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चैन से जीना है तो पाएँ ‘मैं’ से मुक्ति…

Writer's picture: Nirmal BhatnagarNirmal Bhatnagar

May 6, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

यक़ीन मानियेगा दोस्तों, हमारे जीवन की सभी चुनौतियाँ, परेशानी, दिक़्क़तें और दुख या कुल मिला कर कहूँ तो सारी चिंताओं के पीछे की मुख्य वजह; संसाधनों या पैसों की कमी, शारीरिक दुर्बलता, संपर्क, संबंधियों या परिवार के सदस्यों का साथ ना होने जैसा कोई कारण नहीं है, बल्कि इसकी मुख्य वजह तो इन सभी के पीछे मैं और मेरा का भाव होना है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।


बात कई साल पुरानी है, राजपुर पर राजा राजवेंद्र का राज था। वैसे तो पूरे राजपुर में धन-दौलत, ऐश्वर्य आदि किसी चीज की कमी नहीं थी। इसी वजह से पूरे राज्य में ख़ुशहाली थी अर्थात् राजा और प्रजा सभी ख़ुशी-ख़ुशी अपना जीवन यापन कर रहे थे। एक वर्ष राजपुर में भयानक अकाल पड़ा। राज्य में बारिश ना होने के कारण पानी की काफ़ी कमी हो गई जिसके कारण सारी फसलें सूख गई। किसानों की बुरी हालत के कारण राजा राजवेंद्र को सारा लगान माफ़ करना पड़ा। राजस्व में कमी के कारण तेज़ी से राज्य का ख़ज़ाना ख़ाली होने लगा। तेज़ी से खजाना ख़ाली होता देख राजा राजवेंद्र चिंता में पड़ गए। अब हर समय उन्हें ख़ज़ाने की चिंता सताती रहती थी। जैसे अगर यही हालात रहे तो ५ साल बाद क्या होगा?; १० साल बाद क्या होगा?

कुछ माह बाद अकाल का समय तो निकल गया और स्थिति धीरे-धीरे पहले की तरह सामान्य हो गई, लेकिन राजा राघवेंद्र की चिंता करने की आदत वैसी की वैसी ही रही। अब उन्हें इस बात की चिंता सताने लगी अगर यह अकाल वापस आ गया तो क्या होगा? मेरा ख़ज़ाना, मेरा राज्य तो पूरी तरह तबाह हो जाएगा। ऐसी स्थिति में मेरे बच्चे क्या करेंगे? कभी मंत्रियों या रिश्तेदारों ने कोई षड्यंत्र रच दिया तो क्या होगा? आदि… आदि… इतना ही नहीं कभी-कभी तो वे सोचते थे कि ख़राब माली हालत के चलते अगर मेरी सेना कमजोर हो गई और पड़ोसी राज्य ने मेरे ऊपर हमला कर दिया तो क्या होगा? इन तमाम चिंताओं ने राजा राघवेंद्र की रातों की नींद, दिन का चैन और भूख, सब-कुछ छीन ली। अब उन्हें किसी कार्य में मज़ा नहीं आता था। वे हर-पल शून्य में देखते हुए पता नहीं क्या सोचा करते थे।


एक दिन कुछ सोचते-सोचते राजा की नज़र राज बगीचे में काम करने वाले माली पर पड़ी जो मज़े से गाना गाते-गाते काम कर रहा था। राजा सोचने लगा इतनी कम आमदनी और तमाम परेशानियों के बीच यह इतना खुश कैसे है? यह विचार आते ही राजा उस माली पर नज़र रखने लगा। एक दिन राजा की नज़र रात्रि के समय माली पर पड़ी। वे यह देख कर हैरान रह गए कि दिन भर मेहनत करने के बाद वह शाम को रूखी-सुखी रोटी खाकर बड़े मज़े से पेड़ के नीचे सो रहा था। राजा को अब तो उससे जलन होने लगी थी।


एक दिन राजभवन में एक बहुत ही पहुँचे हुए सिद्ध महात्मा जी आए। उन्होंने राजा के चेहरे को देखते ही सारी स्थिति को पहचान लिया। कुछ देर तक महात्मा जी राजा को ध्यान से देखते रहे, फिर बोले, ‘राजन तुम्हारी चिंता; तुम्हारी परेशानी की मुख्य जड़ राजपाट है। मेरा सुझाव है कि तुम अपना राजपाट अपने पुत्र को देकर चिंता से मुक्त हो जाओ।’ महात्मा की बात का प्रत्युत्तर देते हुए राजा बोले, ‘गुरुजी, मेरा पुत्र मात्र पाँच वर्ष का है। अभी वह अबोध है, आप ही बताइए एक अबोध बालक राजपाट कैसे सम्भालेगा?’ इस पर महात्मा जी बोले, ‘तो फिर तुम राजपाट मुझे सौंप दो।’


राजा ने वैसा ही किया और वहाँ से जाने लगा। इसपर महात्मा बोले, ‘भक्त, अब तुम जीवन यापन के लिए क्या करोगे?’ राजा बोला, ‘सोचता हूँ कहीं नौकरी कर लूँ या कोई छोटा-मोटा व्यवसाय कर लूँ।’ इसपर महात्मा जी बोले, ‘देखो अब तुम्हारे पास धन तो है नहीं क्योंकि सारा राजपाट अब मेरा है। रही बात नौकरी की तो उसके लिए अब तुम्हें कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है। तुम मेरे यहाँ नौकरी कर लो। मैं तो साधु हूँ। आज यहाँ तो कल वहाँ। मेरे इस साम्राज्य को मेरी तरफ से तुम सम्भाल लो और राजपाट का सारा काम पूरे दिल से करो।’


राजा ने साधु की बात मान ली और वे साधु के राजपाट को सँभालने की नौकरी करने लगे। कुछ दिन बाद साधु पुन: राज महल आए और राजा से बोले, ‘कहो राजन्, राजपाट कैसा चल रहा है?’ राजा प्रणाम करते हुए बोले, ‘बहुत ही अनुशासित और सरल तरीके से चल रहा है।’ महात्मा ने अगला प्रश्न किया, ‘अब तुम्हें भूख तो लगती है? और तुम्हारी नींद के क्या हाल है?’ राजा बोले, ‘गुरुजी अब तो मैं बहुत अच्छे से खाता हूँ और बढ़िया नींद लेता हूँ।’ पर मैं समझ नहीं पाया कि पहले भी यही काम करने के बाद भी मुझे नींद क्यों नहीं आती थी?’ इस पर महात्मा जी मुस्कुराते हुए बोले, ‘इसके पहले तुम राज्य मेरा है और मैं राजा हूँ के भाव से जीते थे। इसने तुम्हें बांध दिया था इसीलिए यह सब तुम्हारे लिए दुख और तकलीफ़ों का कारण था। किंतु राजपाट मुझे सौंपने के उपरांत तुम अपने इन मानसिक बंधनों से मुक्त हो गए और तुममें अहंकार का भाव समाप्त हो गया। अब तुम समस्त कार्य अपने ह्रदय से जुड़कर अपना कर्तव्य समझकर करते हो, इसलिए आनंद मे हो।’


जी हाँ दोस्तों, राजा की सारी समस्याओं का कारण ‘मैं’ याने अहंकार के भाव का होना था। इसीलिए वे हर बात को व्यक्तिगत तौर पर देख रहे थे। लेकिन जैसे ही महात्मा ने मैं के भाव को ख़त्म किया उनकी परेशानी ख़त्म हो गई और वे खुश व प्रसन्न रहने लगे। इस आधार पर देखा जाए तो चिंता, परेशानी, दुख, ख़ुशी, संतोष आदि सब हमारे अंदर है। अगर हम अहंकार को स्थान देंगे तो नकारात्मक भाव उभर कर सामने आयेंगे और अगर हम अहंकार को छोड़ देंगे तो हम स्थिर मन के साथ आराम से रह पायेंगे।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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