Jan 23, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
आईए साथियों, आज के लेख की शुरुआत एक घटना से करते हैं। बात लगभग १०-१२ वर्ष पूर्व उस वक़्त की है, जब मेरे गुरु आईआईटी मुंबई के स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट से अपनी शिक्षा पूर्ण कर रहे थे। एक दिन अचानक से ही एक प्रोफ़ेसर ने कक्षा में सरप्राइज टेस्ट लेने की घोषणा कर दी। सेमिस्टर परीक्षाओं का समय होने के कारण सभी छात्र पूरी तरह आश्वस्त थे कि वे इसका सामना आराम से कर लेंगे। इसलिए वे सभी पूरी बेफ़िक्री के साथ इसके लिए तैयार हो गए।
टेस्ट शुरू होते ही सभी छात्र सवालों के जवाब लिखने में व्यस्त हो गए। लेकिन प्रश्नपत्र के अंत तक पहुँचते ही एक दूसरे का मुँह देखने लगे क्योंकि अंतिम प्रश्न में प्रोफ़ेसर ने चाय देने वाले लड़के का नाम पूछ लिया था, जो किसी को भी याद नहीं था। हालाँकि उन्हें उस युवा की शक्ल तो याद आ रही थी; वे उसके कार्य और व्यवहार को याद भी कर पा रहे थे, लेकिन उसका नाम किसी को याद नहीं आ रहा था। याद आए भी कैसे? कभी किसी ने उसका नाम जानने की कोशिश भी नहीं करी थी। वे तो उसे कभी ‘छोटू’ कहकर तो कभी सीटी मारकर या फिर ‘छिछछिच’ कर बुलाया करते थे।
मेरे गुरु की कक्षा के सबसे होनहार छात्र ने तो नाराज़ होते हुए प्रोफ़ेसर से यहाँ तक कह दिया था कि ‘यह प्रश्न तो आउट ऑफ़ सिलेबस है। ऐसे प्रश्न भी कभी किसी परीक्षा में पूछे जाते हैं क्या?’ प्रोफ़ेसर शायद विद्यार्थियों की इस प्रतिक्रिया के लिए पहले से ही तैयार थे। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘देखो यह प्रश्नपत्र आईआईटी दिल्ली से बन कर आया है इसलिए मैं इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकता हूँ। तुम चाहो तो इसका उत्तर छोड़ सकते हो। वैसे भी यह प्रश्न मात्र 1 अंक का है।’
परीक्षा के पश्चात सभी छात्रों ने प्रोफ़ेसर से सवाल किया, ‘इस चाय वाले लड़के का हमारी पढ़ाई से क्या संबंध? क्या मुख्य परीक्षा में भी इस तरह का प्रश्न आ सकता है?’ उस वक़्त तो प्रोफ़ेसर इसे टाल गए। लेकिन कुछ वर्षों बाद रियूनियन के दौरान जब उनसे इस विषय में पूछा गया तो वे बोले, ‘चाय वाले का नाम पूछने के दो कारण हैं। पहला, किसी भी व्यक्ति के लिए, किसी भी भाषा में सुना जाने वाला सबसे प्यारा शब्द उसका अपना नाम होता है। जब आप उसका नाम लेते हैं तो वह ख़ुद को आपसे जुड़ा हुआ महसूस करता है और यही जुड़ाव उसे और बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है। दूसरा, मैंने तुमसे यह प्रश्न इसलिए पूछा था ताकि तुम्हें यह एहसास हो जाये कि हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं जो महत्वपूर्ण कार्यों में लगे हुए हैं और हम उन्हें जानते तक नहीं है।’ इसके पश्चात, एक पल ख़ामोश रहने के बाद प्रोफेसर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘हम में से ज़्यादातर लोग अपना जीवन जागरूक रहते हुए नहीं जीते हैं। जैसे, उस वक़्त तुम लोग जी रहे थे। मेरा मानना है कि जब तक तुम लोग जागरूक रहते हुए जीना नहीं सीखोगे, तब तक जीवन को ज़िंदादिली के साथ जी नहीं पाओगे।’
दोस्तों, बात तो उन प्रोफ़ेसर की सौ टका सही थी। जीवन का असली मज़ा उसे सजगता के साथ हर पल जीने में है। इस दुनिया में हमारे पास मौजूद हर चीज और हर व्यक्ति का अपना विशेष महत्व होता है। लेकिन वह व्यक्ति या चीज ख़ास है, इसका एहसास आपको तभी हो सकता है, जब आप अपना जीवन वर्तमान में सजगता के साथ जिएँ। लेकिन सामान्यतः इंसान अतीत, भूत और भविष्य में इतना उलझा रहता है कि उसे इस बात का एहसास ही नहीं होता है कि आस-पास मौजूद लोगों में कौन उसका जीवन सरल और सुगम बना रहा है। जी हाँ दोस्तों, जो हमारे आस-पास घटित हो रहा है अगर हम उसे महसूस करना शुरू कर दें तो आधी समस्या तो पहले ही ख़त्म हो जाती है। याद रखियेगा दोस्तों, प्रेम और स्नेह के साथ जागरूक रहना ही असल में हमें फ़ोकस्ड बनाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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