Feb 29, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अक्सर लोग विपरीत परिस्थितियों या चुनौतियों से डरकर, दोष देते हुए ज़िंदगी जीने का प्रयास करते हैं। जबकि मेरा मानना है कि जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियाँ आपको पहले से अधिक मज़बूत बनाती है। इसलिए दोस्तों, चुनौतियाँ कितनी भी विकट क्यों ना हों, ख़ुद पर यक़ीन रखें और हर पल जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता खोजें क्योंकि ईश्वर आपको चुनौतीपूर्ण वातावरण में सिर्फ़ और सिर्फ़ तब डालता है, जब वह आपके अंदर उससे निपटने की क्षमता देखता है और आपको और बेहतर बनाना चाहता है। अपनी बात को मैं आपको जापानियों की आदत से समझाने का प्रयास करता हूँ।
जैसा कि हम सब जानते हैं कि जापान एक आइलैंड है। इसलिए जापानियों को स्वाभाविक तौर पर ताजी मछलियाँ खाना पसंद था। बीतते समय के साथ बढ़ती जनसंख्या की खाने की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मछुआरों को अब मछलियाँ पकड़ने के लिए समुद्र में काफ़ी दूरी तक जाना पड़ता था। मछलियाँ पकड़ कर वापस आने में अब मछुआरों को कुछ दिन लगने लगे जिसकी वजह से जापानियों को ताजी मछलियाँ मिलना बंद हो गई और उन्हें इन बासी मछलियों का स्वाद बिलकुल भी पसंद नहीं आया।
इस समस्या को हल करने के लिए पहले मछुआरों ने अपनी नावों पर फ्रीजर लगवाये। इसने उन्हें थोड़ा और अधिक समय तक समुद्र में रहने की सहूलियत तो दी लेकिन अभी भी जापानी ताजी और समुद्री मछली के स्वाद का अंतर महसूस कर लेते थे। इसलिए मछुआरों को मछली की सही क़ीमत नहीं मिल पाती थी। इस समस्या के समाधान के तौर पर मछुआरों ने अब नाव में बड़े-बड़े फिश टैंक लगवा लिए। अब वे मछली पकड़ कर फिश टैंक में डाल दिया करते थे। समुद्र के मुक़ाबले काफ़ी छोटे फिश टैंक में इधर-उधर टकराने के बाद मछलियाँ हिलना-डुलना बंद सा कर देती थी। अब जापानियों तक ताजी मछलियाँ तो पहुँच रही थी लेकिन फिश टैंक में ज्यादा दिनों तक गतिमान नहीं रहने के कारण वे ताज़ा-मछली जैसा स्वाद खो देती थी।
जापानियों की पहली प्राथमिकता जीवंत मछली का स्वाद था। इसलिए वे किसी भी हाल में सुस्त और निढाल मछली के स्वाद को स्वीकारने के लिये तैयार नहीं थे। अब मछुआरों समेत मछली पकड़ने वाली कंपनियाँ इस समस्या के समाधान के विषय में सोचने लगी। अंत में उन्होंने फिश टैंक में एक छोटी शार्क रखने का फ़ैसला लिया। हालाँकि यह शार्क कुछ मछलियों को खाकर उन्हें नुक़सान तो पहुँचाती थी। लेकिन इससे बचने याने जीवित रहने के प्रयास में अन्य मछलियाँ काफ़ी संघर्ष किया करती थी। इस समाधान से जापानियों तक जीवंत अवस्था में मछलियाँ पहुँचने लगी।
आप भी सोच रहे होंगे कहाँ तो मैं चुनौतीपूर्ण जीवन की बात कर रहा था और कहाँ मैं मछलियों और जापानियों के व्यवहार को लेकर बैठ गया। तो आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि दोनों बातें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। चलिए, दोनों स्थितियों को एक साथ लेकर हम इसे समझने का प्रयास करते हैं। जब तक मछलियों को शार्क का डर नहीं था, वे फिश टैंक में बिना हिले-डुले पड़ी रहती थी। मछुआरों ने जैसे ही छोटी शार्क को फिश टैंक में डाला, सभी मछलियों ने अपना जीवन बचाने के लिए जीवंत व्यवहार करना शुरू कर दिया। ठीक इसी तरह चुनौतियाँ के बिना इंसान अपने कम्फर्ट ज़ोन में जाकर सुस्त हो जाता है और जीवन में चुनौतियों रूपी शार्क के आते ही एकदम सचेत होकर, जागृत अवस्था में कर्म करने लगता है।
इस आधार पर कहा जाए तो चुनौतियाँ मूल रूप से हमारे जीवन को बेहतर बनाने के लिए आती हैं। हम जितने अधिक बुद्धिमान, दृढ़ और काबिल होंगे, उतना ही हम चुनौतियों का बेहतर आनंद ले पाएँगे; अपने जीवन को बेहतर बना पाएँगे। इसीलिए दोस्तों, जीवन में चुनौतियों आएँ तो घबरायें नहीं अपितु इन्हें जीवन को बेहतर बनाने का मौक़ा मानें।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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