June 16, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, लोगों को उनकी गलती के लिये क्षमा कर, ईश्वर से उनके भले के लिए प्रार्थना करना, आपको नकारात्मक अनुभवों से होने वाले नुक़सान से ना सिर्फ़ बचा सकता है बल्कि समय के साथ सामने वाले के हृदय को परिवर्तित भी कर सकता है। अपनी बात को मैं आपको मशहूर इस्लामिक संत राबिया, जिन्होंने सूफ़ी विचार को जन्म दिया था, के क़िस्से से समझाने का प्रयास करता हूँ, जिनका जन्म 717 ईस्वी में एक बेहद ही ग़रीब परिवार में हुआ था। वे अपने माता-पिता की चौथी संतान थी। राबिया का बचपन सामान्य बच्चों जैसा नहीं था। उन्होंने अपनी माँ को बहुत कम उम्र में ही खो दिया था और इसी वजह से उनका बचपन माँ की ममता और स्नेह के बिना दुख और अकेलेपन के साथ बीता।
उनकी परेशानियों का अंत इतना सब होने के बाद भी नहीं हुआ था। जिस देश में वे रहा करती थी, वहाँ एक बार भयंकर अकाल पड़ा और उनके परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे से बिछड़ गए। छोटी से राबिया का अपहरण कर लिया गया और उन्हें मात्र 6 दिरहम में ग़ुलाम के तौर पर बेच दिया गया। उनका मालिक एक बेहद बेरहम और कठोर दिल वाला व्यक्ति था, जो उनके साथ बेहद अमानवीय तरीक़े से व्यवहार किया करता था। कई बार वो छोटी सी बात पर भी क्रूरता की सारी हदें पार कर जाया करता था। जैसे, दिनभर जी तोड़ काम करवाने के बाद भी वह अक्सर उसे खाने-पीने के लिए कुछ भी नहीं देता था।
दोस्तों, जिस स्थिति में सामान्य इंसान के लिए शारीरिक श्रम करना भी बेहद मुश्किल होता है, उसमें राबिया सारी बातों को भुलाकर पूरे समय अपने हृदय से अल्लाह की याद में लीन रहा करती थी। अर्थात् उनका अधिकांश समय वे अल्लाह की इबादत और ध्यान में मग्न रहा करती थी। एक दिन रात्रि को देर से घर लौटते वक़्त राबिया के मालिक को राबिया के कमरे से कुछ फुसफुसाहट सुनाई दी। उनके मन में तुरंत शंका उपजी के इतनी रात को उनकी ग़ुलाम किससे बातें कर रही है? उन्होंने तुरंत राबिया के कमरे में झांक कर देखा और बात सुनने का प्रयास करा तो वे अचंभित रह गये। असल में उन्होंने राबिया को खुदा की इबादत में लीन पाया। उस वक़्त एक दिव्य प्रकाश ने राबिया को चारों ओर से घेरा हुआ था और वे स्वयं एक फरिश्ते की तरह, घुटनों के बल बैठकर, खुदा की इबादत करते हुए कह रही थी, ‘हे खुदा, मेरे मालिक को माफ कर दे, और उसे बरकत दे। अपनी दया दृष्टि उनपर बनाये रखना। उन्हें समृद्धि प्रदान करना। उनकी ग़लतियों को माफ़ कर देना और उन्हें सही मार्ग दिखाना।’
दोस्तों, राबिया की यह प्रार्थना उसी मालिक के लिए थी जो उससे निर्दयता पूर्वक व्यवहार करता था; उसे बार-बार पीटता था। जिसके ग़लत व्यवहार का जिक्र यहाँ शब्दों में करना भी संभव नहीं है। लेकिन दोस्तों जिस दिल में प्रेम होता है, वहाँ शैतान के लिए भी नफरत पैदा नहीं हो सकती। ऐसा ही कुछ राबिया के साथ हो रहा था, जिसे देख मालिक की रूह काँप उठी। उसका सिर अब लज्जा और ग्लानि से झुका हुआ था। वे इतने अधिक बेचैन थे कि पूरी रात सो ना सके। वे स्वयं को अपराध बोध से ग्रसित महसूस कर रहे थे कि उन्होंने राबिया के साथ सही नहीं किया है। उन्हें एहसास हो गया था कि राबिया कोई साधारण गुलाम नहीं है, वह वास्तव में अल्लाह का अनुग्रह प्राप्त बच्ची है; वह एक संत है; वह एक दिव्य आत्मा है और अल्लाह की सच्ची संतान है और मैं उनसे एक गुलाम के बतौर काम करवा रहा था।
दूसरे दिन सुबह-सुबह ही वो राबिया के कमरे में गए और उनके चरणों में गिर कर, उनसे क्षमा याचना करते हुए बोले, ‘हे अल्लाह की बंदी, मैंने तुम्हारे और अल्लाह के विरुद्ध काम किया है, कृपया मुझे क्षमा कर दो। आज से तुम मेरे घर में एक गुलाम की तरह नहीं, बल्कि एक आदरणीय मेहमान की तरह रहो, कृपया मुझे उस महान खुदा की सेवा करने का एक अवसर दो।’
दोस्तों एक प्रेम भरे हृदय ने प्रेम से ही एक ज़ालिम के हृदय को परिवर्तित कर दिया था। इसीलिए मैंने पूर्व में कहा था, ‘लोगों को उनकी गलती के लिये क्षमा कर, ईश्वर से उनके भले के लिए प्रार्थना करना, आपको नकारात्मक अनुभवों से होने वाले नुक़सान से ना सिर्फ़ बचा सकता है बल्कि समय के साथ सामने वाले के हृदय को परिवर्तित भी कर सकता है।’ वैसे यही बात हमारे धर्मग्रन्थों में भी कही गई है, ‘जब एक ध्यानस्थ हृदय में प्रेम उमड़ता है, तो वह जिस भी चीज़ के संपर्क में आता है, वह रूपान्तरित हो जाती है।’
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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