Feb 4, 2025
फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

आइए दोस्तों, आज के लेख की शुरुआत एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी से करते हैं जो आपको जीवन के गहरे पहलुओं पर ना सिर्फ़ गंभीरता के साथ सोचने को मजबूर करेगी, बल्कि आपको अपने जीवन को बेहतर बनाने का एक नजरिया भी देगी। तो चलिए शुरू करते हैं…
बात कई साल पहले की है एक गाँव में एक संत रहा करते थे। चौबिसों घंटे ईश्वर भक्ति में लीन रहने के कारण उनके चेहरे पर एक विशेष तेज अलग ही नजर आता था। जिसके कारण वे जहाँ भी जाते थे, लोग उनके दर्शन करने और उनके श्री मुख से निकलने वाले शब्दों को सुनने के लिए उमड़ पड़ते थे। कुल मिलाकर कहूँ तो भक्ति के कारण उनके चेहरे की चमक और उनकी वाणी उनकी आत्मा की पवित्रता को प्रदर्शित करती थी। जिसके कारण लोग उनकी ओर आकर्षित होते थे।
वे प्रतिदिन सुबह 4 बजे उठकर पहले नदी में स्नान करने और फिर भगवान का नाम लेते हुए अपनी मस्ती में झूमते हुए घूमने निकल पड़ते थे। एक दिन वे अपनी मस्ती में झूमते हुए जा रहे थे, तभी उनकी नजर राह में खड़े एक भगवान के दूत पर पड़ी। जिसके हाथ में एक लाल बड़ी सी डायरी थी। संत ने जिज्ञासा वश उस दूत से प्रश्न करते हुए पूछा, ‘आप यहाँ क्यों खड़े हैं और आपके हाथ में यह डायरी कैसी है?’ दूत एकदम शांत भाव के साथ बोला, ‘महात्मा जी इस डायरी में उन लोगों के नामों की सूची है, जो ईश्वर को याद करते हैं।’ दूत के जवाब से महात्मा जी की जिज्ञासा और बढ़ गई। उन्होंने दूत से अगला प्रश्न करते हुए पूछा, ‘क्या आपकी इस डायरी में मेरा भी नाम है?’ दूत पूर्व की ही तरह शांत भाव के साथ बोला, ‘महात्मा जी, मुझे नहीं पता। आप स्वयं इस डायरी को खोल कर देख लीजिए।’ संत ने भगवान के दूत से डायरी ली और उसमें बड़े ध्यान पूर्वक अपना नाम खोजने का प्रयास करने लगे, लेकिन उन्हें उस डायरी में कहीं भी अपना नाम नजर नहीं आया। लेकिन इससे संत जरा भी विचलित नहीं हुए और मुस्कुराते हुए, बिना कुछ कहे, अपनी मस्ती में मस्त हो आगे बढ़ गए।
अगले दिन संत फिर से नदी स्नान के बाद जब भ्रमण को निकले तब उन्हें एक बार फिर से वही दूत अपने हाथ में लाल डायरी लिए नजर आया। संत ने उसे प्रणाम किया और अपनी धुन में आगे बढ़ने लगे। जिसे देख वह दूत बोला, ‘महात्मा जी! क्या आज वापस से डायरी नहीं देखेंगे?’ संत हलकी मुस्कान के साथ बोले, ‘लाओ भई, दिखा दो!’ दूत ने उसी क्षण डायरी संत की ओर बढ़ा दी। संत ने जैसे ही डायरी खोली, सबसे पहले उन्हें अपना नाम प्रथम पृष्ठ पर सबसे ऊपर लिखा नजर आया। जिसे देख आश्चर्यचकित संत ने दूत से प्रश्न किया, ‘कल इस डायरी में मेरा नाम नहीं था, लेकिन आज यह सबसे ऊपर है। यह कैसे हो गया? क्या भगवान के पास भी दो अलग-अलग डायरी हैं?’ दूत पूर्ण गंभीरता के साथ मुस्कुराते हुए बोला, ‘महात्मा जी! कल की डायरी में उन लोगों के नाम थे, जो भगवान से प्रेम करते हैं और, आज की डायरी में उन लोगों के नाम हैं, जिन्हें भगवान स्वयं प्रेम करते हैं।’
कहने की जरूरत नहीं है दोस्तों, कि दूत का जवाब सुनते ही संत ने दहाड़ मार कर रोना शुरू कर दिया। कुछ क्षणों बाद वे रोते-रोते ही बोले, ‘हे भगवान, यदि कल मैं जरा भी निराश हो जाता, तो मेरा नाम इस डायरी में कभी न आता। लेकिन मेरे थोड़े से धैर्य पर तुमने मुझे इतना बड़ा पुरस्कार दिया।’
दोस्तों, यह कहानी हमें जीवन के प्रति नए नजरिये के साथ तीन प्रमुख गहरी सीख देती है। आइए हम संक्षेप में उन्हें जान लेते हैं-
पहली सीख - धैर्य और विश्वास दोस्तों, परिस्थितियाँ कैसी भी क्यों ना हों; जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों ना हों, धैर्य के साथ ईश्वर पर अपना विश्वास बनाए रखें। याद रखियेगा थोड़े से धैर्य से हमारे कर्म हमें ईश्वर के करीब ले जा सकते हैं।
दूसरी सीख - सच्चे कर्म करें हर पल सिर्फ ईश्वर को याद करना काफी नहीं है। हमें अपने कर्म ऐसे बनाने चाहिए कि भगवान हमें याद करें।
तीसरी सीख - जीवन का उद्देश्य हमारा जीवन ऐसा हो कि हम दूसरों के लिए प्रेरणा बनें। हमारे कर्म न केवल हमें बल्कि इस संसार को भी बेहतर बनाएँ।
अंत में दोस्तों, इतना कहना चाहूँगा कि हमेशा ईश्वर से प्रीत ऐसी करो कि आपका नाम उनकी पहली नहीं दूसरी डायरी में आए। यह तभी संभव होगा जब आप अपना जीवन सच्चे और निस्वार्थ कर्म करते हुए जियें। आशा करता हूँ आज का विचार आपको अच्छा लगा होगा। हमारी अगली मुलाकात तक, धैर्य और प्रेम के साथ अपना जीवन जियें और ऐसे कर्म करें, जो इस दुनिया और आपकी आत्मा को बेहतर बनाएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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