Feb 9, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, कई लोगों को इस जीवन से ढेरों शिकायतें रहती हैं। जैसे, मेरा जन्म गरीब परिवार में हुआ; मुझे अच्छी शिक्षा नहीं मिली; मैं गरीब परिवार से हूँ; मेरे पिता ने मुझे यह नहीं दिया; मेरी तो किस्मत फूटी हुई है; आदि… आदि। यह वह लोग होते हैं, जो राह में लगे फूलों को छोड़कर काँटों को गिनते हुए चलते हैं और यह भूल जाते हैं कि ईश्वर ने उन्हें एक स्वस्थ शरीर, तीक्ष्ण बुद्धि, सीखने और कार्य करने की आज़ादी समेत अनेकों विशेषताएँ दी हैं।
जी हाँ साथियों, मनुष्य योनि में जन्म लेना ही अपने आप में ईश्वर का दिया सबसे अच्छा, सर्वोत्तम या सर्वश्रेष्ठ उपहार है। अगर हम इस जीवन का सही मूल्य समझ जाएँ, उसे सही तरीक़े से जीना शुरू कर दें, तो सब कुछ पा सकते हैं। लेकिन इसके ठीक विपरीत, अगर हम सब कुछ देकर भी इस जीवन को पाना चाहें तो यह सम्भव नहीं है। इसीलिए दोस्तों मैं सबसे कहता हूँ, ‘जीवन से प्यार करे बिना, इसे जिया नहीं जा सकता है।’ इसलिए इसका तिरस्कार करना छोड़ो। यह तभी सम्भव होगा जब आप जो नहीं है से ध्यान हटाकर, जो मिला है उसका मूल्य समझने लगेगे।
ठीक यही नज़रिया आपको नकारात्मक बातों और बुराई को लेकर भी अपनाना है। इसलिए जीवन को बुरा कहने की जगह मेहनत कर जीवन की बुराई मिटाना, समझदारी है। याद रखिएगा, चमकते हुए सूर्य के सामने काले, घने बादल आने के कारण कुछ पलों के लिए अंधेरा होने का अर्थ यह क़तई नहीं होता है कि सूर्य हमेशा के लिए अस्त हो गया है या उसका अस्तित्व खत्म हो गया है। वह तो बस अपनी रोशनी बिखेरता हुआ, वहीं डटा रहता है। काले घने बादल ही कुछ पलों में उसके सामने से हट, ओझल हो जाते हैं और वह वापस अपनी रोशनी बिखेरने लगता है। ठीक इसी तरह जीवन में विपरीत परिस्थितियाँ, विपत्तियाँ या चुनौतियाँ आती-जाती रहेंगी। अगर हम अपनी जगह, अपनी विशेषताओं को बिखेरते हुए डटें रहे तो अंततः जीत हमारी ही होगी।
कुल मिला कर कहा जाए तो आपको पहले कदम के तौर पर अपने नज़रिए को बदलना होगा और यह समझना और स्वीकारना होगा कि जीवन एक यात्रा है, एक अवसर है; अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का, व्यर्थ से सार्थक की ओर जाने का। कुल मिलाकर कहा जाए तो श्रेष्ठ बनने का, श्रेष्ठ करने का और अंत में श्रेष्ठ पाने का, जिससे अंत में पदार्थ से परमात्मा की यात्रा पूरी की जा सके।
इस यात्रा का पहला कदम होगा जीवन की दुर्लभता को स्वीकारना। जी हाँ साथियों, 84लाख योनियों में यह एकमात्र योनि है जो अपनी इच्छानुसार जीवन जीती है अर्थात् अपनी इच्छा से खाती है, अपनी इच्छा से पहनती है, अपनी इच्छा से जहाँ चाहे, जैसे चाहे जीती है। जीवन की क़ीमत समझने के लिए इस बात को हमेशा याद रखें कि हमारे लिए यह जीवन तभी तक है, जब तक हम हैं। याने ना तो इस जीवन के पहले का हमें कुछ पता है और ना ही इस जीवन के बाद का। इसलिए हमें इसे ही पूर्णतया जीना होगा। इस बात का एहसास हमें जीवन का मूल्य समझने में मदद करेगा और हम इसे बर्बाद करना या इसका दुरुपयोग करना बंद कर देंगे।
जीवन को सही तरह से जीने के लिए अगली बात जिसका हमें विशेष ध्यान रखना है वह है, ‘जीवन; बाहर से अंदर की यात्रा है।’ जो जीवन को बाहर तलाश रहे हैं, वे भटके हुए हैं। उन्हें लाख प्रयास करने के बाद भी कुछ मिलने वाला नहीं है। वे सिर्फ़ भौतिक चीजों, लालच, वासना, कुंठा या तुलना रूपी विचार के काँटों को ही देख पाएँगे। जीवन के असली रंग, उसके सुंदर फूल, उसका सही अर्थ तो वही समझ पाते हैं जो स्वयं के भीतर छिपे हुए सत्य को पहचान लेते हैं। जी हाँ दोस्तों जीवन रूपी यह यात्रा कहीं जाने की नहीं, लौटने की है। भटकन की वजह से हम पहले ही अपने से दूर, बहुत दूर जा चुके हैं। अब तो बस वापस लौटना है अपने पास क्योंकि मनुष्य के लिए संतुष्ट मन सबसे बड़ा उपहार होता है, जिसका वो भरपूर आनंद ले सकता है और जीवन आनंद का ही दूसरा नाम है!!!
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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