Dec 7, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
एक प्रकृति प्रेमी सज्जन अकसर अपना समय समुद्र किनारे पर टहलते हुए बिताना पसंद किया करते थे। उनका मानना था कि ऐसा करना उन्हें ताजगी देने के साथ-साथ किसी भी विषय पर रचनात्मक तरीक़े से सोचने में मदद करता है। एक दिन किनारे पर टहलते-टहलते उनका ध्यान एक बच्चे पर गया जो समुद्र के किनारे से छोटी-छोटी मछलियों को उठाकर पानी में फेंक रहा था। घटना थोड़ी अटपटी थी इसलिए उन्होंने आस-पास के वातावरण को ध्यान से देखा तो उन्होंने पाया कि समुद्र तट पर हजारों की तादाद में मछलियाँ पड़ी हुए हैं और पानी में ना होने के कारण वे डैम तोड़ रही हैं। वह बच्चा ज़िंदा बची मछलियों में से कुछ को उठा-उठा कर समुद्र में फेंक रहा है।
कुछ पल तो वे सज्जन उस बच्चे को ध्यान से देखते रहे लेकिन जब उनका मन नहीं माना तो वे उसके पास गए और बड़े प्यार से बोले, ‘बेटा, जैसा मैं यहाँ देख पा रहा हूँ, तट पर तो हजारों मछलियाँ पानी से बाहर आ जाने की वजह से तड़प रही हैं। इस प्रकार मछलियों को उठाकर, पानी में फेंक कर तुम कितनी मछलियों को बचा पाओगे?’ बच्चा उन बुद्धिमान सज्जन की बात से विचलित हुए बिना, बड़े धैर्य के साथ बोला, ‘देखिए अंकल अब सूर्योदय हो रहा है और समुद्र की लहरें शांत होकर अब वापस पीछे की ओर जा रही है। ऐसे में यह मछलियाँ कुछ ही मिनटों में पानी से दूर हो जाएँगी और अंततः मारी जाएँगी। इसलिए मैं इनकी जान बचाने का प्रयास कर रहा हूँ। मैं जानता हूँ इस तरह मैं सबकी जान तो नहीं बचा पाऊँगा, पर कम से कम कुछ मछलियों को तो बचा ही लूँगा।’ इतना कहते-कहते वह बच्चा फिर से झुका और मछलियों को उठाकर समुद्र में फेंकने लगा और फिर अपनी बात आगे बढ़ाता हुआ बोला, ‘मैं सब मछलियों के तो नहीं पर कुछ मछलियों के जीवन में तो अंतर ला ही सकता हूँ और यही बात मुझे संतोष प्रदान करती है।’
दोस्तों, बात कही तो बच्चे ने थी, पर थी बहुत गहरी। हम सब भी एक इंसान के तौर पर अपने अंदर मौजूद समानुभूति और सहानुभूति के भाव को ज़िंदा रख पूरी दुनिया को तो नहीं बदल सकते हैं, पर कम से कम कुछ लोगों के जीवन में तो अंतर ला ही सकते हैं। इसलिए हमारा प्रयास होना चाहिए हम प्रतिदिन किसी ना किसी के जीवन में ‘छोटा सा अंतर’ लाने का प्रयास करें। जैसे ईश्वर प्रदत्त भावनाओं का उपयोग कर हम प्रतिदिन किसी भूखे मनुष्य या पशु को भोजन दे कर या किसी जरूरतमंद की निस्वार्थ सेवा कर उसके जीवन में थोड़ा सा परिवर्तन ला सकते हैं और अगर आपको यह भी ज्यादा लगता हो तो आप सिर्फ़ मुस्कुरा कर भी लोगों का दिन बना सकते हैं; उनके जीवन में ख़ुशी का एहसास पैदा कर सकते हैं।
यकीन मानियेगा, ऐसा करना दूसरों के जीवन में तो ‘छोटा सा अंतर’ लायेगा लेकिन आपके जीवन को संतुष्टि और खुशी के भाव से भर देगा। इसलिए दोस्तों प्रतिदिन ख़ुद से पूछें, ‘आज मैं इस संसार को क्या दे रहा हूँ?’ या ‘आज मैं इस संसार को क्या दे सकता हूँ?’ इस तरह आत्मनिरीक्षण करना आपको जागरूक रहते हुए, अपनी विशेष योग्यता पहचान कर, इस दिशा में आगे बढ़ने मैं, दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाने में मदद करेगा।
अंत में मैं एक बार फिर अपनी बात दोहराऊँगा और आपको बड़े विश्वास के साथ कहूँगा की ऐसा करने से अंततः सबसे अधिक लाभान्वित आप ही होंगे और इस प्रयास से आने वाला अंतर आपको अपने स्वयं के भीतर महसूस होगा। अर्थात् लोगों के जीवन में ‘छोटा सा अंतर’ लाने का प्रयास अंततः आपके जीवन में ही सबसे अधिक अन्तर लेकर आयेगा।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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