July 9, 2024
फिर भी ज़िंदगी हसीन है…

दोस्तों, अगर आप अपने जीवन में घटने वाली तमाम घटनाओं के लिए स्वीकार्यता का भाव विकसित कर लें तो मेरा मानना है कि आपको कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति दुखी या परेशान नहीं कर सकती है। याने कोई भी व्यक्ति या परिस्थिति आपका सुख, चैन, शांति और ख़ुशी छीन या ख़त्म नहीं कर सकती है। अपनी बात को मैं आपको एक कहानी से समझाने का प्रयास करता हूँ।
बात कई साल पुरानी है। रामू अपने परिवार सहित गाँव में एक झोपड़ी में रहा करता था। इस झोपड़ी की हालत इतनी ख़स्ताहाल थी कि बरसात में इसमें पानी रिसता था, तो ठंड में चलने वाली तेज हवा रहने वालों को परेशान करती थी। घर की परेशानी को देख रामू का एक ही सपना था, पक्का घर, ताकि उसका परिवार इन सब परेशानियों से बच कर एक अच्छे, सुरक्षित और पक्के मकान में आराम से सुख पूर्वक रह सके। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए रामू पिछले कई सालों से पैसे बचा रहा था।
एक समय ऐसा आया जब रामू को लगा कि वह बचत के पैसों से अपना पक्का मकान बना सकता है। उसने खेत के कोने पर तत्काल निर्माण कार्य शुरू कर दिया। लगभग एक माह में मकान बन कर तैयार हो गया और रामू अब उस घर में रहने जाने के विषय में सोचने लगा। एक दिन वह पंडित जी के पास गया और गृह प्रवेश के लिए शुभ मुहूर्त तय कर आया। रामू उस दिन बहुत खुश था। उसे लग रहा था मानो ईश्वर ने उसकी सबसे बड़ी इच्छा पूरी कर दी है। अपनी इस ख़ुशी में गाँव के लोगों को शामिल करने के लिए रामू ने सभी ग्रामवासियों को भी पूजा का निमंत्रण दे दिया। लेकिन ईश्वर को शायद कुछ और मंज़ूर था। गृह प्रवेश के ठीक दो दिन पूर्व उस गाँव में ज़बरदस्त भूकंप आया और इसमें रामू का नया मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गया। जल्द ही यह बात पूरे गाँव में फैल गई और लोग रामू के नये घर के सामने जुटने लगे। कई लोग अब रामू को ‘बेचारा’ कह कर संबोधित करते हुए अफ़सोस प्रकट करते हुए कह रहे थे, ‘ओह बेचारे के साथ बहुत बुरा हुआ, कितनी मुश्किल से एक-एक पैसा जोड़कर मकान बनवाया था।’ वहाँ मौजूद कुछ लोग इसे प्रकृति की क्रूरता का एक उदाहरण बता रहे थे।
वहाँ मौजूद हर शख़्स तरह-तरह की आपसी बातों के बीच रामू के आने का इंतज़ार कर रहा था, जो किसी आवश्यक कार्य से पास ही के गाँव में गया हुआ था। जैसे ही यह बात रामू को पता चली वह तुरंत पास ही के मंदिर में गया और वहाँ भगवान को सवा किलो लड्डू का प्रसाद चढ़ाया और सीधे अपने नये घर यानी घटनास्थल पर पहुँच गया। वहाँ मौजूद लोगों ने उसे सांत्वना देने और ढाढ़स बन्धाने के लिए घेर लिया। लेकिन उन सभी लोगों की अपेक्षा के विपरीत रामू ने अपने झोले में से मिठाई का प्रसाद निकाला और लोगों में बाँटना शुरू कर दिया।
रामू की प्रतिक्रिया देख सभी हैरान थे। तभी भीड़ में मौजूद रामू का एक मित्र बोला, ‘रामू, तुम कहीं पागल तो नहीं हो गये हो? भूकंप की वजह से तुम्हारा घर गिर गया है; तुम्हारी जीवन भर की कमाई मिट्टी में मिल गई है और तुम ख़ुश होकर मिठाई बाँट रहे हो?’ रामू अपनी चिर-परिचित मुस्कुराहट के साथ बोला, ‘मित्र, तुम घटना का सिर्फ़ एक, वह भी नकारात्मक पक्ष देख रहे हो। अरे मेरे हिसाब से तो मकान का आज ही गिरना बहुत अच्छा है। तुम ख़ुद सोच कर देखो कि अगर यह मकान दो दिन बाद गिरा होता तो मैं, मेरी पत्नी और बच्चे का क्या होता? हम सब मारे भी तो जा सकते थे।’
बात तो दोस्तों रामू की सही थी। हर घटना या हर व्यक्ति के दो पहलू होते हैं, पहला, सकारात्मक और दूसरा, नकारात्मक। अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किस पहलू से जीवन में घटने वाली घटनाओं को देख रहे हो। अगर आप नकारात्मक पहलू को ज़्यादा तवज्जो देंगे तो जीवन में नकारात्मकता बढ़ने लगेगी और अगर आप सकारात्मकता को ज़्यादा देखेंगे तो जीवन में सकारात्मकता बढ़ने लगेगी। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो हमारे जीवन की नियति हमारे नज़रिए पर निर्भर करती है। इसीलिए स्वीकार्यता का भाव होना हमारे लिए आवश्यक है। इसीलिए कहते हैं, जीवन में स्वीकार्यता का भाव रखना आपको बिना किसी बड़े नुक़सान के जीवन में आगे बढ़ने का मौक़ा देता है, फिर चाहे परिस्थितियाँ या शुरुआती परिणाम कैसे भी क्यों ना हों।
-निर्मल भटनागर
एजुकेशनल कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
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