जीवन की राह में हर मुलाक़ात अच्छी है…
- Nirmal Bhatnagar
- Sep 12, 2024
- 3 min read
Sep 11, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, मेरा मानना है, इस जीवन में जो भी मनुष्य या जीव आपके संपर्क में आया है, किसी ना किसी रूप में आपके जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से आया है। जी हाँ, सुनने में अटपटी लगने वाली यह बात मेरी नज़र में तो सौ प्रतिशत सही है। हो सकता है प्रथम दृष्टया आप मेरे इस मत से सहमत ना हों और आपको लगता हो कि जिस इंसान ने हमें कभी, किसी रूप में, नुक़सान पहुँचाया हो, हमें दुख दिया हो, हमारी निंदा की हो, हमारा अपमान किया हो, हमारा तिरस्कार किया हो अर्थात् किसी ना किसी रूप में हमारी छवि या हमें नुक़सान पहुँचा कर हमारी शांति को भंग किया हो, वह हमारे लिए लाभप्रद कैसे हो सकता है? तो मैं आप से कहूँगा थोड़ी देर के लिए मेरे इस विचार को स्वीकार कर ज़रा निम्न बातों पर ध्यान देकर देखिए।
उपरोक्त बात को अगर हम हिंदू धर्म के आधार पर देखें तो हमारे यहाँ कहा जाता है कि दुख हमें हमारे प्रारब्ध याने पूर्व में किए गए धर्म विरुद्ध कार्यों के परिणामस्वरूप मिलता है। बस उस दुख को देने के लिए ईश्वर किसी को निमित्त बना लेता है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो जो हमें दुख दे रहा है, हमारा अपमान, निंदा या तिरस्कार कर रहा है याने जो हमें किसी भी रूप में हानि, कष्ट या दुख दे रहा है, वह वास्तव में हमारे पाप काट कर हमें उसके दोषों से मुक्त कर रहा है। इसीलिए रामायण में लक्ष्मण ने निषादराज के द्वारा माँ कैकई पर की गई टिप्पणी के जवाब में कहा था, ‘काहु न कोउ सुख दुख कर दाता। निज कृत कर्म भोग सबु भ्राता॥’ अर्थात् जीवन में हमें कोई सुख-दुख दे ही नहीं सकता है, सुख और दुख तो हमारे कर्मों का परिणाम होते हैं और उन्हें हमें भोगना ही पड़ता है।
इसीलिए कहते हैं दोस्तों कि परमात्मा के राज्य में कोई हमें दुख दे ही नहीं सकता। हमें जो दुख मिलता है, वह वास्तव में हमारे पापों का ही फल है। जब आप पाप का फल भोगते हैं तब ये पाप कट जाते हैं और अंत में हम शुद्ध हो जाते हैं। इसलिए भारतीय अध्यात्म में माना जाता है कि कोई हमारी हानि करता है, हमारा अपमान करता है, हमारी निंदा करता है, हमारा तिरस्कार करता है, तो वह हमारे पापों का नाश कर रहा है। ऐसा समझ कर आपको उसका उपकार मानना चाहिए, प्रसन्न होना चाहिए। इसलिए हमारे धर्म ग्रन्थों में दुख देने वाले व्यक्ति के प्रति भी सद्भावना रखने को कहा गया है।
चलिए दोस्तों, इसी बात को याने ‘ईश्वर आपको जीवन में जिसके भी संपर्क में लाता है, उसका उद्देश्य आपके जीवन को बेहतर बनाने का होता है।’ को हम अध्यात्म के नज़रिए को छोड़कर; विकास की मानसिकता के नज़रिए से देखने का प्रयास करते हैं। मेरा मानना है कि जब भी संपर्क में आया व्यक्ति आपको किसी भी तरह से परेशान या दुखी करने का प्रयास करता है, तब वह आपको वर्तमान में मौजूद रहते है पूर्ण चेतना के साथ जीवन जीने के लिए भी तैयार करता है। क्योंकि जब कोई आपको हानि या कष्ट पहुँचाता है या किसी भी तरह से आपकी निंदा कर आपको दुख पहुँचाता है तब वह आपको अपने अंदर झांकने और ख़ुद को पहचानने के लिए भी मजबूर करता है। जिससे आप अपनी कमज़ोरियों और अपनी ग़लतियों को पहचान पाते हैं और फिर उन्हें दूर कर अपने जीवन को बेहतर बना पाते हैं।
वैसे भी अगर आप उसकी नकारात्मक क्रियाओं पर नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ देना शुरू कर देंगे तो कहीं ना कहीं आप अपने जीवन को नकारात्मक भाव के साथ जीना शुरू कर देंगे। अर्थात् जब आप ऐसे लोगों को खराब समझ कर समझाते हैं या उसकी निंदा कर उसका तिरस्कार करते हैं अथवा उसे दुख देने की भावना से काम करते हैं या दुख देते हैं, तब आप कहीं ना कहीं अपने अंतर्मन को भी मैला करते हैं; ख़ुद को हानि पहुँचाते हैं। इसलिए दोस्तों, जो हमारे लिए बुरा सोचते हैं, जो हमारा बुरा करते हैं, हमें उनके बारे में अच्छा सोचना चाहिये; उन्हें माफ़ कर अपना जीवन जीना चाहिए, इसलिए नहीं कि हम बहुत महान है, बल्कि इसलिए कि हम अपने जीवन को बेहतर बनाते हुए, शांति पूर्ण जीवन जीना चाहते हैं। इसीलिए कहा गया है, ‘उमा संत कइ इह बड़ाई। मंद करत जो करई भलाई॥’ अर्थात् हमें ऐसा संत स्वभाव बनाना चाहिये जहाँ हम दुख देने वाले के प्रति भी सद्भावना रख सकें। यह सोच सकें कि उसे सुख कैसे मिल सकता है। बुरा व्यवहार करने वाले के प्रति दुर्भावना रख कर अपने मन को मैला करना मनुष्यता नहीं है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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