May 2, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, जैसा कि हमने पूर्व में इसी कॉलम में चर्चा करी थी कि ‘देना ही पाना है…’ ठीक उसी तरह मेरा मानना है कि देने से कभी कम नहीं होता। अर्थात् अगर आप एक हाथ से दूसरों की मदद करते हैं तो ईश्वर दूसरे हाथ से आपकी मदद हाथों-हाथ करता है और अगर आप इस सूत्र को अपने परिवार के अंदर अपना लें, तो फिर बात ही क्या है। जी हाँ दोस्तों, आप स्वयं सोच कर देखिए अगर भाई-भाई की, भाई-बहन की, एक रिश्तेदार दूसरे रिश्तेदार की या एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी की मदद करने लगे तो फिर माहौल कितना अच्छा बन सकता है। चलिए, इसी बात को हम एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।
बात कई साल पुरानी है, राजेन्द्रनगर नामक गाँव में दो भाई रहा करते थे, जिन्होंने बचपन में ही अपने माता-पिता को खो दिया था। इसलिए बड़े भाई ने ही बड़ी विपत्तियों के बीच छोटे भाई के लालन-पालन की ज़िम्मेदारी उठाई थी। बड़ा भाई खेती-किसानी कर किसी तरह दोनों के जीवन को चला रहा था। उसकी प्राथमिकता हमेशा अपने छोटे भाई को अच्छी शिक्षा और संस्कार देने की रहती थी।
कुछ वर्षों बाद छोटे भाई ने भी अपने बड़े भाई का खेती-किसानी में हाथ बँटाना शुरू कर दिया, जिसके एवज़ में बड़े भाई ने उससे आधी फसल साझा करना शुरू कर दिया। कुछ वर्षों बाद बड़े भाई की शादी हो गई और फिर दो बच्चे। अब बड़े भाई का परिवार चार लोगों का हो गया था। एक दिन खेत में काम करते वक़्त छोटे भाई के मन में विचार आया कि उपज का आधा-आधा बँटवारा करना उचित नहीं है। चूँकि मैं अकेला हूँ इसलिए मेरी आवश्यकता भी कम है और भाई का परिवार बड़ा है तो उसकी आवश्यकता भी बड़ी है।
इस विचार के आते ही छोटे वाले भाई ने रात्रि के समय चुपचाप अनाज का एक बोरा ले जाकर भाई के खेत में रख दिया। इसी दौरान बड़े भाई के मन में विचार आया कि बराबर का बँटवारा करना कहीं से भी उचित नहीं है क्योंकि मेरे पास मेरा ध्यान रखने के लिए पत्नी और बच्चे हैं, लेकिन मेरे भाई का तो कोई परिवार नहीं है। भविष्य में अगर उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं हुआ तो परेशानी हो जाएगी। इससे बचने का एक ही तरीक़ा है, मुझे भाई को अतिरिक्त अनाज देना चाहिये।
इस विचार के साथ ही बड़े भाई ने भी छोटे भाई के खेत में एक बोरी अनाज रखना शुरू कर दिया। यह सिलसिला बहुत दिनों तक चलता रहा। अर्थात् दोनों भाई कई दिनों तक एक दूसरे के खेत में अनाज के बोरे रखने लगे। समय यूँ ही बीतता रहा और दोनों भाई एक दूसरे से अनजान इस उलझन में पड़ गये कि इतने बोरे अनाज देने के बाद भी वह क्यों कम नहीं हो रहा है।
एक दिन बड़े भाई ने इसका राज पता करने का निर्णय लिया और रात को छोटे भाई के खेत में अनाज का बोरा रखने के बाद अपने खेत में छुप कर बैठ गया। थोड़ी देर बाद छोटे भाई को अपने खेत में अनाज का बोरा लाते देख वो आश्चर्यचकित था। जैसे ही छोटे भाई ने अनाज का बोरा उसके खेत में रखा, वह दौड़ता हुआ उसके पास गया और उसे गले लगा लिया और रोने लगा। आज दोनों भाइयों को पता चला था कि आखिर इतने दिनों से हो क्या रहा है? वे ख़ुशी से एक–दूसरे के गले लगाकर रोने लगे।
दोस्तों, यह तो एक काल्पनिक क़िस्सा था लेकिन सोच कर देखिए अगर हमारा समाज ऐसा हो गया तो क्या होगा? निश्चित तौर पर चारों ओर समृद्धि और संतुष्टि नज़र आएगी। लोग एक दूसरे से होड़ या प्रतिस्पर्धा कर दूर होने के स्थान पर एक-दूसरे के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार कर साथ रह पाएँगे। इसीलिए दोस्तों, हर समझदार इंसान अपना जीवन सहानुभूति और समानुभूति के आधार पर जीता है। एक बार विचार कर देखियेगा…
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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