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चुनें सफलता किसी भी नहीं, सिर्फ़ सही क़ीमत पर…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

May 28, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, निश्चित तौर पर आप जानते होंगे कि आजकल इंटरनेट, यू.पी.आई. के माध्यम से बहुत से लोग वित्तीय धोखाधड़ी कर रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वर्ष २०२१-२२ में भारत में वित्तीय धोखाधड़ी के चौरासी हज़ार केस रजिस्टर हुए थे, जो वर्ष २०२३ में बढ़कर 1.1 मिलियन हो गये और यह आँकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। मेरी नज़र में इसकी मुख्य वजह जागरूकता की कमी, किसी भी क़ीमत पर सफल होने की चाह और ईमानदारी और विश्वास की अधिकता है।


शायद आपको मेरी बात में एक विरोधाभास नज़र आ रहा होगा क्योंकि हमें इस जमाने में चारों और बेईमानी बढ़ती या फैलती नज़र आ रही है। वैसे भी धोखाधड़ी के विषय में ईमानदारी और विश्वास की अधिकता कैसे ज़िम्मेदार हो सकती है? तो चलिए मैं इसे आपको अपने नज़रिए से समझाने का प्रयास करता हूँ। मेरा मानना है कि भटके हुए लोगों द्वारा बेईमानी की गरिमा को स्वीकारने तथा उसे आदर्श के रूप में अपनाने के पीछे की मुख्य वजह वस्तु स्थिति का बारीकी से विश्लेषण नहीं कर पाना है। असल में ऐसे सभी भटके हुए लोग मेरी नज़र में बुद्धि भ्रम से ग्रस्त हैं। यक़ीन मानियेगा साथियों, सच तो आज भी यही है कि बेईमानी से धन नहीं कमाया जा सकता है और अगर किसी को लगता है कि कमाया जा सकता है या किसी ने कमा भी लिया है तो यक़ीन मानियेगा, वह धन कभी भी स्थिर नहीं रहेगा। याने ऐसे लोगों के पास वह धन अधिक नहीं रुकेगा।


आपको लग रहा होगा कि मैं बहुत किताबी बातें कर रहा हूँ, तो मैं आपको बता दूँ कि लोग बेईमानी से नहीं अपितु कुछ दूसरे ही गुणों से कमाते हैं। साहस, सूझ-बूझ, मधुर भाषण, व्यवस्था, व्यवहार कुशलता, बुद्धिमत्ता आदि वे गुण हैं जो धन उपार्जन का कारण बनते हैं। कई लोग ग़लत नज़रिए याने बेईमानी के साथ उपरोक्त गुणों को काम में लेते हुए एक बार को धन कमा भी लेते हैं तो उससे मिलने वाले लाभ का परिणाम स्थिर नहीं रहता है और अंततः बेईमानी करने वाले के लिए दुखदायी ही सिद्ध होता है। हो सकता है वे आपको क़ानूनन बचते नज़र आएँ लेकिन आप पाएँगे कि समाज में उन्हें अपयश, अविश्वास, घृणा और असहयोग का सामना करना पड़ता है और अंततः वे लोग आत्म प्रताड़ना तथा आत्म ग्लानि जैसे भावों से अपने जीवन को दुखदायी बना लेते हैं।


वैसे अगर आप बहुत ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि बेईमानी से भी कमाई तभी होती है, जब उस पर ईमानदारी का आवरण चढ़ा हो। सही कहा ना मैंने? दोस्तों, किसी भी इंसान को ठगा तभी जा सकता है, जब उसे धोखेबाज़ अपनी प्रमाणिकता और विश्वसनीयता के प्रति आश्वस्त करा दे। आप स्वयं सोच कर देखिए, अगर किसी इंसान को संदेह हो जाए कि सामने वाला उसे ठगने का ताना-बाना बन रहा है तो क्या वह उसके जाल में फँसेगा? क्या सामने वाला इंसान अपनी धूर्तता से उसे ठग पाएगा? मेरी नज़र में तो बिलकुल भी नहीं। बेईमानी या धूर्तता की चाल तभी सफल होती है, जब वह ईमानदारी के आवरण में लिपटी हो याने जब ईमानदारी का आवरण बेईमानी और धूर्तता को पूरी तरह ढक देता है; जब उस पर किसी तरह के संदेह की गुंजाइश नहीं रहती हो तभी किसी इंसान को ठगा जा सकता है। अगर उसकी वास्तविकता सामने आ जाए तो यक़ीन मानियेगा सामने वाला ना सिर्फ़ उस समय के लिए अपितु हमेशा के लिए उस पर विश्वास करना बंद कर देगा।


जी हाँ साथियों, बेईमानी करने वाले की नीयत अगर सामने आ जाती है तो वह हमेशा के लिए अपना विश्वास खो बैठता है और लंबे समय में लाभ कमाने के स्थान पर उल्टा घाटा उठाने लगता है। मेरी बात से सहमत ना हों तो जरा अपने आस-पास नज़र उठा कर देख लीजियेगा। आप पायेंगे कि रिश्वत लेते, मिलावट करते, धोखाधड़ी बरतते, सरकारी टैक्स हड़पते, काला बाजारी करते पकड़े जाने वाले लोग ना सिर्फ़ सरकारी दंड पाते दिखेंगे अपितु वे अपनी प्रतिष्ठा भी गँवाते दिख जाएँगे। जी हाँ, ऐसे लोगों की असलियत सामने आते ही, हर व्यक्ति उनसे घृणा करने लगता है।


इस दुनिया में हर व्यक्ति ईमानदार साथी चाहता है। उसकी अपेक्षा रहती है कि उसके साथ ईमानदारी बरती जाए। इसलिए वह हमेशा ईमानदार नौकर, कर्मचारी, व्यवसायी, दुकानदार की खोज में लगा रहता है। बाजार में लोग उन्हीं दुकानों पर जाते हैं; उन्हीं दुकान से ख़रीदारी करते हैं जिन पर उन्हें विश्वास होता है। इस दुनिया में नौकरी भी उन्हें ही मिलती है जिनकी ईमानदारी पर शक न हो। सही कहा ना मैंने? इस दुनिया में कोई भी नहीं चाहता है कि उसे धोखा दिया जाए। इस जहां में आपको कोई भी नहीं मिलेगा जो बेईमान को अपना समर्थक या साथी बनाना चाहता हो। इस संसार में जितने भी बड़े काम, बड़े व्यापार, बड़े आयोजन सफल हुए हैं, वे ईमानदारी के आधार पर ही बढ़े हैं। जो लोग इस दुनिया में सफल होकर अमर हुए हैं, वे सभी ईमानदारी के आधार पर सफल और अमर हुए हैं। जिसने अपनी विश्वसनीयता का सिक्का दूसरों पर जमा दिया; अच्छी सही खरी चीजें उचित मूल्य पर दी और व्यवहार में प्रामाणिकता सिद्ध कर दी, लोग सदा सर्वदा के लिए उसके ग्राहक, प्रशंसक एवं सहयोगी बन गए। दोस्तों, यक़ीन मानियेगा प्रामाणिकता का भविष्य सदा से ही उज्ज्वल रहा है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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