May 5, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…
दोस्तों, मेरी नज़र में लोगों के चेहरों पर नज़र आने वाले विभिन्न भाव, जैसे, निराश और हताश होना या बोझिल भाव के साथ जीना, शारीरिक तौर पर स्वस्थ होने के बाद भी हर पल थके हुए नज़र आना या थकान महसूस करना अथवा हर पल आनन्द के साथ जीना, जीवन के प्रति आपके नज़रिए को दर्शाता है। इसका सीधा-सीधा अर्थ हुआ अगर आप जीवन के प्रति अपना नज़रिया ठीक कर लें तो खुश और मस्त रहते हुए आनंदपूर्वक ज़िंदगी जी सकते हैं। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है तीन हमउम्र स्वस्थ और एक ही क़द-काठी के युवा धार्मिक यात्रा पर जा रहे थे। शाम होते-होते जब वे एक मंदिर में विश्राम करने रुके, उस वक़्त एक युवा बोला, ‘देखो, हम सुबह से पैदल चल रहे हैं और अभी तक आधा रास्ता भी पूरा नहीं कर पाए हैं। इसीलिए मैं तुमसे पहले ही कह रहा था कि पैदल यात्रा पर जाने के बारे में सोचना ही ग़लत है। लेकिन मेरी सुनता कौन है?’
उस युवा की बात सुनते ही दूसरा युवा जो बहुत थका हुआ नज़र आ रहा था, मुस्कुराते हुए बोला, ‘अरे यार क्यों चिंता करता है? आधा तो पहुँच ही गए हैं। कल आधा और चल लेंगे।’ दोनों युवाओं की बात सुनने के बाद तीसरा युवा बोला, ‘दूरी, कठिनाई, परेशानियों को छोड़ो और यात्रा के मज़े लो। दूसरी बार यह दिन; यह मौक़ा नहीं मिलने वाला है।’
इन तीनों युवाओं की बात सुन मंदिर में मौजूद एक साधु-महात्मा मुस्कुराने लगे। जिन्हें देख तीनों युवाओं ने उनसे पूछा, ‘महात्मा जी आप मुस्कुरा क्यों रहे हैं?’ महात्मा जी उसी मुस्कुराहट के साथ बोले, ‘वह छोड़ो, तुम तो यह बताओ अगर तुम इस यात्रा को एक लट्ठ के दो छोरों पर बंधे, दो झोलों के साथ कर रहे होते, जिनमें से एक मैं सारी अच्छाई और दूसरे में सारी बुराई होती, तो तुम कौन सा झोला आगे रख यात्रा करते?’
महात्मा की बात सुनते ही पहला युवा जो इस यात्रा से नाखुश था बोला, ‘महात्मा जी, मैं बुराई वाले झोले को आगे और अच्छाई वाले झोले को पीछे रखूँगा। जिससे मेरी नज़र हमेशा बुराई पर रहे और मैं उससे बच सकूँ।’ पहले युवा की बात पूरी होते ही दूसरा युवा, जो थका होने के बाद भी अच्छी यात्रा के लिए आशान्वित था बोला, ‘महात्मा जी में अच्छाई वाले झोले को आगे और बुराई वाले झोले को पीछे रखूँगा। जिससे हर पल अच्छाई मेरी आँखों के सामने रहे और मैं उसे देख कर अच्छा बन सकूँ।’ तीसरा युवा अपनी चिर-परिचित, आनंददायक मुस्कुराहट के साथ बोला, ‘महात्मा जी, मैं अच्छाई आगे रखूँगा। जिससे मैं उसे देख कर हर पल संतुष्ट रह सकूँ और साथ ही बुराई पीछे रख कर उस झोले में एक छेद कर दूँगा, जिससे समय के साथ बुराई के झोले का बोझ कम होता जाए।’
तीनों युवाओं की बात सुनते ही साधु-महात्मा जी एकदम गंभीर स्वर में बोले, ‘वत्स, तुममें से जो अभी तक के सफ़र से थक कर निराश हुआ था, उसी ने यह भी कहा था कि, वह बुराई वाले झोले को आगे रखेगा। असल में वो इस यात्रा के समान अपनी जीवन यात्रा से भी थक गया हैं। इसकी मुख्य वजह नकारात्मक सोच है। यह जीवन मेरी नज़र में सिर्फ़ उसके लिए ही कठिन है।
दूसरा जो थका हुआ तो लग रहा है, पर वो निराश नहीं है, उसने अच्छाई को सामने रखने का और बुराई से बेहतर बनने का कहा था। वह हर स्थिति में बेहतर बनने की कोशिश में थक जाता हैं क्यूंकि वो बेवजह की होड़ में हैं। तीसरा जिसने कहा था कि वो अच्छाई को आगे रखेगा और बुराई को पीछे रख, उस झोले में छेद करेगा। वह असल में कमियों; बुराइयों को भुला देना चाहता है, वह अपने जीवन से संतुष्ट है। इसीलिए वो अपने जीवन का आनंद ले पा रहा है।
बात तो दोस्तों, महात्मा जी की एकदम सही थी। जीवन में जब तक व्यक्ति नकारात्मक नज़रिए के चलते, दूसरों में बुराइयों को खोजेगा, तब तक वो खुश नहीं रह पाएगा। इसके विपरीत सकारात्मक नज़रिया या सकारात्मक सोच, जीवन को ख़ुशहाल बना सकती है। इसीलिए हमारे यहाँ नकारात्मक भावों जैसे क्रोध को बोझ बताया है और सकारात्मक भावों जैसे क्षमा को सबसे सुन्दर और सरल रास्ता, जो जीवन को अनावश्यक बोझ से मुक्त बनाता है।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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