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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जिएँ समानता के भाव के साथ…

Mar 17, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…



आईए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। बात कई साल पुरानी है। एक व्यक्ति कोल्ड स्टोरेज कंपनी में मैनेजर के तौर पर कार्य किया करता था। वह प्रतिदिन अपना दैनिक कार्य पूर्ण करने के पश्चात कोल्ड स्टोरेज सहित पूरे कार्यालय का पहले निरीक्षण किया करता था और सब कुछ ठीक प्रतीत होने पर अपने घर ज़ाया करता था।


एक दिन जब वह कोल्ड स्टोरेज का निरीक्षण कर रहा था तब अचानक ही उसका दरवाज़ा अपने आप ही बंद हो गया और वह उसके अंदर फँस गया। उसने अंदर से दरवाज़े को खोलने का कई बार प्रयास किया लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। मैनेजर को अपनी मौत सामने नज़र आने लगी थी क्योंकि माइनस ३०-४० डिग्री के तापमान पर ज़्यादा देर तक बच पाना मुश्किल था। मौत सामने देख मैनेजर सच्चे मन से भगवान को याद करने लगा। सर्वप्रथम उसने ईश्वर से अपने पापों के लिए क्षमा माँगी और उसके बाद प्रार्थना करते हुए बोला, ‘प्रभु, अगर मैंने ज़िंदगी में कोई भी अच्छा धर्म सम्मत कार्य किया हो तो मुझे आज बचा लेना। घर पर मेरी बीवी और बच्चे मेरा इंतज़ार कर रहे हैं।’ इतना कहते-कहते मैनेजर की आँखों से आंसू बहने लगे।


दूसरी और कार्यालय में छुट्टी का समय हो जाने के कारण और किसी का इस बात पर ध्यान ही नहीं गया कि मैनेजर कोल्ड स्टोरेज के अंदर बंद हो गया है। सभी लोगों ने अपना कार्य पूर्ण किया और अपने-अपने घर चले गए। अब वहाँ सिर्फ़ चौकीदार बचा था जो बड़ा बेचैनी के साथ इधर-उधर चक्कर लगा रहा था। अचानक ही उसके मन में कुछ विचार आया और वह लगभग दौड़ता हुआ कोल्ड स्टोरेज तक गया और उसका दरवाज़ा खोलकर अंदर जाने लगा। तभी चौकीदार का ध्यान कोल्ड स्टोरेज की ज़मीन पर पड़ा जहाँ मैनेजर अचेत अवस्था में पड़े हुए थे। चौकीदार ने तुरंत उन्हें अपने कंधे पर उठाया और बाहर लाकर उन्हें हीटर के सामने लेटाया और उनके हाथ-पैरों की मालिश करने लगा।


कुछ देर पश्चात जब मैनेजर थोडे सामान्य हुए और उनकी चेतना वापस लौटी, तब चौकीदार ने ईश्वर का धन्यवाद करते हुए मैनेजर से पूछा, ‘आप अंदर कैसे बंद हो गये थे?’ मैनेजर ने चौकीदार के प्रश्न को लगभग नज़रंदाज़ करते हुए कहा, ‘वह सब छोड़ो और मुझे तो बस यह बताओ तुम अचानक कैसे कोल्ड स्टोरेज के अंदर आए?’ चौकीदार मैनेजर के सामने हाथ जोड़ते हुए बोला, ‘सर, पिछले बीस वर्षों से मैं इस कोल्ड स्टोरेज कंपनी में कार्य कर रहा हूँ। इतने वर्षों में यहाँ प्रतिदिन कई लोग आए और गए। पर उनमें से किसी ने भी मेरा हाल, मेरी ज़रूरत जानने का प्रयास नहीं किया, सिवाए आपके। आप जब भी कोल्ड स्टोरेज में आते या कोल्ड स्टोरेज से जाते थे, आप मुझसे मुस्कुराते हुए हाल-चाल पूछा करते थे। मेरी तकलीफ़ जानने का प्रयास किया करते थे। आपका हंसते-मुस्कुराते राम-राम करना, हाल-चाल पूछना मन को तृप्त करने के साथ-साथ, दिनभर की सारी थकान दूर कर दिया करता था।


आज सुबह भी रोज़ की तरह आपने मेरा अभिवादन किया था। लेकिन जाते समय ‘राम-राम काका’ सुनने के लिए इंतज़ार करता रहा। जब ज़्यादा देर हो गई तो मैं आपको तलाश करने के लिए चल पड़ा कि कहीं आप किसी मुश्किल में ना फँसे हो। बस इसी विचार ने मुझे आप तक पहुँचा दिया। चौकीदार की बात सुन मैनेजर हैरान था। वह सोच रहा था कि बिना छोटे-बड़े का फ़र्क़ कर सभी को हंस कर ‘राम-राम’ कहने, उनका हाल-चाल पूछने से आज उसकी जान बच गई थी।


दोस्तों, सुनने में साधारण और अविश्वसनीय सी लगने वाली यह कहानी है एक सच्ची घटना पर आधारित। वाक़ई हर इंसान को इंसान की नज़रों से देखना और उनसे प्रेम पूर्ण व्यवहार करना मुसीबत के समय या विपरीत दौर को आपके लिए आसान बना देता है। इसीलिए हमारी संस्कृति में मीठा बोलना, सबको सम्मान देना, सबको समान नज़रों से देखना, सबकी मदद करना आदि को इतना महत्व दिया गया है। जैसे-जैसे आप ‘अपनेपन' और ‘समानता’ के भाव को विकसित करते जाएँगे, वैसे-वैसे ही आप ‘मेरा-मेरा’ करने से दूर होते जाएँगे और अपने देने का दायरा बढ़ाते जाएँगे। ऐसा करना जल्द ही आपके जीवन को ख़ुशी, संतुष्टि और सुख से भर, आपको एहसास करा देगा कि ‘देना ही पाना है!’ इसीलिए शायद कहा गया है, ‘जो दोगे औरों को, वही वापस लौट कर आएगा।’


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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