Nirmal Bhatnagar
जीना हो पूर्णता के साथ तो चुनें सही साथ…
Apr 2, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, किसी अपने का साथ होना अर्थात् जीवन में किसी भी रिश्ते के रूप में एक मित्र या दोस्त होना एक ऐसा बेहतरीन अहसास है जो आपके जीवन को विकट से विकट परिस्थिति में भी सहज बना देता है। यह वह अदृश्य बंधन है जो दो लोगों को तमाम विषमताओं के बाद भी एकजुट करता है। जी हाँ दोस्तों, स्नेह का यह अनूठा बंधन दो अनजान लोगों के मिलने से शुरू होता है और बराबरी के उस स्तर तक पहुँच जाता है, जहाँ वह अनजान व्यक्ति जादुई रूप से हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन जाता है। जिससे हम बिना कुछ सोचे-समझे अपने अच्छे-बुरे अनुभवों को साझा कर लेते हैं। इतना ही नहीं, यह हमें ऐसा करते वक्त सुरक्षा के भाव के साथ आत्मिक संतुष्टि देता है।
वाक़ई में साथियों यह आपसी विश्वास का एक अनोखा रिश्ता होता है। लेकिन अक्सर इस अनोखे साथ के चुनाव में ही इंसान सबसे ज़्यादा गलती करता है और इस एक गलती के कारण ही बाद में बहुत पछताता है। सही व्यक्ति या साथ के चुनाव में गलती होने की सबसे बड़ी वजह आज के युग में हमारे बदले हुए जीवन मूल्य हैं। जैसे आज अपने और पराए की परिभाषा हमने बदल दी है। आज हमें अपने के रूप में वो लोग चाहिए जो हर स्थिति में हमारा साथ दे। लेकिन हक़ीक़त में हमारा अपना वह नहीं होता है जो हर स्थिति में हमारा साथ देता है। बल्कि हमारा असली साथी या सच्चा प्रियजन वह होता है जो हमें अप्रिय कर्म याने कुकर्म या पाप करने से बचाता है। लेकिन आज के युग में हमारी बदली हुई धारणाएँ अक्सर विरोध करने वाले को शत्रु माँ लेती हैं। जबकि हक़ीक़त में हमारे ग़लत कार्यों का विरोध ना करने वाला हमारा शत्रु होता है।
वैसे यही बात तो हमारे दो महान ग्रंथ भी हमें सिखाते हैं। अगर आप रामायण के राम-सुग्रीव के दोस्ती वाले प्रसंग को याद करेंगे तो पाएँगे की राम ने बल की जगह जीवन मूल्यों को चुना और बाली को मार सुग्रीव को दोस्त के रूप में चुना। वहीं दूसरी और रावण ने सही सलाह देने वाले विभीषण को छोड़ अपने चाटुकार साथियों को चुना और अंत में अपनी सोने की लंका, अपनों की और खुद की जान से हाथ धोया।
ठीक इसी तरह महाभारत में अर्जुन ने भगवान कृष्ण कि चतुरंगिणी सेना के स्थान पर भगवान कृष्ण को चुना और दूसरी ओर दुर्योधन ने अपने चाचा विदुर और भगवान कृष्ण की बातों और साथ को ठुकरा कर, मामा शकुनि का साथ चुना। अगर दुर्योधन ने भी सही साथ चुना होता तो शायद महाभारत ही नहीं हुआ होता।
हक़ीक़त में तो वह व्यक्ति कभी भी आपका शत्रु नहीं हो सकता है जो आपको बार-बार आपकी गलतियों और कमज़ोरियों का ध्यान दिलाए और जीवन में होने वाले सम्भावित नुक़सान या विनाश से आपको बचाए। इसके ठीक विपरीत, आपका असली शत्रु वह है जो ग़लत दिशा में आपके बढ़ते हुए कदमों को देखकर भी आपको ना रोके, ना टोके। बल्कि मुस्कुरा कर आपका साथ देता रहे। ऐसा साथ अंत में आपको विनाश के रास्ते पर पहुँचा देता है।
याद रखिएगा दोस्तों, जिस तरह ख़रबूज़े को देख ख़रबूज़ा रंग बदलता है, ठीक उसी तरह हमारा साथ हमारे जीवन की दशा बदलता है। इसलिए हमेशा अच्छा साथ चुनें। अर्थात् ऐसा साथ जो आपको सही सोच विकसित करने में मदद करे; आपकी माटी को सुधार कर, आपके जीवन को सही दिशा में गति दे। जिससे आप अपने जीवन को पूर्णता के एहसास और संतुष्टि के साथ शांत, सुखी और खुश रहते हुए बिना किसी पछतावे के साथ जी पाएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com