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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जिएँ नैतिकता आधारित जीवन…

Mar 5, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



दोस्तों, बात क़ानून की करें या किसी भी सिस्टम की या फिर जीवन मूल्यों की, इन सभी का मुख्य उद्देश्य ग़लतियाँ निकालना नहीं अपितु किसी भी कार्य को इस तरह से पूर्ण करवाना है कि अंतिम व्यक्ति तक उसका लाभ पहुँच सके। अपनी बात को मैं आपको अमेरिका के एक शॉपिंग मॉल में घटी एक चोरी की घटना से समझाने का प्रयास करता हूँ, जिसमें एक पंद्रह वर्षीय युवा चोरी करते हुए सिक्योरिटी गार्ड द्वारा पकड़ लिया गया था। गार्ड की गिरफ़्त से भागने के प्रयास में इस युवा के टकराने से स्टोर का एक शेल्फ टूट गया और साथ ही कुछ सामान का नुक़सान भी हो गया।


अपने नुक़सान की भरपाई और चोर को सजा दिलवाने के उद्देश्य से स्टोर मालिक द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी गई और इस युवा को पकड़ कर कोर्ट में पेश कर दिया गया। कोर्ट में जज ने उस युवा से प्रश्न किया, ‘तुमने क्या स्टोर से सच में एक ब्रेड और पनीर का पैकेट चुराया था?’ लड़के ने अपनी नज़रों को नीचे कर हाँ में सर हिला दिया। जज ने जब सामान चुराने की वजह पूछी तो वह युवा बस इतना सा बोला, ‘साहब, मुझे उसकी काफ़ी ज़रूरत थी।’ युवा का जवाब सुन जज आश्चर्यचकित थे। उन्होंने जिज्ञासा वश उस युवा से अगला प्रश्न किया, ‘फिर तुमने उसे ख़रीदा क्यों नहीं?’ वह युवा एकदम धीमे स्वर में बोला, ‘साहब, पैसे नहीं थे मेरे पास।’ जज बोले, ‘फिर तुमने अपने घर वालों से पैसे क्यों नहीं माँगे?’ युवा और गंभीर होता हुआ बोला, ‘घर में सिर्फ़ बीमार और बेरोज़गार माँ है। मैंने ब्रेड और पनीर भी सिर्फ़ उसके लिए ही चुराया था।’ जज की जिज्ञासा अब और बढ़ चुकी थी। अब वे इस मामले की तह तक जाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने अगला प्रश्न करते हुए उस युवा से पूछा, ‘फिर तुम कुछ काम क्यों नहीं कर लेते?’ युवा एकदम हताश स्वर में बोला, ‘एक जगह कार वॉश का काम करता था। लेकिन माँ की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी लेने पर उसने मुझे काम से निकाल दिया।’ जज ने तुरंत उस युवा से अगला प्रश्न करते हुए कहा, ‘फिर तुम्हें लोगों से मदद माँगना चाहिए थी।’ युवा पूरी तरह निराशा भरे स्वर में बोला, ‘साहब यह प्रयास भी किया था मैंने। लगभग ५० लोगों के सामने हाथ फैलाया था, जब किसी ने भी मेरी परेशानी को नहीं समझा, तो बिल्कुल आख़िर में यह क़दम उठाया।’


लड़के के जवाब से कोर्ट में सन्नाटा चा गया। जज ने भी जिरह को ख़त्म करते हुए अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा, ‘चोरी और वह भी ब्रेड की, मेरी नज़र में यह बेहद शर्मनाक जुर्म है और इस जुर्म के हम सब ज़िम्मेदार हैं। इसलिए इस अदालत मैं आज मेरे सहित सभी मौजूद लोग मुजरिम हैं। मैं सहित यहाँ मौजूद हर शख़्स पर दस-दस डॉलर का जुर्माना लगाया जाता है। जब तक आप जुर्माना नहीं चुकायेंगे यहाँ से बाहर नहीं जाएँगे।’ इतना कहकर जज ने अपनी जेब से दस डॉलर निकाल कर टेबल पर रख दिए और अपना फ़ैसला लिखते-लिखते कहा, ‘इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूँ क्योंकि उसने एक भूखे बच्चे से ग़ैर इंसानी सुलूक करते हुए उसे पुलिस के हवाले किया। अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट, स्टोर सील करने का हुक्म दे देगी। इसके साथ ही जुर्माने के रूप में इकट्ठी हुई संपूर्ण राशि को कोर्ट इस युवा को देकर, उससे माफी तलब करती है।’


इस फ़ैसले को सुन वहाँ मौजूद इस युवा सहित लगभग हर शख़्स की आँखों से आँसू बह रहे थे। वह युवा बार-बार जज को देख रहा था और अपनी आँखों में आए आंसुओं को छिपाने का असफल प्रयास कर रहा था। ऐसे में मुख्य सवाल यह उठता है दोस्तों, कि क्या हम समाज के हर वर्ग, सिस्टम के हर हिस्से को अदालत के इस निर्णय के समान याने समानुभूति पर आधारित बना सकते हैं? जी हाँ दोस्तों, मुझे तो यह वाक़ई इतना महत्वपूर्ण लगता है। मेरी नज़र जितना ज़रूरी गणित, विज्ञान या किसी भी अन्य विषय की शिक्षा देना है, उससे कई गुना ज़्यादा मनुष्य में इंसानियत का भाव पैदा करना है। दूसरे शब्दों में कहूँ, तो हमें समाज के हर वर्ग को सिखाना होगा कि इंसानियत के बिना इंसान अधूरा है। इसीलिए शायद कहा गया है, ‘नैतिक बुद्धिमत्ता केवल सही और गलत जानना ही नहीं है। हम में से ज्यादातर लोग इस फर्क को पहले से ही जानते हैं। इसका अर्थ है, हर दिन के हर पल में सही चुनाव करना। यह उन चीजों के बारे में है, जिन्हें हम सोचते हैं, महसूस करते हैं, करते हैं और नहीं करते हैं। नैतिकता का पालन करने से ही चरित्र का निर्माण होता है।’


याद रखियेगा, बड़े होने का अर्थ अमीर होना नहीं, दिल का इंसानियत से भरा होना है। दूसरी बात, समाज केवल तब बदलता है, जब हम इसको बदलना चाहते हैं, और जब तक हम उस सोच के मुताबिक़ ख़ुद को बदलते हैं, तब तक समाज अपने आप ही उस हद तक बदल चुका होता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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