Nov 4, 2023
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, आइये आज के लेख की शुरुआत एक कहानी से करते हैं। एक बार सम्राट अशोक अपने मंत्रियों के साथ नगर भ्रमण कर रहे थे कि तभी उनकी नज़र एक भिक्षुक पर पड़ी। सम्राट अशोक ने उसी वक़्त अपने सारथी से रथ को रुकवाया और भिक्षुक के चरणों में अपना सिर रख दिया। सम्राट अशोक को एक साधारण से भिक्षुक के सामने नतमस्तक होता देख साथ आए मंत्री को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा।
अगले दिन राज सभा में मंत्री जी ने सम्राट अशोक से माफ़ी माँगते हुए कहा, ‘महाराज, जिस सम्राट की कीर्ति चारों दिशाओं में फैली है। जिसके चर्चे पूरी दुनिया में विख्यात हैं क्या ऐसे सम्राट का एक भिक्षुक के चरणों में नतमस्तक होना उचित है? आपका ऐसा करना मुझे बिलकुल भी ठीक नहीं लगा।’ मंत्री की बात सुनते ही, सम्राट मुस्कुराए और मंत्री को एक बड़ा थैला देते हुए बोले, ‘मंत्री जी मैं आपके प्रश्न का जवाब अवश्य दूँगा, पर उससे पहले आप मेरा एक कार्य कर दीजिए। इस थैले में बकरी, मुर्ग़े, हिरण, शेर, इंसान और कुछ जानवरों के सिर है। पहले ज़रा इन्हें बाज़ार में बेच आइये।
मंत्री को हालाँकि यह कार्य थोड़ा अटपटा लगा लेकिन कोई अन्य विकल्प ना देख वह सीधे बाज़ार गया और सभी सर बेचने का प्रयास करने लगा। ढेर सारा समय लगाने और मेहनत करने के बाद मंत्री बमुश्किल सभी जानवरों के सर बेच पाया, लेकिन अंत तक उसे इंसान के सर को ख़रीदने वाला कोई भी नहीं मिला। अंत में मंत्री ने उसे कुछ लोगों को मुफ़्त में देने का भी प्रयास करा लेकिन उसे इसमें भी सफलता नहीं मिली। हर किसी का एक ही कहना था, ‘इस गंदगी का हम करेंगे क्या?’ अंत में थक हार के मंत्री वापस लौट आया और उसने पूरा वाक़या सम्राट अशोक को कह सुनाया। सम्राट अशोक ने मंत्री से कहा, ‘मंत्री जी, अगर मेरे मरने के बाद आप मेरा सर बेचने जाएँगे तो क्या कोई फ़र्क़ पड़ेगा? पहले तो मंत्री जी इस प्रश्न का जवाब देने से बचते रहे। लेकिन सम्राट द्वारा बार-बार पूछने और प्रोत्साहित करने पर बड़े सकुचाते और डरते हुए बोले, ‘मुझे तो लगता है उसे भी कोई नहीं ख़रीदेगा। आदमी के सिर की बाज़ार में कोई क़ीमत नहीं है। मंत्री का जवाब सुन सम्राट अशोक मुस्कुराए और बोले, ‘जिस सिर की कोई क़ीमत ही नहीं है उसे भिक्षुक के चरणों में रख भी दिया तो क्या फ़र्क़ पड़ा? इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है?’
बात तो दोस्तों, सम्राट अशोक की सोलह आने सही थी। जिस चीज का कोई मोल नहीं उसे कहीं रख भी दिया तो फ़र्क़ क्या पड़ता है? और यही वो बात है जो अगर हमें समझ आ जाए तो हम अपना जीवन बेहतर बना सकते हैं। असल में इंसान का सिर यहाँ अहंकार का प्रतीक है, जिसकी हक़ीक़त में कोई क़ीमत नहीं होती। लेकिन इसके बाद भी यह अहंकार सब कुछ पाने, सब कुछ अपने में समेटने और ख़ुद को सबसे बेहतर बताने या समझाने में लगा रहता है। यही अहंकार हमें जीवन को बेहतर और उद्देश्य पूर्ण बनाने वाली सभी चीजों से दूर रखता है जैसे त्याग, नम्रता, समर्पण, ज्ञान आदि।
जी हाँ दोस्तों, अहंकार इंसान को बाहरी वातावरण के आकर्षण में इतना उलझा देता है कि उसे ईश्वर प्रदत्त असली महत्व की चीजों का मूल्य ही समझ नहीं आता है और वह भूल जाता है कि नम्र होना कमजोर की नहीं अपितु मानसिक रूप से सशक्त होने की निशानी है। जब तक आप ख़ुद को बाहरी आकर्षण और ‘मैं’ से मुक्त नहीं करेंगे तब तक संतोष, सुख, शांति आदि को पा नहीं पायेंगे। इसीलिए मेरा मानना है कि अहंकार के साथ ख़ुद को खोजना और ईश्वर को पाना नामुमकिन है क्योंकि यह हमें अपने अंदर की यात्रा करने से रोकता है। इसलिए दोस्तों अहंकार छोड़ें और खुल कर शांति पूर्ण सुखी जीवन जिएँ।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
nirmalbhatnagar@dreamsachievers.com
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