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Writer's pictureNirmal Bhatnagar

जीवन के सच्चे आनंद के लिए ज़रूरी है सच्चे रिश्ते…

Mar 22, 2023

फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, सर्वप्रथम तो आप सभी को विक्रम सम्वत् 2080 अर्थात् हिंदू नववर्ष व चैत्र नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ !!! ईश्वर से कामना है कि नव वर्ष आपके तथा आपके परिवार के लिए सुख, शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य, यश और वैभव लाए।


इस दुनिया में हर कोई सफल होना चाहता है, अपने सपनों, अपनी इच्छाओं को पूरा करना चाहता है और इसीलिए वह जीवन भर, जी तोड़ प्रयास करने के साथ-साथ, आवश्यकता पढ़ने पर दूसरों से अपेक्षा भी रखता है। ऐसी स्थिति में अगर सामने वाला व्यक्ति उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतर जाता है तो वह उसकी नज़र में अच्छा बन जाता है और अगर किसी कारण वह उसकी अपेक्षाओं को पूरा ना कर पाए तो हमें उसमें तमाम कमियाँ, ख़ामियाँ नज़र आने लगती हैं।


जी हाँ, सामान्यतः देखा गया है कि लोग दूसरों से मिली मदद के आधार पर अपनी उपलब्धियों, इच्छाओं, लक्ष्य अथवा सपनों की पूर्ति के लिए प्रयास करते वक्त, अकसर यह भूल जाते हैं कि सफलता, इच्छाओं या सपनों की पूर्ति से भी ज़्यादा ज़रूरी होता है, ‘अपनों का साथ’, याने रिश्ता। सोच कर देखिएगा दोस्तों, इस जीवन में उपलब्धियों और सफलताओं का महत्व तभी तक है, जब तक आप किसी इंसान के साथ याने समाज अथवा परिवार के साथ रहते हैं। मान लीजिए आपके पास दुनिया भर की सारी दौलत और संसाधन, सब-कुछ हैं। लेकिन आप इस दुनिया में अकेले इंसान हैं। अब आप ही बताइए क्या आप उस दौलत, शोहरत या संसाधन को भोग पाएँगे? शायद नहीं। बल्कि मैं यक़ीन से कह सकता हूँ उन्हें भोगना बिलकुल भी सम्भव नहीं है।


याने इस आधार पर कहा जा सकता है कि इंसानों या समाज का साथ और रिश्तों का मोल दौलत, शोहरत और व्यक्तिगत इच्छाओं से ज़्यादा होता है। लेकिन साथियों, अक्सर हमारे द्वारा लिए गए निर्णय, किए गए कार्य इस धारणा के विरुद्ध होते हैं। हम अपनी इच्छाओं, अपने सपनों, भौतिक संसाधनों को अपने लोगों से ज़्यादा तवज्जो देते हैं और शायद इसीलिए जीवन के एक पड़ाव पर आने के बाद जहाँ सब कुछ होने के बाद भी लोग खुद को अकेला पाते हैं, ख़ालीपन के साथ जीवन जीते हैं।


याद रखिएगा साथियों, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के बीच में ही रह कर इस जीवन का सच्चा आनंद ले सकता है और यह तभी सम्भव है जब हम रिश्तों को तर्क, फ़ायदे-नुक़सान या कार्यों के आधार पर परखना बंद कर दें। आप स्वयं ही सोच कर देखिएगा दो शरीर, दो दिमाग़, दो भावनाएँ क्या कभी पूरी तरह मेल खाकर एक हो सकती हैं? शायद बिलकुल भी नहीं। यह तभी सम्भव है जब हम तार्किक आधार पर हर तरह की तुलना बंद कर भावनाओं के आधार पर रिश्तों को प्रधानता देने लगें। वैसे भी दोस्तों, जब आपको इस बात का एहसास हो जाता है कि आपका जीवन सौ फीसदी आपकी जिम्मेदारी है, याने आप ही अपनी ख़ुशी और अपने ग़म, अपनी सफलता अपनी असफलता, अपनी समस्याओं और अपने समाधानों के लिए ज़िम्मेदार हैं, तो फिर आप किसी के प्रति नाराज़गी रख ही नहीं पाएँगे क्योंकि नाराज़गी का भाव आपकी ख़ुशियों को छीन लेता है। आज के लिए इतना ही दोस्तों, कल हम सामाजिक एवं पारिवारिक रिश्तों को मज़बूत बनाने के 7 सूत्र सीखेंगे।


पुनः नववर्ष व चैत्र नवरात्रि की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ !!!


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

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