Mar 14, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, कई बार बच्चे खेल-खेल में ही आपको जीवन के इतने बड़े सूत्र सिखा जाते हैं कि हैरानी होती है। ऐसा ही कुछ अनुभव मुझे हाल ही में कुछ स्कूली बच्चों को खेलते देख मिला। असल में स्कूल की छुट्टी होने के बाद कुछ बच्चे अपनी-अपनी टीम बनाकर खेल मैदान में रेस लगाने लगे। अब जब रेस थी तो किसी का जीतना, तो किसी का हारना तय था, हुआ भी ऐसा ही। एक टीम के जीतते ही उसने दूसरी टीम को चिढ़ाना शुरू कर दिया। कुछ देर तक तो बच्चों का हुड़दंग ऐसे ही चलता रहा, फिर अचानक ही हारी हुई टीम में से एक बच्चा ज़ोर से चिल्लाते हुए बोला, ‘हम तो जीत गए… हम तो जीत गए…’ उसके ऐसा करते ही बाक़ी सभी बच्चे आश्चर्य में पड़ गए और उससे प्रश्न करते हुए बोले, ‘तुम तो हार गए थे? फिर जीत गए… जीत गए… क्यों चिल्ला रहे हो?’ वह बच्चा मुस्कुराता हुआ बोला, ‘तुम भूल गए क्या? आज हिन्दी वाली मैडम ने क्या पढ़ाया था?’ उसकी बात सुन दूसरे सभी बच्चे उलझन में थे। एक पल की शांति के बाद वह बच्चा अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘मन के हारे, हार है और मन के जीते, जीत। इसलिए मैंने तो मान लिया है कि मैं, जीता हूँ।’
दोस्तों, बात तो उस बच्चे ने खेल-खेल में कही थी, लेकिन थी बड़ी गहरी क्योंकि उसके अंदर जीवन को बेहतर बनाने का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र छुपा हुआ था। अगर आप जीवन में मिलने वाली असफलता या अनपेक्षित परिणाम को इस भाव के साथ लेना शुरू कर देते हो, तो आप स्वयं को अनावश्यक दबाव और नकारात्मक भाव से बचा लेते हो। जो निश्चित तौर पर आपको सकारात्मक भाव से जीवन में घटने वाली हर घटना को स्वीकारने में मदद करता है। जीवन के प्रति स्वीकारोक्ति के भाव से निर्मित हुआ सकारात्मक नज़रिया ही अंततः आपको हर हाल में खुश रहने का मौक़ा देता है।
शायद इसीलिए हमारे शास्त्रों ने हमारे ‘मन’ को प्रजापति बताते हुए देवता स्वरूप माना है। वेदांत के अनुसार इस दुनिया में हर इंसान की अपनी एक स्वतंत्र दुनिया है। जिसका सृजन उसने स्वयं अपने मन से किया है। दूसरे शब्दों में थोड़ा विस्तार से कहूँ तो हर इंसान का इस दुनिया को देखने का अपना एक अलग ही नज़रिया है, जो उसकी अपनी दुनिया का निर्माण करता है। जैसे कोई आज के युग को कलयुग कहते हुए कोसेगा, तो कोई दूसरा अपने अनुभव के आधार पर इसे अच्छा बताएगा। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो इंसान अपनी सोच, मान्यता, भावना, निष्ठा, रुचि एवं आकांक्षा के आधार पर ही दुनिया को देखता है। अर्थात् वह अपने मन और नज़रिए के अनुरूप ही सारे विश्व को देखते हैं।
इस आधार पर कहा जाए तो अगर मनुष्य अपने दृष्टिकोण को बदल ले, तो वह अपने जीवन को भी उसी आधार पर परिवर्तित कर सकता है। अगर हम अपने मन को किसी तरह मना लें याने उसे बहलाकर या समझा-बुझाकर सही रास्ते पर ले आएँ तो जीवन को सही दिशा देना संभव है। जी हाँ दोस्तों, जीवन को सही दिशा देने के लिए हमें अपने अंतर्मन को सही दृष्टिकोण को अपनाने के लिए राज़ी करना होगा और अगर किसी सामान्य से भी सामान्य इंसान ने यह कर लिया तो वह निश्चित तौर पर विशेष इंसान या विजेता बन सकता है। यक़ीन मानियेगा साथियों मन को जीतकर ज़िंदगी को बदलना किसी वरदान या चमत्कार के होने समान ही है। जीवन को बदलने का यह एक ऐसा सूत्र है जो कभी ग़लत परिणाम दे ही नहीं सकता है।
जैसा कि हम मानते हैं साथियों कि, ‘जो हम सोचते हैं, वो हम करते हैं और जो हम करते हैं वैसा ही फल हम भोगते हैं।’ इसलिए अगर आप फल को अच्छा बनाना चाहते हैं, तो आपको मनःस्थिति को अच्छा बनाना होगा। इसीलिए माना जाता है कि मन ही हमारा मार्गदर्शक है, वह जिधर ले जाता है, हमारा शरीर उधर ही जाता है। यह मार्गदर्शक यदि कुमार्गी होगा तो विपत्तियों और वेदनाओं के जंजाल में फँसा देगा और यदि सुमार्ग पर चल रहा है तो शांति और समृद्धि के सत्परिणाम देगा। तो आईए साथियों आज से अपने मन को साध कर जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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