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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जिम्मेदारी के साथ निभायें अपने किरदार को…

Dec 2, 2024

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

आइये दोस्तों, आज के शो की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। एक बार एक बहुरूपिया राजा के पास पहुँचा और प्रार्थना करते हुए बोला, ‘महाराज! यह बहुरूपिया आपके पास मदद की आस लेकर आया है। इसे बस अन्न का इंतज़ाम करने के लिए 5/- रुपये की मदद दे दो।’ राजा बोले, ‘देखो में कला का पारखी हूँ और कला का सम्मान करना जानता हूँ और साथ ही यह भी जानता हूँ कि कलाकार का सम्मान करना राजा का नैतिक कर्तव्य भी है। कोई ऐसी कला दिखाओ कि मैं प्रसन्नता के साथ तुम्हें 5/- रुपये का पुरस्कार दे सकूँ। बिना कला प्रदर्शन के दान देना संभव नहीं है।’ कलाकार हाथ जोड़कर बोला, ‘कोई बात नहीं अन्नदाता ! मैं आप के सिद्धांत को तोड़ना नहीं चाहता, पर मुझे अपना स्वांग दिखाने के लिए 3 दिन का समय चाहिए।’


अगले दिन राज्य की सीमा के पास एक टीले पर एक साधु, अपनी आँखें मूँद कर समाधि की मुद्रा में बैठा नजर आया। लंबी जटाओं, तेजस्वी चेहरे और बड़े से तिलक के कारण ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे साधु महाराज लंबी तपस्या के बाद लौटे हैं। सुबह सबसे पहले कुछ चरवाहों की नजर उन पर पड़ी। वे उनके पास गए और हाथ जोड़कर बोले, ‘स्वामी जी, आपके दर्शन का सौभाग्य पहली बार प्राप्त हुआ है। कहाँ से आगमन हुआ है आपका?’ साधु महाराज ने चरवाहों के प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। कुछ देर बाद कुछ व्यापारी उधर से गुजरे, उन्होंने साधु महाराज को देखकर पूछा, ‘महात्मा जी, आपके लिए फल, दूध या भोजन में से किस चीज की व्यवस्था की जाये?’ साधु अभी भी कुछ नहीं बोले।


इसी तरह दिन भर में कई लोग उधर से गुजरे लेकिन साधु महाराज ने किसी को भी कोई जवाब नहीं दिया। वे मौन ही, अपनी साधना में व्यस्त रहे। इस कारण संध्या होते तक उनकी चर्चा पूरे राज्य में होने लगी। अगले दिन सुबह से ही अनेक लोग जैसे दरबारी, धनिक, व्यापारी, शिक्षित आदि थाली में तरह-तरह के मेवा, फल और नाना प्रकार के पकवान लेकर दर्शन के लिए आने लगे और साधु से तरह-तरह के आग्रह करने लगे। साधु महाराज ने वस्तुओं को ग्रहण करना तो दूर, अपनी आँखें खोलकर उन्हें देखा तक नहीं। अगले दिन प्रधानमंत्री ढेर सारी अशर्फ़ियाँ लेकर साधु के दर्शन के लिए पहुंचे और उन्हें प्रणाम करते हुए बोले, ‘महात्मन्, बस एक बार नेत्र खोल कृतार्थ कीजिए।’ लेकिन इस बार भी साधु महाराज जरा सा भी विचलित नहीं हुए। अब तो प्रत्येक व्यक्ति को निश्चय हो गया था कि तपस्वी बहुत त्यागी और सांसारिक वस्तुओं से दूर है।


संध्या तक यह बात प्रधानमंत्री के माध्यम से राजा तक पहुँच गई। राजा सोचने लगे मेरे राज्य में इतने पहुंचे हुए साधु-महात्मा आए हैं, तो मुझे उनके दर्शन लाभ लेने के लिए अवश्य जाना चाहिए। अगले दिन राजा अपने पूरे लाव-लश्कर और ढेर सारे हीरे-जवाहरात के थाल लेकर साधु के दर्शन के लिए पहुंचे और उनके चरणों में उपहार की वस्तुओं को रख वहीं बैठ गए। लेकिन साधु अभी भी टस से मस ना हुआ। अंत में राजा ने उनके चरणों में मस्तक टेका और आशीर्वाद की कामना करने लगे। लेकिन इसके बाद भी वह तपस्वी टस से मस नहीं हुआ। अब तो पूरे राज्य को इस बात का निश्चय हो गया था कि तपस्वी बहुत त्यागी है और सांसारिक वस्तुओं से दूर है।


चौथे दिन सुबह बहुरूपिया फिर से राज दरबार में पहुँचा और दोनों हाथ जोड़कर बोला, ‘राजन, अब तो आपके सहित पूरे राज्य ने मेरा स्वांग देख लिया है। अगर आपको वह पसंद आया हो तो मेरी कला पर प्रसन्न होकर मुझे 5/- रुपये का पुरस्कार दे दीजिए। ताकि मैं अपने परिवार के पालन पोषण हेतु आटे-दाल की व्यवस्था कर सकूं।’ राजा चौंकते हुए बोले, ‘कौन सा स्वाँग?’ बहुरूपिया बोला, ‘वही तपस्वी साधु वाला, जिसके सामने आप ने सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात का ढेर लगा दिया था।’ राजा हँसते हुए बोले, ‘तू कितना मूर्ख है। जब सब लोग तेरे चरणों में सर्वस्व लुटाने को राजी थे। मैंने स्वयं ने ढेर सारी मुद्रा चढ़ाई थी तब तूने उस पर नजर तक नहीं डाली। अब 5 रुपये के लिए चिरौरी कर रहा है।’ बहुरूपिया बोला, ‘उस वक्त एक साधु, एक तपस्वी की मर्यादा का प्रश्न था। उस वक्त दूसरों की धन दौलत की ओर दृष्टि उठाकर कैसे देख सकता था? उस समय सारे भाव साधु के थे और अब पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए, अपने श्रमण के पारिश्रमिक और पुरस्कार की मांग है आपके सामने।’


कहने के लिए दोस्तों, यह एक साधारण सी कहानी हो सकती है। लेकिन अगर आप गहराई से इस पर विचार करेंगे तो पायेंगे कि यह आज की देश की स्थिति पर सटीक बैठती है, जहाँ देश और समाजसेवा की जिम्मेदारी निभाने वाले ज्यादातर नेता, अधिकारी, समाजसेवी, धर्मगुरु आदि लोग वैचारिक और कर्म पवित्रता का ध्यान रखने के स्थान पर स्वहित साधने में लगे हैं। इन सभी के साथ हम लोग अगर देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को अपने रोल के मुताबिक सही निभाने लगें तो निश्चित तौर पर हमारा भारत देश बहुत ही कम समय में सर्वांगीण विकास कर सुखी, समृद्ध एवं अजेय आर्थिक शक्ति बन सकता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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