Jan 29, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, जीवन में अक्सर हम कुछ बातों को सिर्फ़ सतही तौर जानते है, और मानके चलते हैं कि हम उसके जानकार या विशेषज्ञ हैं। यह स्थिति अक्सर उस क्षेत्र विशेष के बारे में जानने और सीखने के मौके को आपसे छीन लेती है। आइए आज के लेख में हम एक तपस्वी और उनके एक शिष्य की रोचक कहानी से अधूरे ज्ञान से होने वाले नुक़सान और जानकर बनकर सही निर्णय लेने के महत्व को सीखते हैं।
बहुत साल पहले एक तपस्वी अपने शिष्यों को उपदेश देते हुए कह रहे थे, ‘इस संसार में कण-कण में भगवान का वास है। अर्थात् इस दुनिया में हर वस्तु में और हर स्थान में भगवान मौजूद हैं। इसलिए हर प्राणी, हर वस्तु, हर स्थान को भगवान मान कर उसका आदर करो।’ उस दिन के पाठ से एक शिष्य बहुत प्रभावित हुआ और उसने उसी क्षण इस बात को अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया। लेकिन समस्या यह थी कि वह गुरु की कही बात का शाब्दिक अर्थ तो समझ गया था, पर इसके गूढ़ अर्थ से अनजान था। उसके लिए इसे सही संदर्भ में जानना और उपयोग में लेना बाकी था।
एक दिन वह शिष्य बाजार से गुजर रहा था, तभी उसने देखा कि एक पागल हाथी उसकी ओर दौड़ा चला आ रहा है और उस पर बैठा महावत जोर-जोर से चिल्लाकर सभी को सावधान करते हुए रास्ते से हट जाने का कह रहा था। महावत की बात सुन सभी लोग रास्ते से हटने लगे सिवा उस शिष्य के, वह अभी भी रास्ते के बीच में खड़ा था। उसे देख महावत लगातार जोर से चिल्लाते हुए कह रहा था, ‘हट जाओ! हट जाओ! यह हाथी बेकाबू हो गया है।’ लेकिन शिष्य वहीं खड़ा-खड़ा सोच रहा था, ‘मेरे गुरु ने कहा है कि कण-कण में भगवान हैं। इसका अर्थ हुआ इस हाथी में भी भगवान हैं और मुझ में भी और जब दोनों में भगवान हैं तो भगवान को भगवान से डर कैसा?’
इस विचार के कारण वह शिष्य अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ और रोड के बीच में ही खड़ा रहा। दोस्तों अब आप अंदाजा लगा ही सकते हैं कुछ क्षणों बाद उसके साथ क्या हुआ होगा। हाथी जैसे ही उसके पास पहुँचा उसने उसे सूँड़ से उठाया और घुमा कर दूर फेंक दिया। बेचारा शिष्य अब बुरी तरह घायल था। चोट और दर्द के मारे अब उसका हाल, बेहाल था। लेकिन इस दर्द से ज़्यादा उसे इस बात का दुख सता रहा था कि ‘भगवान ने भगवान को क्यों मारा।’
कुछ देर में उसके सहपाठी उसके पास पहुँचे और उसे उठाकर तपस्वी के पास ले गए। वहाँ पहुंचते ही घायल शिष्य ने तपस्वी से प्रश्न करते हुए कहा, ‘गुरुजी! आपने तो कहा था कि कण-कण में भगवान का वास है। फिर भगवान ने मुझे क्यों मारा?’ गुरुदेव तुरंत शिष्य की मनःस्थिति समझ गए और मुस्कुराते हुए बोले, ‘यह सत्य है कि कण-कण में भगवान हैं, हाथी में भी और महावत में भी। जब महावत के अंदर का भगवान तुम्हें चेतावनी दे रहा था तो तुमने उसकी बात क्यों नहीं मानी?’
कहने की जरूरत नहीं है दोस्तों कि गुरु की बात से शिष्य को निश्चित तौर पर अपनी भूल का एहसास हो गया होगा। याद रखिएगा दोस्तों, कोई भी शिक्षा तभी सार्थक होती है जब उसके शाब्दिक अर्थ के साथ-साथ उसके अंदर छुपे गूढ़ अर्थ को विवेक के साथ समझ लिया जाए। इसके बिना उसे याने शिक्षा से मिले ज्ञान को सही संदर्भ में उपयोग में लाना संभव नहीं हो पायेगा। दूसरे शब्दों में कहूँ दोस्तों, तो सिर्फ़ अच्छी बातों को सुनने से ही सब कुछ नहीं होगा, उसे आपको अपनी बुद्धि और समझदारी से जीवन में लागू करना होगा। तभी वह जानकारी आपके लिए असली ज्ञान बन पाएगी। तो चलिए दोस्तों, आज से हम सब संकल्प लेते हैं कि हम जो भी सीखेंगे, उसे सही तरीक़े से समझेंगे और विवेक के साथ अपने जीवन में अपनाएंगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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