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जियें प्रेम और करुणा से भरा जीवन…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • May 9
  • 3 min read

May 9, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, एक ओर जहाँ इस दुनिया में बदलते समय और परिस्थितियों के साथ सब कुछ बदलता नजर आ रहा है, वहीं प्रेम, करुणा जैसी कुछ चीजें समय से परे, हमेशा एक समान बनी रहती हैं। लेकिन अक्सर इसकी गहराई इंसान को उस वक्त समझ आती है, जब वास्तव में उनकी आवश्यकता होती है। अपनी बात को मैं आपको एक वैश्या और साधु की मार्मिक कथा के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ।


गाँव के बाहरी इलाक़े में एक अत्यंत ही सुंदर वैश्या रहती थी। चूँकि गाँव के ज्यादातर लोग उसके सौंदर्य पर मोहित थे, इसलिए वह ख़ुद को विशेष मान व्यवहार किया करती थी। हालाँकि उसके पास सब कुछ था, लेकिन फिर भी वह बेचैन रहा करती थी और हमेशा आत्मिक शांति के लिए साधन तलाशा करती थी। एक दिन उसने एक साधु को तपस्या में लीन देखा और मन ही मन उनकी ओर आकर्षित हो गई। असल में साधु की सरलता और दिव्यता ने उसके मन को छू लिया था। साधु के ध्यान से बाहर आते ही वह उनके पास गई और बोली, “मैं आपको प्रसन्न करना चाहती हूँ। कृपया मेरा प्रस्ताव स्वीकार करें।” उसकी बात सुन साधु मुस्कुराए और बोले, “वास्तव में आज तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं है। जिस दिन मुझे लगेगा कि तुम्हें वाक़ई मेरी जरूरत है, मैं तुम्हारे पास आ जाऊँगा।” वैश्या साधु की बात का मर्म नहीं समझ पाई और यह सोच अपने जीवन में व्यस्त हो गई कि “अभी उन्हें मेरी जरूरत नहीं है।” लेकिन साधु के भाव और उनके चेहरे की शांति कहीं ना कहीं उसके अंतर्मन में बस गई।


बीतते समय के साथ, उसकी प्रसिद्धि फीकी पड़ने लगी। वह वृद्ध हो गई और उसके सौंदर्य का आकर्षण भी समाप्त हो गया। अब समाज ने उसे तिरस्कार की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया था। एक दिन वह ठंड से कांपती हुई, एकदम निराश, उपेक्षित और भूख-प्यास से व्याकुल हो वो सड़क किनारे बैठी थी। तभी वही साधु उसके सामने प्रकट हुए और उसके आंसू पोंछते हुए, स्नेह के साथ बोले, “मैंने कहा था ना, जिस दिन तुम्हें मेरी आवश्यकता होगी, मैं आऊंगा। लो मैं आ गया अब जल्दी से यह भोजन कर लो।” साधु का भाव देख उस वैश्या की आँखों से आँसू बह निकले।


दोस्तों, यह घटना हमें जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र सिखाती है, सच्ची करुणा और प्रेम समय से परे होते हैं। वे अहंकार, प्रतिष्ठा या स्वार्थ से नहीं चलते, बल्कि केवल हृदय की सच्ची पुकार पर प्रतिक्रिया करते हैं। आज के समय में, जब हर संबंध स्वार्थ की कसौटी पर तौला जाता है, यह कथा हमें याद दिलाती है कि सहानुभूति और संवेदना ही मानवता की असली पहचान हैं। जब सब साथ छोड़ देते हैं, तब सच्ची करुणा ही अंतिम सहारा बनती है। इसलिए हम सबको चाहिए कि हम दूसरों की पीड़ा को समझें, बिना भेदभाव के सहायता करें, और उस क्षण का इंतजार करें जब वास्तव में किसी को हमारी आवश्यकता हो। याद रखियेगा, सच्चा सहयोग वही है जो दिखावे के लिए नहीं, बल्कि हृदय की पुकार पर दिया जाए।


इसी बात को समझाते हुए हमारे बुज़ुर्गों ने कहा है, “करुणा वह दीपक है, जो दूसरों के जीवन में प्रकाश भरने के साथ-साथ स्वयं के जीवन को भी आलोकित कर देता है।” इसलिए दोस्तों, सच्चे प्रेम और करुणा से परिपूर्ण जीवन को ही वास्तव में समृद्ध और सार्थक जीवन माना गया है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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