Nirmal Bhatnagar
जहाँ चाह, वहाँ राह!!!
Updated: Apr 2
Mar 31, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, सफलता की राह का सबसे बड़ा रोड़ा उन लोगों के बारे में चिंता करना है, जिन्हें हक़ीक़त में यही पता नहीं होता है कि वे आपका विरोध कर क्यों रहे हैं। उनका विरोध सामान्यतः उन रूढ़िवादी मान्यताओं के कारण होता है, जिनकी उत्पत्ति या प्रचलन की मुख्य वजह के बारे में भी इन तथाकथित ज्ञानी लोगों को पता नहीं होता है। भारतीय समाज में यह स्थिति उस वक्त और ज़्यादा विकट हो जाती है, जब ऐसे सामाजिक विरोध का सामना किसी महिला को करना पड़ रहा हो।
मेरी नज़र में तो साथियों, खुद की प्राथमिकताओं को भूल अपने सपनों, अपनी प्राथमिकताओं के साथ खिलवाड़ करते हुए ऐसे लोगों की परवाह करना; उनकी राय पर ज़्यादा विचार करना, खुद की क़िस्मत के दरवाज़े पर ताले डालने समान है। जी हाँ दोस्तों, आप स्वयं सोच कर देखिएगा, मनुष्य के रूप में असीमित शक्तियों का स्वामी होने के बाद भी, अपने सपनों के साथ खिलवाड़ करते हुए, समझौता पूर्ण जीवन जीना क्या सही है? मेरी नज़र में तो बिलकुल भी नहीं! शायद इसीलिए कहा गया है, ‘सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग!’
दोस्तों, अगर आपका लक्ष्य उद्देश्य पूर्ण जीवन जीना, अपने सपनों को पूरा करना या लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना है तो आपको सबसे पहले इस बात को स्वीकारना होगा कि लोगों का काम तो कहना ही है। हो सकता है इस वक्त आपको मेरी बात थोड़ी कड़वी या बुरी लग रही होंगी, लेकिन यह 100 फ़ीसदी सही है। अगर आप असफल रहेंगे तो वे कहेंगे, ‘हमें तो पहले से ही पता था। निठल्ला था एकदम, ना पढ़ने में मन लगता था, ना किसी काम में।’ और अगर आप मेहनत कर किसी मुक़ाम को हासिल कर लेंगे तो यही लोग कहेंगे, ‘हमें तो पहले से ही पता था, बड़ा होनहार बालक है। देखो आज कहाँ पहुँच गया।’
कहने का मतलब है दोस्तों, दुःख, परेशानी या विपरीत परिस्थिति के दौर में लोग ना तो भावनात्मक रूप से आपके साथ होते हैं और ना ही भौतिक रूप से। उन्हें तो बस धारणाओं और मान्यताओं के आधार पर सिर्फ़ तात्कालिक प्रतिक्रिया देने और वे मौजूद हैं इसका एहसास कराने से मतलब होता है। इसीलिए मेरा मानाना है कि इस दुनिया में परेशानी के दौर में आपको सर्वप्रथम खुद की मदद करना होगी। याने जब आप अपना पहला कदम अपनी क़िस्मत बनाने के लिए उठाएँगे तभी कोई और आपकी मदद के लिए आगे आएगा। अपनी बात को मैं जोधपुर की एक ऐसी महिला की कहानी से समझाता हूँ, जिसने रूढ़िवादी समाज की मान्यताओं को तोड़ते हुए ना सिर्फ़ अपनी 7 बेटियों को अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए बल्कि एक बड़ा और शानदार व्यवसाय भी खड़ा किया। आज उन्हें पूरा देश 'स्पाइस गर्ल्स’ के नाम से जानता है।
चलिए शुरू करते हैं, बात कई साल पुरानी है। अजमेर की रहने वाली भागवंती के भाग्य ने उस वक्त पलटी लेना शुरू किया जब परेशानी के दौर में, कक्षा आठवीं में पढ़ते समय उनके परिवार ने उनकी शिक्षा यह कह कर छुड़वा दी कि ‘तुम पढ़ कर क्या करोगी? तुम्हारे भाइयों की शिक्षा अधिक महत्वपूर्ण है।’ उस दिन उन्होंने पढ़ाई को अलविदा कहा और घर के कार्यों को सीखने और सम्भालने लगी। 22 वर्ष की उम्र में उनकी शादी जोधपुर के रहने वाले मोहनलाल से करवा दी।
मोहनलाल, बहुत ही सज्जन और पढ़े लिखे व्यक्ति थे। इसलिए उनके वैवाहिक जीवन की शुरुआत तो अच्छे से हुई। लेकिन बेटी को जन्म देने के बाद उन्हें अपने ससुराल से ताने सुनने को मिलने लगे। असल में ससुराल वाले उनसे एक लड़का चाहते थे क्योंकि उनका मानना था कि बेटी बोझ होती है और लड़का वंश आगे बढ़ाता है। इसी चक्कर में उन्हें एक के बाद एक करते हुए 7 लड़कियाँ हो गई। पारिवारिक बिगड़ते माहौल को देख मोहनलाल ने शादी के दस वर्ष पश्चात परिवार से अलग होने का निर्णय लिया क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वे अपनी लड़कियों की परवरिश ऐसे माहौल में करें जहाँ उन्हें नीची नज़र से देखा जाए; बोझ माना जाए।
परिवार से अलग होने के बाद मोहनलाल ने मसालों की एक छोटी सी दुकान शुरू की। इसके बाद उनके जीवन के अगले दस वर्ष बहुत अच्छे से बीते क्योंकि उनकी सातों लड़कियाँ घर में कभी माता-पिता को जज बनाकर नृत्य प्रतियोगिता आयोजित करती तो कभी कुछ और। लेकिन 44 वर्ष की उम्र में मोहनलाल दिल के दौरे की वजह से इस दुनिया से चले गए और 44 साल की उम्र में भागवंती विधवा हो गयी।
इस वक्त उनकी एक बेटी ने कॉलेज में प्रवेश लिया था और सबसे छोटी 10 वर्ष की भी नहीं थी। ज़िम्मेदारियों की वजह से भागवंती ने शोक मनाने के स्थान पर अंतिम संस्कार के ठीक बाद अपनी लड़कियों की मदद से दुकान खोलने का निर्णय लिया। इसके बाद एक बार फिर ससुराल पक्ष और समाज से विरोध का स्वर शुरू हुआ और लोग कहने लगे, ‘देखते हैं ये औरतें क्या कर पाती है!’ असल में परिवार वाले दुकान पर अपना नियंत्रण चाहते थे लेकिन भागवंती अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छे से निभाने के उद्देश्य के कारण ऐसा नहीं चाहती थी। उन्होंने सबको नज़रंदाज़ कर अपने कार्य पर ध्यान लगाना शुरू किया। वैसे भी देखा जाए तो उनके पास ध्यान देने का समय भी कहाँ था।
वे सूरज उगने के साथ ही अपना काम शुरू करती थी और बच्चों के टिफ़िन देने के बाद अपनी मसाले की दुकान सम्भालने लगती थी। वे अकाउंट मे तो अच्छी थी, लेकिन अंग्रेज़ी ना आने के कारण विदेशी ग्राहकों को अच्छे से सम्भाल नहीं पाती थी। ऐसे में उनकी बेटियों ने उनकी मदद करना शुरू किया। वे अपनी लड़कियों का हश्र अपने समान नहीं चाहती थी इसलिए उन्होंने व्यवसाय के साथ उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनकी शिक्षा प्रभावित ना हो।
जल्द ही उनकी मेहनत के परिणाम नज़र आने लगे और उन्होंने मात्र 4 साल बाद ही अपनी दूसरी शाखा का शुभारम्भ किया। आज 16 साल बाद वे 4 शाखाओं की मालिक हैं और लोग उन्हें 'द स्पाइस गर्ल्स' कहकर बुलाते हैं। दोस्तों, इस कहानी का सबसे मज़ेदार हिस्सा तो यह है कि जो रिश्तेदार कभी उनपर उँगली उठाते थे आज वही व्यवसायिक सलाह के लिए उनके पास आते हैं।
दोस्तों, उन्होंने रूढ़िवादी मान्यताओं को तोड़ते हुए यह सिद्ध कर दिया है कि लड़कियाँ उनके लिए बोझ नहीं है, वे तो उनकी संपत्ति हैं, उनका आधार स्तंभ हैं। वे मानती हैं कि उनके माता-पिता ने उन्हें एक अच्छी पत्नी बनना सिखाया और उनकी बेटियों ने उन्हें उद्यमी बनना सिखाया! इसीलिए तो दोस्तों शायद कहा गया है, ‘जहाँ चाह, वहाँ राह!!!’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com