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जीवन का असली सुख - परिश्रम

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • May 8
  • 3 min read

May 8, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, मनुष्य जीवन एक अद्भुत, आश्चर्य से भरी एक बहुत ही सुंदर यात्रा है। लेकिन वर्तमान समय में सब कुछ घर बैठे आसान रास्तों से पाने की चाह, शायद इसे थोड़ी नीरस और उबाऊ बनाती जा रही है। वैसे इसका एक और नुकसान है, कई लोग तकनीक और अन्य उपलब्ध विकल्पों पर इतने निर्भर हो जाते हैं कि वे कभी अपनी क्षमताओं को खोजने या पहचानने का प्रयास ही नहीं कर पाते हैं। वे कभी समझ ही नहीं पाते हैं बिना प्रयास के सब कुछ पाने की उनकी इच्छा उन्हें आराम पसंद या आलसी बनाती जा रही है, जो अंततः उनके पूरे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव ही डालेगी।


दोस्तों, परिश्रम और विश्राम के सही संतुलन से ही इस जीवन में सच्चे सुख को पाया जा सकता है। अगर आसान रास्तों को चुन कर हम केवल विश्राम की राह चुनेंगे तो जीवन के सच्चे अर्थों को खो देंगे। आइए इसी बात को एक कहानी के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं।


गोपाल एक अत्यंत आलसी व्यक्ति था। वह सदैव इस कल्पना में खोया रहता कि काश! ऐसा जीवन मिले जिसमें बिना परिश्रम करे उसे सारी सुख-सुविधाएँ मिल जाएं। परंतु पृथ्वी पर ऐसा संभव नहीं था। जीवन यात्रा पूर्ण करने याने मृत्यु के बाद वह स्वर्ग पहुँचा। स्वर्ग उसकी कल्पना से भी अधिक भव्य था। वहाँ उसे हीरे-जवाहरात जड़ी शय्या दी गई और यह वचन मिला कि वह जो चाहेगा, उसे बिना प्रयास के मिलेगा।


प्रारंभ में गोपाल अत्यंत आनंदित था। दिन-रात विश्राम करना, जो चाहिए उसे तुरंत पा लेना। यह सब उसके सपनों के जीवन जैसा था। लेकिन बीतते समय के साथ वही आराम अब उसे बोझ लगने लगा था। आलस्य ने उसके मन और शरीर दोनों को जकड़ लिया था। अब उसे स्वर्ग में भी चैन नहीं मिल रहा था, इसी वजह से उसे रात को नींद भी नहीं आती थी। इन सब से परेशान होकर वह जब भी वह कुछ करने का प्रयास करता, सेवक उसे रोक देते। धीरे-धीरे वह इस निष्क्रिय जीवन से थक गया।


एक दिन गोपाल ने देवदूत से विनती की “मैं कुछ काम करना चाहता हूँ।” देवदूत ने मुस्कुराते हुए कहा, “आप तो अभी अपने सपनों का जीवन जी रहे हैं। इसमें क्या समस्या है?” गोपाल ने अपने तर्कों के साथ असंतोष व्यक्त किया और देवदूत से नर्क भेजने की गुहार लगाई। तब देवदूत ने एक गहरी सच्चाई उजागर करते हुए कहा, “वत्स, यही नर्क है! जहां शरीर को तो बिना श्रम के सुख दिए जाते हैं लेकिन आत्मा अंदर ही अंदर घुटती रहती है। असली स्वर्ग तो वहीं है, जहां मनुष्य श्रम करता है, परिवार का पालन-पोषण करता है, और परिश्रम के उपरांत विश्राम का सुख उठाता है।”


दोस्तों, श्रम ही जीवन को सार्थक बनाता है और विश्राम तभी मधुर लगता है, जब वह परिश्रम के बाद आता है। जब श्रम और विश्राम का संतुलन बिगड़ता है, तब जीवन का रस भी सूख जाता है। इसलिए उपरोक्त कहानी से हम निम्न प्रेरणा ले सकते हैं-


१) विश्राम का आनंद उन्हीं को मिलता है, जो सच्चे दिल से परिश्रम करते हैं।

२) आलस्य से सुख की तलाश अंततः दुख का कारण बनती है। और,

३) सच्चा स्वर्ग श्रम, समर्पण और संतोष में ही बसता है।


हमें चाहिए कि हम अपने कर्मों को प्रेम से करें, कठिनाइयों का सामना धैर्य से करें और जो भी साधन उपलब्ध हैं, उनमें प्रसन्न रहना सीखें। जीवन का असली सुख बाहरी सुविधाओं में नहीं, बल्कि एक कर्मठ और संतोषी हृदय में छिपा होता है। दोस्तों, जब हम श्रम को अपना मित्र बना लेते हैं, तब प्रत्येक क्षण एक उत्सव बन जाता है और यही जीवन का वास्तविक सौंदर्य होता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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