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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जिएँ जी भर के…

Apr 12, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों मेरा मानना है, चिंता करना और ना करना दोनों ही एक आदत है। अर्थात् जीवन के रूप में दिए ईश्वर के उपहार को किंतु, परंतु, लेकिन, अगर-मगर के साथ जीना और दूसरा जो भी जीवन में सामने आ जाए उसे ईश्वर की इच्छा या उसकी योजना का हिस्सा मान स्वीकारना और खुश रहना, मेरी नज़र में एक आदत है। जिसे जीवनशैली में छोटे-मोटे परिवर्तन कर अपनाया जा सकता है। चलिए मैं अपनी बात को आपको एक कहानी के माध्यम से समझाना चाहता हूँ।


बात कई साल पुरानी है, रामपुर में एक व्यापारी रहता था, जिसका कारोबार देश-विदेश में फैला हुआ था। समय के साथ उसकी मेहनत ने फल देना शुरू किया और उसकी गिनती देश के बड़े सेठों में होने लगी। अब उसका छोटा सा घर, हवेली बन गया; घर में बड़ी गाड़ी और नौकर-चाकर आ गए। वैभव और बड़े परिवार के बीच उसका जीवन बड़े ही आनंद से बीत रहा था।

एक दिन एक परिचित ने उसे बताया कि पास ही के गाँव में रहने वाले एक सेठ की मृत्यु हो गई है और जीवन भर महंत से कमाई धन-संपत्ति ऐसे ही पड़ी रह गई। सहज भाव से साझा की गई इस जानकारी ने सेठ को अंदर तक हिला दिया। अब उसे हर पल अपनी मौत नज़दीक आती नज़र आने लगी। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में उसकी सारी ख़ुशी ग़ायब हो गई। समय के साथ मृत्यु के इस विचार का असर उसकी सेहत पर इतना ज़्यादा पड़ा कि वो गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। परिवार वालों ने उसका इलाज अच्छे से अच्छे डॉ से करवाया। लेकिन उसकी सेहत पर इसका कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा।


एक दिन किसी के कहने पर सेठ के परिवार वाले उसे एक महात्मा के पास ले गए। व्यापारी ने महात्मा के चरणों में बैठकर रोते हुए अपनी व्यथा कह सुनाई। जिसे सुनकर महात्मा मुस्कुराने लगे क्योंकि वे सेठ की बीमारी की वजह अच्छे से जान चुके थे। वे सेठ के सर पर हाथ फेरते हुए बोले, ‘तुम्हारे रोग का इलाज तो बहुत आसान है, बेटा।’ महात्मा की वाणी सुन सेठ के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ और वे कई दिनों बाद हल्की मुस्कुराहट और अधीरता के साथ बोले, ‘महात्मा जी बताइए ना वह इलाज क्या है?’


महात्मा जी पूर्ण सजगता और गंभीरता के साथ बोले, ‘देखो वत्स अगले सात दिनों तक तुम्हें मेरी बताई बात का जाप मंत्र की तरह करना होगा। यह मंत्र तुम्हारी सभी समस्याओं को ख़त्म कर देगा।’ इसके बाद महात्मा एकदम शांत भाव के साथ बोले, ‘देखो, अगले सात दिनों तक तुम्हें एक मंत्र का जाप करना है। "जीवन एक अनमोल उपहार है और मैं इसे हर पल जियूँगा।’ इस नुस्खे को सात दिन तक सुबह शाम जब भी संभव हो, मन ही मन दोहराते रहो। जितना ज्यादा इसे दोहराओगे, उतना जल्दी ठीक होते जाओगे। मैं अगले सप्ताह तुम्हारा हाल जानने के लिए फिरसे मिलने आऊँगा।’


सात दिन के बाद जब महात्मा सेठ से मिलने पहुँचे तो उसके चेहरे की बदली हुई रंगत और आभा को देख, खुश होते हुए बोले, ‘आज तुम बड़े खुश नज़र आ रहे हो।’ महात्मा की वाणी सुनते ही सेठ उनके चरणों में गिर पड़ा और बोला, ‘महाराज, आपने मुझे बचा लिया। आपके मंत्र ने मुझ पर जादू सा असर किया। मैंने जान चुका हूँ कि जिस दिन मौत आएगी, मैं उसी दिन मरूँगा। उससे पहले मैं अपने जीवन के हर पल को सिर्फ और सिर्फ़ जियूँगा। आपके नुस्ख़ा तो जादू समान था।’ महात्मा मुस्कुराते हुए बोले, ‘वत्स, असल में जादू हमारे विचारों में होता है। जीने का विचार रखेंगे, तो हमारी जिंदगी का हर पल जीवन्त बन जाएगा और अगर मृत्यु का विचार रखेंगे तो मरने से पहले जाने कितनी बार हम मृत्यु को प्राप्त होंगे।’


बात तो दोस्तों महात्मा की ज़बरदस्त थी। अगर हमारे विचार सकारात्मक; ऊर्जा से भरे; जीवंत होंगे, तो हम हर पल ऊर्जावान और खुश व प्रसन्न रहते हुए जीवन को हर पल जी पायेंगे। इसीलिए दोस्तों मैंने पूर्व में कहा था, ‘चिंता करना और ना करना दोनों ही एक आदत है।’ इसलिए हमेशा याद रखियेगा, ‘हम ही अपने रोज़मर्रा के विचारों से, अपनी इच्छाओं से, अपने आकर्षण-विकर्षण और अपनी पसंद-नापसंद से, अपनी नियति का निर्माण करते हैं।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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