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जीवन बदलना है तो पहले सोच बदलिए…

  • Writer: Nirmal Bhatnagar
    Nirmal Bhatnagar
  • May 4
  • 3 min read

May 4, 2025

फिर भी ज़िंदगी हसीन है...

दोस्तों, आपने किसी ना किसी को यह कहते सुना ही होगा कि "सपने वो नहीं जो हम सोते वक्त देखते हैं, सपने वो हैं जो हमें सोने नहीं देते।” लेकिन सोच कर देखिए अगर हमारा मन ही सुस्त हो जाए, सोच ही हार मान ले, तो सपनों का क्या होगा? तब क्या ऐसी प्रेरणादायी बातें काम करेंगी? शायद नहीं! इसके लिए तो हमें योजनाबद्ध तरीक़े से इसके याने मानसिक आलस्य से डील करना होगा। जी हाँ दोस्तों, आज हम बात कर रहे हैं मानसिक आलस्य की, जो मेरी नज़र में एक ऐसा अदृश्य लेकिन बेहद घातक दुश्मन है, जो न केवल हमारे काम की गति को रोक देता है, बल्कि हमारी सोच, आत्मविश्वास और संकल्प को भी धीरे-धीरे नष्ट कर देता है।


अब आप सोच रहे होंगे कि शारीरिक आलस्य तो समझ आता था, लेकिन यह मानसिक आलस्य क्या है? तो आगे बढ़ने से पहले मैं आपको बता दूँ कि किसी भी काम को करने से पहले ही यह सोच लेना कि “यह मेरे बस की बात नहीं है,” या “मैं तो पहले ही हार गया हूँ।”, इस श्रेणी में आता है। अर्थात् मानसिक आलस्य वह अवस्था है जब शरीर में ताकत होती है; अवसर हमारे सामने होते हैं, लेकिन हमारा मन ही हमारा साथ छोड़ देता है। यह स्थिति, व्यक्ति को धीरे-धीरे असफलता और निराशा की ओर ले जाती है। मेरी नजर में यह स्थिति वाक़ई ख़तरनाक होती है क्योंकि बीतते समय के साथ यह ना सिर्फ़ हमारे आत्मविश्वास को ख़त्म करती है, बल्कि हमें अपने सपनों को अधूरा छोड़ने के लिए भी मजबूर करती है। सीधे शब्दों में कहूँ तो यह सफलता की राह में सबसे बड़ी रुकावट बन जाता है और हम दूसरों पर निर्भर होने लगते हैं, और अंत में खुद पर से विश्वास खो बैठते हैं।


इतना सब कहने के बाद भी दोस्तों मैं यही कहूँगा कि इससे घबराने या डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह कोई जन्मजात दोष नहीं है, जिसे बदला ना जा सके। यह तो महज एक आदत का नतीजा है, और अच्छी बात यह है कि हर आदत बदली जा सकती है। अब आपके मन में प्रश्न आ रहा होगा, “कैसे?” तो चलिए चार सूत्रों से हम मानसिक आलस्य से निपटना सीखते हैं-


पहला सूत्र - सकारात्मक सोच का अभ्यास करें

हर दिन सुबह खुद से कहें – "मैं कर सकता हूँ," "मैं आगे बढ़ रहा हूँ।” ये शब्द सिर्फ वाक्य नहीं हैं, ये आपके मन की दिशा तय करते हैं।

दूसरा सूत्र - अच्छे लोगों के साथ रहें


सकारात्मक सोच वाले, प्रेरणादायक लोग आपके जीवन में रोशनी की तरह होते हैं। उनसे मिलिए, उनके अनुभव सुनिए, और उनसे सीखिए।


तीसरा सूत्र - हर दिन एक छोटा कदम उठाएँ


बड़े लक्ष्य एक दिन में पूरे नहीं होते। रोज़ थोड़ा-थोड़ा करके, बड़ी सफलता भी पाई जा सकती है। बस शुरुआत कीजिए और अपने लक्ष्य की दिशा में छोटा ही सही, लेकिन एक कदम रोज़ बढ़ाइए।

चौथा सूत्र - किसी प्रेरणादायक किताब या वीडियो को दिन का हिस्सा बनाइए


एक अच्छा विचार आपकी पूरी मानसिकता को बदल सकता है। इसलिए प्रतिदिन कुछ ना कुछ सकारात्मक और प्रेरणादायी पढ़िए, देखिए, और सोचिए।


निष्कर्ष:

अंत में इतना ही कहना चाहूँगा कि हमारी हार तब नहीं होती जब हम गिरते हैं, हमारी हार तब होती है जब हम उठने से मना कर देते हैं। मानसिक आलस्य भी वही "ना उठने" की मानसिकता है। इसे हराइए, क्योंकि जीवन में जीतने के लिए पहले मन का जीतना जरूरी है। आपमें वो सब कुछ है जो किसी विजेता में होता है, बस अपने सोचने का तरीका बदलिए और अपने भीतर की शक्ति को पहचानिए। याद रखियेगा, मानसिक रूप से जागृत व्यक्ति, शारीरिक रूप से भी अजेय बन जाता है।


-निर्मल भटनागर

एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर

 
 
 

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