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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

छोटी-मोटी ग़लतियों से ज़्यादा महत्वपूर्ण है रिश्ता…

Sep 18, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, चलिए आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी कहानी से करते है, जिसकी सीख पर अगर अमल कर लिया जाये तो यह हमारे रिश्तों या यूँ कहूँ हमारे जीवन को बेहतर बना सकती है। ज़ालिम सिंह नामक राजा का बहुत बड़ा राज्य था। वैसे तो ज़ालिम सिंह अपनी प्रजा का; अपने राज्य का बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन अपने ग़ुस्सैल स्वभाव के कारण गलती करने वालों को ख़ूँख़ार कुत्तों के बाड़े में डलवा दिया करते थे। उनकी इस आदत ने कई ईमानदार, समझदार और ज्ञानी सभासदों और मंत्रियों की जान ले ली थी।


राज की इस आदत से सभासदों सहित मंत्री और प्रजा सभी परेशान थे। उस राज्य के महामंत्री तो राजा की इस आदत की खुली आलोचना किया करते थे। एक दिन यह बात राजा ज़ालिम सिंह को पता चल गई और उन्होंने एक बहुत सामान्य सी गलती को मुद्दा बनाकर महामंत्री के ख़िलाफ़ कार्यवाही करते हुए, उन्हें ख़ूँख़ार कुत्तों के बाड़े में डाल देने की सजा सुना दी। महामंत्री ने राजा के समक्ष अपनी गलती को स्वीकारते हुए माफ़ी माँगी, लेकिन राजा इससे ज़रा भी टस से मस नहीं हुए और बोले, ‘मंत्री जी हमने जो कह दिया, सो कह दिया। अब इसमें कुछ भी बदलाव की गुंजाइश नहीं है।’ इतना कह कर राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि महामंत्री जी को ले जाकर कुत्तों के बाड़े में डाल दिया जाए।


राजा से आदेश पा सिपाहियों ने तत्काल महामंत्री को पकड़ लिया और वहाँ से ले जाने लगे। इतने में महामंत्री बोले, ‘राजा जी, आपका फ़ैसला सर आँखों पर, लेकिन मेरी आपसे एक छोटी सी गुज़ारिश है की कृपया मेरी अंतिम इच्छा मान ली जाए। राजा ने मंत्री की बात को स्वीकारते हुए कहा, ‘बताओ, महामंत्री जी आपकी अंतिम इच्छा क्या है?’ महामंत्री बोले, ‘महाराज, मुझे बस दस दिन की मोहलत दे दीजिए, जिससे में अपनी ज़िम्मेदारियों का अच्छे से निर्वहन कर सकूँ और उनसे मुक्त होकर ख़ुशी-ख़ुशी आपके निर्णय को दिल से स्वीकार सकूँ।’ राजा ने तुरन्त मंत्री की बात को स्वीकार लिया।


राजा से आज्ञा ले मंत्री जी उस दिन अपने घर चले गये और ठीक ग्यारहवें दिन सुबह राज के सामने पेश हो गये। उन्हें देखते ही राजा बोले, ‘महामंत्री जी, तुम्हें तुम्हारी गलती की सजा ज़रूर मिलेगी।’ इतना कहकर राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया कि मंत्री जी को ख़ूँख़ार कुत्तों के बाड़े में डाल दिया जाये। सिपाहियों ने तुरंत राजा की आज्ञा का पालन करते हुए मंत्री को ख़ूँख़ार कुत्तों के बाड़े में फेंक दिया और ऐसा करते ही सभी ख़ूँख़ार कुत्ते दौड़ते हुए मंत्री के पास आये और उनके साथ खेलते हुए अपनी पूँछ हिलाने लगे; उनके साथ प्यार से पेश आने लगे।


कुत्तों के व्यवहार में आये परिवर्तन को देख राजा हैरान थे। वे सोच रहे थे कि जिन कुत्तों को प्रहार करने के लिए तैयार किया गया है, वे मंत्री से इतने प्यार से पेश क्यों आ रहे हैं? राजा ने तुरन्त मंत्री से इसका कारण पूछा तो मंत्री ने बताया, ‘राजन, इन कुत्तों की मैंने पिछले दस दिन बहुत सेवा की है। मैंने इन्हें इनकी पसंद का खाना खिलाया; इन्हें नहलाया; इन्हें घुमाने बाहर ले गया; इनके साथ खेला। इन सब बातों से यह कुत्ते जान चुके हैं कि मैं इनके लिए कुछ ना कुछ अच्छा करता हूँ, इसलिए ये आज मुझ पर प्रहार नहीं कर रहे हैं। लेकिन मैंने आपकी इतने वर्षों तक सेवा करी तब भी आप मेरी एक गलती को माफ़ नहीं कर पा रहे हैं? आपसे ज्यादा अच्छे तो ये कुत्ते हैं, जो अच्छे और बुरे के अंतर को भलीभाँति पहचानते हैं।’


दोस्तों, अगर आप इस कहानी पर गंभीरता पूर्वक विचार करेंगे तो रिश्तों में आई कड़वाहट के मुख्य कारण को पहचान पायेंगे। जी हाँ दोस्तों, अक्सर हम किसी भी अपने व्यक्ति की एक गलती को लेकर, उसे जिन्दगी भर के लिए ग़लत मान लेते हैं और रिश्तों को हमेशा के लिए ख़त्म कर लेते हैं। सोच कर देखिए अगर हम सामने वाले को माफ करने की हिम्मत दिखाते तो अंतिम स्थिति क्या होती? निश्चित तौर पर हमारे रिश्ते ख़त्म नहीं होते, हमारे अंतर्मन में रिश्तों को लेकर कड़वाहट नहीं होती। इसलिए दोस्तों, रिश्तों को बेहतर बनाये रखने के लिए तात्कालिक परिस्थिति के आधार पर निर्णय लेने के स्थान पर सोच-समझ कर, सारी स्थितियों पर विचार कर निर्णय लेना शुरू कीजिए और खुश व मस्त रहते हुए, अच्छे रिश्तों के साथ जीवन व्यतीत कीजिए।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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