July 13, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कुछ वर्ष पूर्व ट्रेनिंग के दौरान मुझे एक ऐसा सूत्र हाथ लगा था जिसे याद रखने मात्र से ही मुझे हर पल वर्तमान में रहने की और लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। यक़ीन मानियेगा दोस्तों, पाँच शब्दों का अदृश्य रिमाइंडर रूपी यह सूत्र, मुझे हर पल याद दिलाता रहता है कि मैं किस दिशा ने आगे बढ़ रहा हूँ। अब आपके मन में भी इसे जानने की उत्सुकता बढ़ रही होगी, लेकिन उस सूत्र पर चर्चा करने से पहले मैं आपको एक क़िस्सा सुनाता हूँ।
बात वर्ष १९८५ के लगभग की है जब मैं घर की इकलौती गाड़ी ‘हीरो मैजेस्टिक’ मोपेड के पंचर होने का इंतज़ार किया करता था। जी हाँ सही पढ़ा आपने, मैं गाड़ी के पंचर होने का इंतज़ार किया करता था क्योंकि यही वह समय होता था जब पिताजी या ताऊजी मुझे गाड़ी को पंचर की दुकान तक धकेल के ले जाने का मौक़ा दिया करते थे और इसी मौक़े में मौक़ा मिलते ही मैं उसे साइकिल के माफ़िक़ पैडल मारकर चला लिया करता था। एक दिन शायद ताऊजी ने मुझे ऐसा करते देख लिया और उन्होंने समझाईश के साथ मुझे गाड़ी चलाना सिखा दिया।
एक दिन गाड़ी चलाते समय, मुझे अत्यधिक हॉर्न बजाता देख ताऊजी बोले, ‘निर्मल, देखो सामने वाली गाड़ी पर क्या लिखा है।’ आगे बढ़ने से पहले आपको बता दूँ कि उस वक़्त गाड़ियों के पीछे अच्छे स्लोगन लिखने का चलन जैसा था। मैंने ताऊजी को स्लोगन पढ़ कर सुनाते हुए कहा, ‘जगह मिलने पर साइड दी जाएगी।’ और ‘नो हॉर्न प्लीज़!’ मेरी बात पूरी होते ही ताऊजी बोले, ‘फिर तुम बार-बार हॉर्न क्यों बजा रहे हो?’ उनकी कही यह बात मेरे ज़हन में कुछ इस तरह घर कर गई कि मैं आज तक भी अनावश्यक हॉर्न का प्रयोग नहीं कर पाता हूँ। वैसे दोस्तों, उस जमाने में ऐसी ही अनेकों छोटी-मोटी सीखों के साथ ही इंसान सही तरीक़े से गाड़ी चलाना सीखा करते थे।
इस घटना के लगभग ६ वर्षों बाद, १९ वर्ष की उम्र में मैंने अपनी पहली सेकंड हैंड फ़िएट कार ख़रीद ली थी और उसे दिखावे के साथ चलाना शुरू कर दिया था। वैसे यह १९-२० वर्षीय युवा के लिए बड़ी सामान्य सी बात थी। एक दिन बाज़ार जाते समय मैंने महसूस किया कि मेरे से आगे चलने वाली गाड़ी बिलकुल कछुए की चाल से चल रही है और मेरे हॉर्न और डिपर देने के बाद भी रास्ता नहीं दे रही है। मैं रिएक्ट करने ही वाला था कि मुझे कार के पीछे ‘एल’ याने लर्नर का स्टीकर दिख गया और मुझे एक बार फिर अपने ताऊजी की बात याद आ गई और मुझे ऐसा लगा जैसे एक ही पल में सब कुछ बदल गया है। अब मैं पूरी तरह शांत था याने अब मुझे कछुए की चाल से चलती कार परेशान नहीं कर रही थी। मैंने अपनी गाड़ी को धीमा और रेडियो की आवाज़ को थोड़ा तेज किया और गाना गुनगुनाता हुआ आगे बढ़ने लगा। इतना ही नहीं आगे बढ़ते हुए मैं यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा था कि आगे वाली गाड़ी के चालक को मेरी वजह से कोई तकलीफ़ ना हो। उस दिन मुझे गंतव्य तक पहुँचने में थोड़ा अधिक समय लगा, लेकिन इसके बाद भी मन में एक संतोष और चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी।
इस घटना ने दोस्तों, मुझे एक बार फिर सोचने के लिए मजबूर किया कि मुझे शांत, खुश और मस्त रहने और धैर्य पूर्वक जीवन में आगे बढ़ने के लिए क्या मुझे बार-बार लिखे हुए स्टीकर की आवश्यकता पड़ेगी? क्या मैं तभी शांत रहते हुए धैर्यपूर्वक काम करूँगा, जब मुझे लोगों की तकलीफ़ के विषय में पता होगा? अर्थात् जब तक लोग अपने माथे पर यह लिख कर नहीं घूमेंगे कि ‘मेरी नौकरी चली गई है…’, ‘मैंने हाल ही में किसी अपने को खोया है…’, ‘मुझे व्यापार में बड़ा घाटा हुआ है…’ आदि… आदि… तब तक मैं धैर्य पूर्वक व्यवहार करते हुए शांत नहीं रहूँगा। याद रखियेगा दोस्तों, इस दुनिया में हर इंसान अपनी ज़िंदगी में कोई न कोई ऐसी जंग लड़ रहा है, जिसके बारे में हमें और इस दुनिया को कुछ भी पता नहीं है और उसके लिए अपनी परेशानी के लेबल को माथे पर लगाकर चलना आवश्यक भी नहीं है।
ऐसे में दोस्तों अगर आपका लक्ष्य वर्तमान में रहते हुए, हर पल लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना है और साथ ही हर स्थिति-परिस्थिति में शांत और खुश रहना है तो आपको ‘जिधर ध्यान लगाया उधर तरक़्क़ी’ के सूत्र को हर पल अपने ज़हन में रखते हुए जीवन में आगे बढ़ना होगा। अन्यथा आपके लिये विपरीत परिस्थितियों और अदृश्य परेशानी के कारण लोगों के व्यवहार में आए बदलाव को नज़रंदाज़ करना संभव नहीं होगा। ‘जिधर ध्यान लगाया उधर तरक़्क़ी’ का विचार दोस्तों आपको नकारात्मक बातों और अनावश्यक चीजों से ध्यान हटाने में मदद करेगा और आप हमेशा वर्तमान में रहते हुए, धैर्य, शांति और ख़ुशी के साथ लोगों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हुए जीवन में अपने लक्ष्यों की ओर आगे बढ़ पाएँगे।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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