर एक सेकंड हैंड फिएट कार खरीद ली। शुरुआती कुछ महीनों तक तो मैंने अपनी उस कार का खूब आनंद लिया। लेकिन जल्द ही मारुति 800, मारुति वैन और मारुति ज़ेन को देख लगने लगा कि यह कार उतनी सुखद नहीं है, जितना मैंने सोचा था। अब मेरी नज़र इन नई कारों पर थी, इसके पश्चात मैंने एक बार फिर खूब मेहनत की और मारुति 800 ले ली। याने मेहनत करके एक बार फिर पिछली बार से बेहतर और बड़ी कार ख़रीद ली। इसके बाद भी दोस्तों कार से सुख पाने की चाह खत्म नहीं हुई और कुछ वर्षों बाद मैं वही नई और बड़ी कार से सुख पाने की पुरानी कहानी दोहराता रहा।
संसाधनों से सुख पाने की चाह में ऐसा ही कुछ हम सभी के साथ मोबाइल, टीवी, फ्रिज, फर्नीचर, घर, विदेश यात्रा आदि के विषय में घटता है और हम वही पुरानी कहानी बार-बार दोहराते हैं। लेकिन इसके बाद भी सभी संसाधनों से सुख नहीं पा पाते हैं। इसके पीछे की मुख्य वजह भौतिक वस्तुओं में इतना सुख मानना है, जितना उनमें होता नहीं है। सही कह रहा हूँ ना मैं दोस्तों… थोड़ा सा गंभीरता और गहराई के साथ सोच कर बताइयेगा।
वैसे दोस्तों, मैं कोई नई बात नहीं बता रहा हूँ। यह हम सब जानते हैं लेकिन उसके बाद भी किसी ना किसी भौतिक चीज से सुख पाने का प्रयास करते हैं। आख़िर हम सब ऐसा क्यों करते हैं? मेरी नजर में इसके पीछे हमारी सोच और समाज का प्रभाव होता है। विज्ञापन, माता-पिता, सगे-संबंधी, मित्र और पड़ोसी आदि, सब हमें बताते हैं कि ‘यदि यह चीज़ मिल जाए, तो आपका जीवन संपूर्ण हो जाएगा।’ लेकिन सच्चाई इसके बिल्कुल उलट होती है क्योंकि भौतिक वस्तुएँ केवल अस्थायी सुख दे सकती हैं।
सहमत ना हों तो जरा गंभीरता के साथ सोच कर देखियेगा दोस्तों, जिन चीज़ों को हमने खरीदकर भोग लिया, उनमें हमें कभी भी उतना सुख क्यों नहीं मिला, जितना हमने सोचा था? और फिर भी, अगली चीज़ों के बारे में हमें वही उम्मीद क्यों रहती है?
यह जीवन का एक बड़ा भ्रम है। हम नई-नई चीज़ों के पीछे भागते रहते हैं और जीवन भर शांति की तलाश में दौड़ते रहते हैं। अंत में, जब बुढ़ापा आता है, तो हम पछताते हैं। दोस्तों, यह समझना जरूरी है कि भौतिक संपत्ति केवल जीवन यापन के लिए है। यह हमारा अंतिम लक्ष्य कभी भी नहीं हो सकता। असली सुख तो दान, परोपकार, सेवा, और ईश्वर की भक्ति में है।
संभव है दोस्तों, कि अब आप सोच रहे हों कि इस इस स्थिति से बचने के लिए किया क्या जाए? तो चलिए इस स्थिति से बचने के लिए आवश्यक बातों पर चर्चा कर लेते हैं-
1) भौतिक वस्तुओं की अंधाधुंध नकल न करें क्योंकि हर किसी का जीवन अलग होता है। दूसरों के दिखावे से प्रभावित होना आपके जीवन को उलझन भरा बना सकता है।
2) आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ें क्योंकि ऐसा करना आपको अपने समय और अपनी ऊर्जा का उपयोग सेवा, परोपकार, और ज्ञान के विस्तार में करने में मदद करेगा।
3) सादगी अपनाएँ क्योंकि सादगी जीवन को सरल और संतुलित बनाए रखती है और साथ ही आपकी भौतिक जरूरतों को सीमित रख आपको अनावश्यक की दौड़ से बचाती है।
4) शांति और संतोष का मूल्य समझें और यह जानें कि शांति बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे भीतर है।
दोस्तों, शायद अब तो आप भी मेरी इस बात से सहमत होंगे कि भौतिक वस्तुओं की अंधी दौड़ हमें कहीं नहीं ले जाती। असली खुशी उन्हीं कार्यों में है, जो हमारे मन और आत्मा को सुकून दे सकें। याद रखें, धन और संपत्ति हमारे जीवन का साधन हैं, लक्ष्य नहीं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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